मित्रों,
नमस्कार!
वर्षों से सोचते हुए आज मैं आपके समक्ष “सत्ता चिन्तन डॉट कॉम” प्रस्तुत कर पा रहा हूं। वैसे तो बचपन से मैं प्रेस इंडस्ट्री (मीडिया) से जुड़ा रहा; सीखता-समझता रहा। अनुभव लेते हुए मैं आज इस मुकाम पर पहुंच पाया हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबका सहयोग अवश्य मिलेगा।
सर्वप्रथम मैंने 1981 में एक समाचार-पत्र का रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन प्रकाशित नहीं कर सका। फिर 10 साल बाद गांधी जयंती 2 अक्टूबर, 1991 से “सत्ता चिन्तन” (साप्ताहिक) का प्रकाशन प्रारम्भ किया। प्रकाशन के समय काफी उतार-चढ़ाव देखे। कभी साप्ताहिक, कभी पाक्षिक तो कभी मासिक (पत्रिका) प्रकाशन किया। 2006 में इसे बड़ा आकार देते हुए 8 पृष्ठीय दैनिक प्रकाशन किया, जो कि बेहद घाटे का सौदा रहा। “सत्ता चिन्तन” (पत्रिका) को 2002 से 2005 के मध्य काफी प्रसिद्धि मिली, लेकिन अर्थाभाव हमेशा बना रहा।
अगस्त 2005 में “सत्ता चिन्तन” (पत्रिका) द्वारा ही कानपुर के गंगा बैराज में हुए घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। इसकी प्रतियां विधानसभा और सचिवालय में प्रदर्शित की गई थी। परिणामस्वरूप एक मंत्री का इस्तीफा और दर्जन भर अभियंताओं/अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा कायम हुआ। यह मेरे सहित मेरी टीम का नैतिक दायित्व था, जिसे हमने पूरा करने का प्रयास किया।
मित्रों, पत्रकारिता व्यवसाय से अधिक सेवा है। किसी भी देश में जनता का मार्गदर्शन करने के लिए निष्पक्ष एवं निर्भीक मीडिया का होना आवश्यक है। ये देश की राजनीति, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की सही तस्वीर प्रस्तुत करने में सक्षम होते हैं। चुनाव व अन्य परिस्थितियों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को जनसाधारण के मध्य अवगत कराने की जिम्मेदारी भी मीडिया को वहन करनी पड़ती है। इसके अभाव में स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिए इसे “लोकतंत्र का प्रहरी” और “लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ” कहा जाता है।
मीडिया को लोकमत का निर्माण, सूचनाओं का प्रसार, भ्रष्टाचार एवं घोटालों का पर्दाफाश तथा सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है। इसमें हर वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए समाचार, फीचर एवं अन्य जानकारियां प्रकाशित-प्रसारित की जाती हैं। पाठक व दर्शक अपनी रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार विविध जानकारियों को पढ़ते और देखते हैं।
मीडिया सरकार एवं जनता के मध्य एक सेतु का कार्य भी करता है। इसके माध्यम से जनता की आवाज, आकांक्षाएं तथा जनसमस्याओं को सरकार तक पहुंचाने का कार्य भी किया जाता है। लोकमत का निर्माण करने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। तत्पश्चात जनक्रांति ही नहीं, सत्ता में कई प्रकार के परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। भारतीय समाज में स्वतंत्रता की अलख जगाने एवं इसके लिए प्रेरित करने में तत्कालिक समाचार-पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। भारत में ही नहीं ऐसा लगभग हर देशों में हुआ है। इसीलिए नेपोलियन ने कहा था, “मैं लाखों संगीनों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों (मीडिया) से डरता हूं।”
महात्मा गांधी ने मीडिया का तीन उद्देश्य बताये हैं- (1) जन-मानस की लोकप्रिय भावनाओं को समझना और उन्हें अभिव्यक्ति देना। (2) लोगों में वांछनीय (इच्छित) संवेदनाएं जागृत करना। (3) शासन-प्रशासन की ग़लत नीतियों एवं दोषों को बेधड़क बेनकाब करना।
अन्त में, उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए मैं “सत्ता चिन्तन डॉट कॉम” का संचालन करने का प्रयास करूंगा, लेकिन इसके लिए आपका सहयोग जरूरी है। नैतिक मूल्यों से हमारे बहकते एवं भटकते कदमों को रोकने के लिए आपके सलाह, सुझाव, प्रतिक्रियाएं और आलोचनाएं हमारा सदैव मार्गदर्शन करेंगे।
धन्यवाद!!!