जिनके आदिपुरुष ही दादा कोंडके हैं, उनके रूप को नहीं, सार को निहारिये!! आलेख : बादल सरोज

जिनके आदिपुरुष ही दादा कोंडके हैं, उनके रूप को नहीं, सार को निहारिये!!

आलेख : बादल सरोज पिछले शुक्रवार 16 जून को रिलीज हुयी 600 करोड़ की फिल्म “आदि पुरुष” के टपोरी संवादों पर हिंदी भाषी भारत में हुयी चर्चा, उन पर आई प्रतिक्रियाओं के दो आयाम हैं। एक आयाम आश्वस्ति देता है और वह यह कि अभी, बावजूद सब कुछ के, भाषा के प्रति संवेदनशीलता और विवेक […]

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मूंदहुं आंख कतहुं कछु नाहीं! व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा

मूंदहुं आंख कतहुं कछु नाहीं!

व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा भक्त गलत थोड़े ही कहते हैं, मोदी जी को कोई हरा नहीं सकता है। मोदी जी जब अमरीका के लिए फुर्र हुए थे, विरोधी कितनी कांय-कांय कर रहे थे। मणिपुर को जलता छोड़क़र मोदी जी अमरीका उड़ गए। मणिपुर के विधायक दिल्ली में मुलाकात का टैम मिलने का इंतजार ही करते […]

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कॉमन सिविल कोड : न कॉमन की चाहत है, न इरादा ही सिविल है आलेख : बादल सरोज

कॉमन सिविल कोड : न कॉमन की चाहत है, न इरादा ही सिविल है

आलेख : बादल सरोज ? 14 जून को अचानक भाजपा नीत केंद्र सरकार की प्रज्ञा जाग्रत हुयी और अपने विधि विभाग की ओर से उसने समान नागरिक संहिता – कॉमन सिविल कोड – पर एक बार फिर देश भर से सुझाव, सलाहें और प्रस्ताव मांगने की अधिसूचना जारी कर दी। इसमें 30 दिन के भीतर […]

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इमर्जेंसी स्पेशल अघोषित फ्लेवर वाली व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

इमर्जेंसी स्पेशल अघोषित फ्लेवर वाली

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा विपक्ष वालों की ये तो हद्द ही है। मोदी जी ने किसी ऐरी-गैरी जगह में नहीं, अमेरिका के व्हाइट हाउस में घुसकर बता दिया; अकेले-दुकेले में नहीं, बाकायदा प्रेस के सामने एलान कर के बता दिया कि डेमोक्रेसी उनकी सरकार के डीएनए में है। फिर भी ये वही पुरानी रट लगाए […]

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भारतीय जनांदोलनों के असाधारण पुरखे स्वामी सहजानंद सरस्वती विशेष आलेख : बादल सरोज

भारतीय जनांदोलनों के असाधारण पुरखे स्वामी सहजानंद सरस्वती

विशेष आलेख : बादल सरोज आज 26 जून स्वामी सहजानंद सरस्वती का स्मरण दिवस है। वे भारतीय समाज के असाधारण व्यक्तित्व थे। यह सामान्यतः किसी शख्सियत को याद करते समय कहा जाने वाला रस्मी विशेषण नहीं है, उनकी असाधारणता सचमुच में असाधारण थी। यहाँ बिना किसी विस्तार के उन कुछ पहलुओं पर ही अपनी बात […]

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जैड प्लस सुरक्षा में डैमोक्रेसी व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा

जैड प्लस सुरक्षा में डैमोक्रेसी

व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा किसी न सच ही कहा है — सब को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता है। मोदी जी के विरोधियों को संतुष्ट करना तो और भी मुश्किल, बल्कि नामुमकिन ही है। बताइए! पहले रात-दिन इसकी शिकायत करते थे कि मोदी जी प्रेस का सामना क्यों नहीं करते हैं। नौ साल हो गए, […]

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खुदा नहीं! तो खुदा क़सम! ख़ुदा से कम भी नहीं! व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा मोदी जी गलत कहां कहते हैं। उनके विरोधी, असल में राष्ट्र-विरोधी हैं। मोदी विरोध तो बहाना है, भारत महान ही निशाना है। तभी इनसे भारत की जरा सी बड़ाई सहन नहीं होती है, न देश में और न विदेश में। अब बताइए, राहुल गांधी को और कुछ नहीं मिला तो अमरीका में जाकर, इंडिया के पीएम की खिल्ली उड़ाने लगे। कहने लगे कि हमारे मोदी जी उन लोगों में से हैं, जो समझते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं। ये भाई लोग तो वैज्ञानिकों को विज्ञान सिखाने लग जाएंगे, इतिहासकारों को इतिहास पढ़ाने लग जाएंगे, फौजी जनरलों को सैन्य रणनीति सिखाने लग जाएंगे। ये तो वो हैं कि ईश्वर के पास बैठ जाएं, तो उसे भी समझा देंगे कि ब्रह्मांड कैसे चलता है। अगला भी चकरा जाएगा कि ये मैंने क्या बना दिया! फिर भी राहुल गांधी के कहने-सुनने से तो किसी का मजाक नहीं उड़ता, न मोदी जी का और न उनके इंडिया का, पर उनकी बातें सुनने को जमा हुई भीड़ ने भी ठहाका लगा दिया। और भीड़ भी, भारत छोड़ो को फॉलो कर के अमरीका में जा जमे भारतीयों वाली भीड़। यानी इडी-सीबीआइ-आइटी की पहुंच से भी दूर। तभी तो मजाक तो ऐसा उड़ा, ऐसा उड़ा कि हजारों किलोमीटर पार, हिंदुस्तान तक ठहाका सुनाई दिया। पर अमरीका में मजाक उड़ा, तो उड़ा किस का! बेशक, मोदी जी के विरोधी इसे मोदी जी का मजाक उड़ना बताने की कोशिश करेंगे? लेकिन, यह सच नहीं है। असल में मजाक तो हमारे भारत महान का उड़ा है। राहुल गांधी ने जान-बूझकर विदेशी धरती पर, हमारे प्यारे देश का मजाक उड़ाया है। वर्ना इसमें हंसी उड़ने-उड़ाने वाली तो कोई बात ही नहीं थी। उल्टे भारत के लिए तो गर्व की बात थी : हमारा बंदा ईश्वर से भी ज्यादा जानता है! हमारा बंदा ईश्वर के साथ बैठ जाए, तो उसे भी दुनिया को चलाने के तौर-तरीके सिखा दे! बंदा इम्पोर्टेंट नहीं है, इम्पोर्टेंट ये है कि बंदा किस का है? जाहिर है कि बंदा इंडिया का है, जो ईश्वर को दुनिया चलाने का तरीका सिखा सकता है। सच पूछिए तो, इंडिया का ही बंदा ईश्वर को दुनिया चलाने का तरीका सिखा सकता है। दुनिया ने हमें विश्व गुरु यों ही थोड़े ही मान लिया है। ईश्वर हमारे बंदे से कंसल्ट कर के काम करता है, यह सब को पता है। तभी तो सारी दुनिया हमें उम्मीद की नजरों से देख रही है। हमारा बंदा ही ईश्वर को शासन-प्रशासन के गुर बताएगा, तभी पटरी से उतरती लगती दुनिया को, दोबारा पटरी पर लाया जाएगा। लेकिन, यह तो इंडिया के लिए गर्व की बात होनी चाहिए, न कि हंसी उड़ने की। पर मोदी के विरोध के नाम पर, भाई लोग इंडिया की वर्ल्ड लीडरशिप का भी मजाक उड़वा रहे हैं। यह भी अगर एंटीनेशनलता नहीं है, तो फिर एंटीनेशनलता और किसे कहेंगे! हम तो कहेंगे कि मोदी जी के विधि आयोग ने एकदम सही सुझाव दिया है -- सेडीशन उर्फ राजद्रोह के लिए सजा और सख्त होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट इस कानून को ही खत्म कराना चाहता है, मगर उसका क्या है? उसे कौन सा पब्लिक ने देश चलाने के लिए चुना है; दुनिया चलाने के लिए चुने जाने का तो सवाल ही कहां उठता है। सेडीशन कानून नहीं होगा, तब तो कोई भी ऐरा-गैरा, मोदी जी की आलोचना की आड़ में, भारत राष्ट्र की हंसी उड़ाकर निकल जाएगा। राहुल गांधी के पास छिनने के लिए अब सांसदी नहीं रही तो भी क्या, बंदे को इंडिया के पीएम का मजाक उड़ाकर यूं ही थोड़े ही निकल जाने दिया जाएगा। विदेश में जो इंडिया के पीएम का मजाक बनाएगा, लंबा अंदर जाएगा। (व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार तथा साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)

खुदा नहीं! तो खुदा क़सम! ख़ुदा से कम भी नहीं!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा मोदी जी गलत कहां कहते हैं। उनके विरोधी, असल में राष्ट्र-विरोधी हैं। मोदी विरोध तो बहाना है, भारत महान ही निशाना है। तभी इनसे भारत की जरा सी बड़ाई सहन नहीं होती है, न देश में और न विदेश में। अब बताइए, राहुल गांधी को और कुछ नहीं मिला तो अमरीका […]

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अमित शाह की खिलाड़ियों से मुलाक़ात आलेख : बादल सरोज शनिवार 3 जून की रात यौन उत्पीडन के खिलाफ आन्दोलनरत खिलाड़ियों की गृहमंत्री अमित शाह से हुयी मुलाक़ात के बाद गोदी मीडिया ने खिलाड़ियों के डर जाने, आन्दोलन के बिखर जाने और साक्षी मलिक और नाबालिग बच्ची के आरोपों से मुकर जाने की जो झूठी खबरें उड़ाईं और बिना किसी लाज-शर्म के धड़ाधड़ चलाईं, उनका गुब्बारा तो दोपहर होने से पहले ही पिचक गया। जिन आन्दोलनकारी कुश्ती खिलाड़ियों का नाम लेकर इन खबरों को फैलाया जा रहा था, उन्होंने एक-एक करके न केवल इस प्रायोजित प्रोपगंडा का खंडन किया, बल्कि इस तरह के मीडिया की भी कसकर खबर ली। साक्षी मलिक ने कहा कि : "ये खबर बिल्कुल गलत है। इंसाफ की लड़ाई में ना हम में से कोई पीछे हटा है, न हटेगा। सत्याग्रह के साथ-साथ रेलवे में अपनी जिम्मेदारी को साथ निभा रही हूं। इंसाफ मिलने तक हमारी लड़ाई जारी है। कृपया कोई गलत खबर न चलाई जाए।’' उनने कहा कि "हमने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। यह एक सामान्य बातचीत थी। हमारी केवल एक ही मांग है और वह है बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार करना। मैं विरोध प्रदर्शन से पीछे नहीं हटी हूं, मैंने रेलवे में ओएसडी के रूप में मैंने अपना काम फिर से शुरू कर दिया है। मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता, तब तक हम विरोध करते रहेंगे। हम पीछे नहीं हटेंगे।’' दूसरी महिला खिलाड़ी विनेश फोगाट ने और भी कड़े शब्दों में अपना गुस्सा जताया। सोशल मीडिया और मीडिया में चल रही कई ‘अफवाहों’ पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए विनेश ने अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखा कि : ‘महिला पहलवान किस ट्रॉमा से गुज़र रही हैं, इस बात का एहसास भी है फर्जी खबर फैलाने वालों को? कमजोर (हम नहीं हैं कमजोर) मीडिया की टांगें हैं, जो किसी गुंडे के हंटर के आगे कांपने लगती हैं, महिला पहलवान किसी गुंडे से नहीं डरतीं।" इसी तरह का वक्तव्य बजरंग पूनिया का भी आया, जिसमें उन्होंने कहा कि इन्साफ की लड़ाई जारी रहेगी। कुल मिलाकर यह कि अमित शाह से मुलाक़ात के बाद, जो देर रात तक उनके सरकारी आवास में चली और जिसमें उनके अलावा कई कोच भी शामिल थे, खिलाड़ियों का हौंसला कायम है ; सरकार का हौंसला जरूर कमजोर होता दिखा है। प्रधानमंत्री के बाद जहां गिनती समाप्त हो जाती है, सरकार में उस दूसरे नम्बर पर विराजे अमित शाह की मुलाक़ात और उसके बाद लम्बे समय से मुंह में दही जमाये बैठे खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का इस मुद्दे पर बयान आना मोदी सरकार के दिल के अचानक पसीज जाने का नहीं, इस जघन्य मामले में अब तक निबाही गयी भूमिका के गंभीर परिणामों की आशंका से उपजा भय और घबराहट है। इस बात के संकेत तीन दिन पहले यौन दुराचारी ब्रजभूषण शरण सिंह द्वारा अपने समर्थन में 5 जून को अयोध्या में बुलाई जाने वाली कथित 11 लाख साधुओं की अनुमति न दिए जाने के 'जिला प्रशासन' के कथित फैसले से मिलने लगे थे कि सारे दांव पेंच असफल हो जाने के बाद अब मोदी सरकार अपनी फजीहत और देश-दुनिया में हो रही थू;थू से पल्ला झाड़ने के लिए किसी पतली गली की तलाश में हैं, वरना यही अमित शाह मई-जून की तपती दोपहरी में जंतर मंतर पर खिलाड़ियों के बैठने, 28 मई को उन्हें खींचने और घसीटने के समय भी गृह मंत्री थे -- उन्हें तब तरस नहीं आया, तो अब पैदा हुयी करुणा भी अचानक नहीं पैदा हो गयी। 2 जून के 'इंडियन एक्सप्रेस' में छपी इन महिला खिलाड़ियों की एफ आई आर ने पूरे देश को स्तंभित और विचलित करके रख दिया था। नाबालिग कुश्ती खिलाड़ी सहित करीब 7 महिला खिलाडिनों ने ब्रजभूषण शरण सिंह द्वारा अपने साथ किये यौन दुराचरण की घटनाओं का जो ब्यौरा दिया था, वह किसी भी सभ्य समाज के किसी भी मनुष्य नाम के प्राणी को शर्मसार करने वाला था। इस एफ आई आर में दर्ज एक पीड़िता का यह कथन कि "उसने खुद, तभी प्रधानमंत्री मोदी से निजी मुलाकात कर उनको ब्रजभूषण शरण सिंह के इस अपराध की जानकारी दी थी और बाद में इस शिकायत की जानकारी अपराधी तक भी पहुँच गयी थी", भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की बची-खुची कलई भी उतारने वाला था। इस बीच दो महत्वपूर्ण घटनाएं और घटीं, जिनसे अब तक इस जायज आन्दोलन को राजनीतिक आन्दोलन बताने वाला कुहासा और तार-तार हुआ। पहला था 1983 का विश्वकप जीतने वाली कपिल देव, सुनील गावस्कर, मदनलाल और चेतन शर्मा वाली क्रिकेट टीम का सामूहिक बयान जारी कर खिलाड़ियों के समर्थन में खुले आम आना। 1983 विश्व कप विजेता टीम ने जारी संयुक्त बयान में कहा कि ”हम चैंपियन पहलवानों के साथ बदसलूकी की तस्वीरें देखकर काफी व्यथित हैं। हमें इसकी काफी चिंता है कि वे मेहनत से जीते गए पदकों को गंगा में बहाने की सोच रहे हैं। इन मेडलों के पीछे बरसों के प्रयास, बलिदान, समर्पण और मेहनत शामिल है। वे उनका ही नहीं, बल्कि देश का गौरव हैं। हम उनसे अनुरोध करते हैं कि इस मामले में आनन-फानन में फैसला नहीं ले और (साथ ही) हम उम्मीद करते हैं कि उनकी शिकायतें सुनी जाएंगी और उनका हल निकाला जाएगा। कानून को अपना काम करने दीजिए।” खेल की दुनिया के इन सचमुच के नायकों के बयान की ऐसी नैतिक शक्ति थी, जिसकी अनदेखी करना किसी तानाशाह के बूते में भी नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ और विश्व कुश्ती संघ द्वारा भारत की महिला खिलाड़ियों के साथ पुलिसिया बर्ताब और सरकार की भूमिका की निंदा के साथ समुचित कार्यवाही न होने पर भारत की कुश्ती फेडरेशन को विश्व मुकाबलों में हिस्सा न लेने देने की चेतावनी से इसके दुनिया भर में लानत-मलामत कराने की भूमिका बना देना तीसरा महत्वपूर्ण घटना विकास था। जाहिर है ये वे लोग और ऐसे संस्थान हैं, जिन्हें मोदी की भाजपा का पालित पोषित मीडिया और संघ की संस्कारित आईटी सैल अपनी लाख कोशिशों के बाद भी नहीं निबट सकती थी -- उनका खोखला राष्ट्रवाद भी काम नहीं आ सकता था। यौन अपराधी ब्रजभूषण शरण सिंह की ढाल कवच बनी भाजपा और संघ की दुविधा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही थी। इन सबके साथ लेकिन इन सबसे भी ख़ास बात थी, सब कुछ के बावजूद इन खिलाड़ियों का निडरता के साथ डटे रहना। आन्दोलन के दौरान उनके मनोबल को तोड़ने के लिए पूरे गिरोह द्वारा अभियान चलाने, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह द्वारा मोदी अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के संरक्षण का खुलेआम दावा करने, आन्दोलनकारी खिलाडिनों को कैकेयी और मंथरा कहने सहित न जाने कितने-कितने जहर उगल कर इनका मनोबल तोड़ने के शकुनि दांव चले गए, 28 मई को कैमरों के सामने उनकी हड्डी पसलियाँ तोड़ने के कुकर्म किये गए, दिल्ली पुलिस से यौनाचारी भाजपा सांसद को क्लीन चिट्स दिलवाई गयीं, कथित क्षत्रियों की पंचायतें करके धमकियां दिलवाई गयीं - मगर खिलाड़ी डटे रहे। सबसे पहले उनके समर्थन में किसान और उनका संयुक्त किसान मोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ सामने आया, उसके बाद महिला संगठन, छात्र-युवा-खिलाड़ी-कलाकार और श्रमिक संगठनों की कतारें आ खडी हुईं। ताजे समय में यह एक अभूतपूर्व लामबंदी थी, समर्थन की व्यापकता के आयाम के मामले में इसका फलक और समावेशिता हाल के दौर की सबसे बड़ी कार्यवाही 13 महीने के किसान आन्दोलन से भी कहीं ज्यादा और असरकारक थी। किसान आदोलन की तरह एक बार और हठी और अहंकारी के गरूर को तोड़ने वाला यह संघर्ष और लगभग पूरी भारतीय जनता की एकता थी, जिसने अमित शाह को आधी रात में इन खिलाड़ियों से मिलने के लिए मजबूर किया । जैसा कि कई बार पहले भी लिखा और कहा जा चुका है : मौजूदा सरकार इस देश की पहली ऐसी सरकार है, जिसकी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है, जिसकी कथनी और करनी में कोई मेल नहीं है। दूसरों की तो छोड़िये, खुद इनके अपने कुनबे के लोग इनके कहे पर यकीन नहीं करते। ठीक यही वजह है कि अमित शाह की मुलाक़ात के बाद दोनों तरह के अनुमान और कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसा होना निराधार भी नहीं है - अमित शाह, जिन्हें उनके चाटुकारों की जमात चाणक्य की उपाधि देकर अक्सर असली चाणक्य की हतक-इज्जती करती रहती है, ऐसी कथित उच्च-स्तरीय मीटिंगें करने, अपने श्रृंगाल-वृन्द से समाधान निकल जाने का शोर मचवाने और उसके बाद सब कुछ भूल जाने के मामले में कुख्यात हैं। किसान आन्दोलन के दौरान भी वे ऐसी ही चतुराई दिखा चुके हैं -- जब ठीक इसी तरह, इसी जगह, इसी समय कुछ किसान नेताओं के साथ मुलाक़ात कर आन्दोलन खत्म हो जाने का शोर मचवाया गया था। यह अलग बात है कि जमीन से जुड़े किसान इनकी रग-रग से वाकिफ थे। झांसे में नहीं आये - डटे रहे। हालांकि उसके बाद भी जो समझौता करने के लिए सरकार को मजबूर किया गया, उसे भी मानने की ईमानदारी नहीं दिखाई। इसी अदा को वे इन खिलाड़ियों के साथ आजमाना चाहते हैं और काठ की हांडी को दोबारा चढ़ाना चाहते हैं। मगर असल में अब बात जहां तक पहुँच चुकी है, वह प्रचलित कहावत "सौ जूते भी खायेंगे और सौ प्याज खायेंगे" का पल है और अब यह तय हो चुका है कि इस मामले में मोदी सरकार इस कहावत को अपने ऊपर अमल में लाने वाली है। सारी चतुराईयाँ दिखाने के बावजूद ब्रजभूषण शरण सिंह भी जायेंगे और चूक सुधारने की कितनी भी कोशिशें और हमदर्दी दिखाने का कितना भी दिखावा कर लें, 2024 के चुनाव में इसकी कीमत का चुकारा करते हुए यह सरकार भी जायेगी। (लेखक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

अमित शाह की खिलाड़ियों से मुलाक़ात

आलेख : बादल सरोज शनिवार 3 जून की रात यौन उत्पीडन के खिलाफ आन्दोलनरत खिलाड़ियों की गृहमंत्री अमित शाह से हुयी मुलाक़ात के बाद गोदी मीडिया ने खिलाड़ियों के डर जाने, आन्दोलन के बिखर जाने और साक्षी मलिक और नाबालिग बच्ची के आरोपों से मुकर जाने की जो झूठी खबरें उड़ाईं और बिना किसी लाज-शर्म […]

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गरीबी तो मिटाने दो यारो! व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा ये लो कर लो बात। अब क्या मोदी जी गरीबी भी नहीं मिटाएं। सीबीएसई की किताबों में से गरीबी का चैप्टर जरा-सा हटा क्या दिया‚ भाई लोगों ने हटा दिया‚ मिटा दिया का मार तमाम शोर मचा रखा है। बताइए‚ इन्हें गरीबी मिटाने में भी दिक्कत है। अब मोदी जी की हर बात का विरोध करने वालों को कौन समझाए कि बच्चों की किताबों से हटेगी गरीबी‚ तभी तो नये इंडिया से मिटेगी गरीबी! शुक्र है कि मोदी जी विरोधियों की नहीं सुनते हैं। वैसे कहने वाले कहते हैं कि मोदी जी समर्थकों की भी नहीं सुनते हैं‚ मोदी–मोदी की पुकारों के सिवा। खैर! समर्थकों की बात उनके घर की है‚ हम उसमें टांग क्यों अड़ाएं‚ पर मोदी जी विरोधियों की नहीं सुनते हैं‚ ये बात पक्की है। इसीलिए‚ पचहत्तर साल में जो नहीं हुआ, अब होगा; अमृतकाल वाले नये इंडिया में फाइनली गरीबी का अंत होगा। बेशक‚ पहले वालों ने भी गरीबी हटाने/मिटाने के बहुत सपने दिखाए थे। उद्योग–धंधे खोलने से लेकर‚ हरित क्रांति तक‚ सस्ती पढ़ाई से लेकर सस्ती दवाई तक‚ तरह–तरह के जतन आजमाए थे। इन्हीं सब चक्करों में पुराने इंडिया ने दसियों साल गंवाए थे। पर गरीबी‚ थोड़ी बहुत घटी भले ही हो‚ पर नहीं मिटी, तो नहीं ही मिटी। लेकिन‚ क्योंॽ पहले वाले पढ़े–लिखे मूर्ख‚ एक तरफ जमीन पर गरीबी हटाते रहे और दूसरी तरफ‚ बच्चों को स्कूलों में गरीबी का पाठ पढ़ाते रहे। गरीबी भला मिटती तो भी तो कैसेॽ खैर! मोदी जी जमीन पर गरीबी हटाने–वटाने के चक्कर में बिल्कुल नहीं आ रहे हैं‚ सीधे स्कूलों की किताबों से गरीबी हटवा रहे हैं। सिंपल है‚ किताबों से हटेगी गरीबी‚ तभी तो नये इंडिया से मिटेगी गरीबी! गरीबी को कोई जानेेगा ही नहीं‚ तो पहचानेगा कैसेॽ अटेंशन की भूखी गरीबी‚ खुद ही किसी कुएं–पोखर में जा पड़ेगी। बेशक‚ बच्चों की किताबों से और भी बहुत कुछ हटाया जा रहा है। पर मुगल काल हटाना तो ठीक था। शांति‚ शीत युद्ध वगैरह‚ हटाना भी ठीक था। विकास को हटाया, वह भी ठीक था। पर मोदी जी‚ ये डेमोक्रेसी को क्यों हटा दियाॽ संसद भवन नया है‚ तो क्या पुराने इंडिया वाली डेमोक्रेसी भी मिटाएंगे या नये इंडिया में ऑर्डर करके‚ डेमोक्रेसी की मम्मी के लिए डेमोक्रेसी भी नई बनवाएंगे? (व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)

गरीबी तो मिटाने दो यारो!

व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा ये लो कर लो बात। अब क्या मोदी जी गरीबी भी नहीं मिटाएं। सीबीएसई की किताबों में से गरीबी का चैप्टर जरा-सा हटा क्या दिया‚ भाई लोगों ने हटा दिया‚ मिटा दिया का मार तमाम शोर मचा रखा है। बताइए‚ इन्हें गरीबी मिटाने में भी दिक्कत है। अब मोदी जी की […]

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शकुनि के पांसों से खेलने की कमल (नाथ) छाप चतुराई आलेख : बादल सरोज

शकुनि के पांसों से खेलने की कमल (नाथ) छाप चतुराई

आलेख : बादल सरोज दो चुनाव पूर्व सर्वे में धमाकेदार पूर्वानुमान, शिवराज सिंह की जाहिर उजागर हड़बड़ी और बौखलाहट, भाजपा में असंतोष की खदबदाहट के बावजूद कमलनाथ बेचैन है और इस बेचैनी में वे इतने अकुलाये हुए हैं कि शकुनि के पांसों से खेलने के लिए आतुर हैं। पिछले दिनों किसी बजरंग सेना का कांग्रेस […]

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