जब चारों तरफ निराशा का माहौल हो भ्र्ष्टाचार को शिष्टाचार मान लिया गया हो। लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ सहित चौथा स्तंभ भी अपनी विश्वसनीयता खो चुका हो ऐसे में बलिया के पत्रकार दिग्विजय सिंह जिन्होंने उत्तर प्रदेश में इंटरमीडिएट परीक्षा में पेपर लीक का भांडाफोड़ किया है उपरोक्त वीडियो में उनके तेवर देखते हुए लगता है अभी उम्मीद खत्म नही हुई है। चूंकि सम्पूर्ण घटनाक्रम बलिया जिले में हुआ है इसलिए बरबस याद आता है स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया जिले की महत्वपूर्ण भूमिका जिसमे आजादी से 4 वर्ष पूर्व ही अंग्रेजी हुकमत द्वारा आधिकारिक तौर पर बलिया को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था चाहे वह चार दिन के लिए ही किया हो। वीडियो (यूट्यूब पर देखें) में पत्रकार दिग्विजय सिंह जिस निडरता और निर्भीकता के साथ बलिया कलेक्टर और एस पी के खिलाफ नारे लगा रहे है वह ना केवल उनकी ईमानदारी का परिचायक है, बल्कि इस बात का भी परिचायक है कि वह अपने पत्रकारिता मूल्यों के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्थित है। आपातकाल के दौर में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पत्रकारों के लिए कहा था कि “उन्हें सिर्फ झुकने के लिए कहा था,वह दण्डवत हो गए थे” आज परिस्थितियां उस दौर से भी बुरी है मीडिया संस्थागत रूप से सत्ता के चरणों मे समर्पित है और जो अपवाद के तौर पर ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं, उन्हें अलग-अलग तरीके से प्रताड़ित किया जा रहा है, ऐसे में दिग्विजय सिंह ने उस अखबार के प्रतिनिधि के तौर पर जिसे सत्तारूढ़ पार्टी का अघोषित मुखपत्र माना जाता हो, पेपर लीक का भांडाफोड़ कर अदम्य साहस का काम किया है। दिग्विजय सिंह का काम काबिले तारीफ़ इस लिहाज़ से भी है जातीय प्रेम के चलते अपराधियों को भी नायक का दर्जा दिया जा रहा हो तथा राजनीति और धर्म का सहारा लेकर अपराधी नायक बन बैठे हो तब भी दिग्विजय सिंह ने अपने पत्रकारिता धर्म का पूर्ण निष्ठा से पालन कर बता दिया है सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर चलने वालों को कोई प्रलोभन नही डिगा सकता और कोई डर, डरा नहीं सकता।
आज अधिकांश सभी अपनी ज़िंदगी तमाम नाइंसाफियों को नजरअंदाज करते हुए गुजार रहे हो तब दिग्विजय सिंह जैसे तमाम लोगो के लिए यह कहना चाहता हूं कि
“साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है”।
बसन्त हरियाणा