पांच मिनट निकालकर पढ़ना जरूर, हो सकता है कि आपकी भी आँखें खुल जायें!……
राम बहादुर को पेट में दर्द की तकलीफ थी | कई सालों से इलाज चल रहा था, 2014 के पहले से | राम बहादुर अक्सर सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाते रहते थे | आज फिर सुबह से पेट में दर्द हो रहा था | पिछले कई महीनों से कोई तकलीफ नहीं हुयी थी पर आज अचानक फिर से तबीयत नासाज़ लग रही थी | राम बहादुर की पत्नी सुनीता सुबह से जिद किए बैठी थी कि चलो अस्पताल हो आते हैं | उससे राम बहादुर की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी, पर राम बहादुर अस्पताल जाना नहीं चाह रहा था | दरअसल गाँव में प्रधान चुनाव की तैयारियां चल रही थी और राम बहादुर राष्ट्र वादी पार्टी का बड़ा समर्थक था और राष्ट्रीय पार्टी की पिछली सरकार का परम विरोधी था | उसके हिसाब से उसकी गरीबी और देश के हालात के लिए राष्ट्रीय पार्टी ही जिम्मेदार थी जो 70 साल तक सत्ता में होने के बावजूद उसके जैसे गरीबों को करोड़पति नहीं बना सकी| इसीलिए राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार को हराने के लिए वो राष्ट्र वादी पार्टी के प्रत्याशी दामोदर दास का चुनाव प्रचार के काम में लगा हुआ था |
सुनीता की जिद देखकर राम बहादुर ने सोचा कि चलो ज्यादा बिगड़ने से पहले डॉक्टर को दिखा लिया जाए | वैसे भी कोई पैसा तो लगना नहीं था क्यूँकी सरकारी अस्पताल में सिर्फ एक रुपये में इलाज मिलता था और दवा और जांच भी मुफ्त उपलब्ध थी |
खैर राम बहादुर शहर जाने के लिए रेल्वे स्टेशन पर आया क्यूँकी शहर जाने के लिए सबसे अच्छा और सस्ता साधन ट्रेन ही थी | पर ये क्या गंदा सा रहने वाला स्टेशन आज चकाचक चमक रहा था | स्टेशन के कर्मचारी भी बदले हुए से लग रहे थे | हर तरफ शीशे लगे हुए और एयर कंडीशनर भी लगे हुए थे | ये तरक्की देखकर राम बहादुर बहुत खुश हुआ | उसके गाँव का छोटा सा स्टेशन शहर के स्टेशन से भी सुन्दर और साफ़ सुथरा था | उसकी अपनी राष्ट्र वादी पार्टी के प्रति श्रद्धा और भी बढ़ गयी |
“क्या सरकार आयी है देश में, हर तरफ विकास ही विकास | देखा सुनीता, इसे कहते हैं देश भक्त सरकार |” राम बहादुर ने अपनी पत्नी सुनीता को कहा जो उसे स्टेशन पर छोड़ने आयी थी |
“एक टिकट कानपुर” राम बहादुर ने 10 रुपये का नोट टिकट खिड़की की तरफ बढ़ाते हुए कहा |
“कानपुर का टिकट 129 रुपये का है” टिकट खिड़की पर बैठा कर्मचारी बोला |
राम बहादुर आज कई महीनों के बाद घर से निकला था तो उसे अंदाजा नहीं था कि देश में कितना कुछ बदल चुका है |
“क्या, 129 रुपये |”राम बहादुर अवाक रह गया | “इतने रुपये में तो एक हफ्ते का खाना खर्चा चल जाता है |”
“टिकट इतने का ही है | लेना है लीजिए या फिर लाइन से हटिए ” टिकट खिड़की के कर्मचारी ने कहा |
राम बहादुर ने नजर उठाकर उस आदमी को देखा | सूट और टाई में बैठे उस आदमी के अंदर कोई अपनत्व वाली बात नहीं दिखी |
इससे पहले टिकट खिड़की पर बैठने वाले बाबू लाल राम बहादुर को देखकर ही पहचान लेते थे और बिना कहे ही कानपुर का टिकट बनाकर दे देते थे | कितनी ही बार राम बहादुर के पास पैसे कम होने पर उन्होंने अपनी जेब से पैसे मिलाकर टिकट बना कर दे दिया था |
राम बहादुर ने चारों तरफ नज़र घुमा कर देखा पर कोई पुराना चेहरा वहाँ उसे नज़र नहीं आया |
“वो बाबूलाल जी कहाँ गए ” राम बहादुर ने अचकचा कर पूछा
“दादा रेल्वे का निजीकरण हो गया, पुराने सब लोग हटा दिए गए | अब स्टेशन कंपनी चलाती है और कंपनी के लोग ही यहां काम करते हैं |” पीछे खड़े आदमी ने राम बहादुर को बताया
निराश होकर राम बहादुर ने मन मारकर अपनी जेब से 129 रुपये निकाल कर चुप चाप टिकट खिड़की की तरफ़ बढ़ा दिए |
” और कोई भी है क्या साथ में” टिकट खिड़की वाले ने पूछा
” हाँ, ये हमारी घर वाली हैं | हमें छोड़ने आयी हैं |” राम बहादुर ने बताया
“तो 50 रुपया प्लेटफॉर्म टिकट का और दो ” टिकट खिड़की के कर्मचारी ने कहा
“प्लेटफॉर्म पर जाने का भी पैसा|” राम बहादुर हैरान होकर बोला
” हाँ भाई, 50 रुपया प्लेटफॉर्म टिकट का जल्दी निकालो” टिकट खिड़की से कर्मचारी झल्लाया
बड़ी उदास आंखों से राम बहादुर ने 50 रुपया खिड़की पर रखा | अपनी खून पसीने की कमाई ऐसे लूटती देखकर राम बहादुर को रोना आ रहा था |
” मेरा टिकट रहने दो मैं वापस चली जाती हूँ ” सुनीता राम बहादुर को देखकर बोली
तब तक दोनों टिकट बनकर राम बहादुर के हाथ में आ चुके थे |
सुनीता को लेकर राम बहादुर प्लेटफॉर्म पर पहुंचा | अंदर की रूप रेखा सब बदल चुकी थी | ना वहाँ श्यामू की चाय की दुकान बची थी ना रफीक की पूरी सब्जी का ठेला |
10 मिनट के इन्तेजार के बाद ट्रेन आ गयी और राम बहादुर सुनीता को विदा करके ट्रेन के अंदर आया | ट्रेन में अब भी वही भीड़ थी और बैठने की जगह बामुश्किल उसे मिल पाई |
“जब इतना पैसा ले रहे हैं तो फिर उतनी सुविधाएं भी बढायें |” राम बहादुर ने मन ही मन सोचा |
आधे घंटे बाद ट्रेन कानपुर पहुंची | राम बहादुर उतर कर स्टेशन से बाहर आया और सरकारी बस का इन्तेज़ार करने लगा |
काफी देर खड़े रहने के बाद जब बस नहीं आयी तो पास खड़े एक आदमी से पूछा” ये अस्पताल जाने वाली सरकारी बस कितनी देर में आएगी |”
“सरकारी बस अब नहीं चलती | अस्पताल जाने के लिए टैक्सी लेनी पड़ेगी |” उस आदमी ने बताया |
“बंद कब हुयी |” राम बहादुर ने आश्चर्य से पूछा
“सरकार ने ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन निजी कंपनी को बेच दी थी | निजी कंपनी ने किराया चार गुना बढ़ा दिया, लोगों ने चलना बंद कर दिया | जब घाटा हुआ तो कंपनी ने बसें बंद कर दीं और टैक्सी चालू कर दीं |” उस आदमी ने बताया
” तो टैक्सी कहां से मिलेगी |” राम बहादुर ने पूछा
” अभी रुको मंगवा देता हूँ |” उस आदमी ने हाथ के इशारे से एक टैक्सी वाले को रोका और राम बहादुर को अस्पताल तक छोड़ने के लिए कहा |
” बैठिए सर, 150 रुपया चार्ज लगेगा |” टैक्सी वाला बोला
” 150, बस से तो पांच रुपये में अस्पताल पहुंच जाते थे |” राम बहादुर चौंक कर बोला |
” क्या सर मज़ाक करते हैं | पांच रुपये किस ज़माने की बात है | बस तो कब की बंद हो चुकीं | अब तो यही चार्ज देना पड़ेगा | ” टैक्सी वाले ने राम बहादुर को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा
” आपको जाना है तो बैठिए वर्ना मैं चलता हूँ |” टैक्सी वाले ने कहा
” चलो भाई, राम नाम की लूट है |पहले जरा बैंक तक ले चलो |” राम बहादुर बैठते हुए बोला
बैंक में आकर राम बहादुर ने देखा कि बैंक की काया कल्प बदल चुकी है | स्टाफ भी सब बदल गया था | पासबुक निकाल कर राम बहादुर ने छापने को दी तो पता चला उसके खाते से बारह सौ रुपये कट गए हैं | राम बहादुर भौचक्का रह गया | काउन्टर पर बैठे स्टाफ से पूछा तो पता चला कि चार हजार उसके खाते में जमा थे जिसमें से छह सौ रुपये ए टी एम का चार्ज कट गया और बाकी लेन देन ना होने की वजह से पेनाल्टी लग गयी |
“बड़ा अंधेर है भाई |इतना इतना चार्ज पहले कभी नहीं लगा खाते में बाबू जी | गरीब आदमी हूँ | इलाज करवाने के लिए शहर आया हूँ | पैसे नहीं मिलेंगे तो इलाज कैसे होगा बाबू जी |” राम बहादुर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा
“हम कुछ नहीं कर सकते हैं | चार्ज तो देना ही होता है | पहले बैंक सरकारी था तो सब सुविधाएं फ्री थी | अब तो हर सुविधा का चार्ज लगता है | अब बैंक सरकार नहीं बल्कि निजी कंपनी चलाती है |” स्टाफ ने बताया
मायूस मन से बचे हुए पैसे निकालने के लिए राम बहादुर ने वाउचर भरा |
” पूरा पैसा नहीं मिलेगा | खाते में एक हजार रखना पड़ेगा |” कैशियर ने कहा
” क्यूँ भैया |” राम बहादुर ने अचरज से पूछा” इससे पहले भी कई बार हम पूरा पैसा निकाल कर ले जा चुके हैं | अपने खाते का पैसा अगर वक़्त पर काम नहीं आयेगा तो फिर पैसा जमा करने का क्या फायदा |”
” वो सब नहीं पता |यही नियम है |एक हजार कम करके वाउचर भरो |” कैशियर ने कहा
” साहब, इतना अधर्म मत करो | गरीब आदमी इलाज बिना कैसे जाएगा | पैसा दे दो बाबू जी |” राम बहादुर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा
” नहीं हो सकता है बताया ना आपको | पहले जैसा नहीं है अब | हर चीज नियम से होती है |” कैशियर बोला
” नियम, कैसा नियम? नियम इंसान से बड़ा है क्या|?
एक आदमी मर जाये तो उसके खाते में जमा पैसे किस काम के ?
देख लीजिए हुजूर | इलाज के लिए गाँव से दौड़ कर आया हूँ | काम नहीं चलेगा साहब | दया कर दो हम पर |” राम बहादुर दूसरा वाउचर देकर लगभग रोते हुए बोला
” नहीं हो पाएगा भाई | तुम लोगों के साथ यही दिक्कत है | समझते ही नहीं हो | पहले जैसा नहीं है अब कुछ भी | इतना लेना है तो लो वर्ना जाओ |” कैशियर ने पैसे देते हुए कहा
हाँ,अब पहले जैसा कहाँ है ?
पहले तो आदमी आदमी को पूछता था | मन में एक अपनापन होता था | अब कोई किसी को नहीं पहचानता | सब मशीन की तरह लगे हुए हैं | निजीकरण से क्या आदमी आदमी नहीं रहता ?
ये सब सोचते हुए राम बहादुर ने भारी मन से हाथ में पैसे लिए और अपनी किस्मत को कोसते हुए अस्पताल की तरफ चल दिया |
अस्पताल पहुँच कर राम बहादुर ने देखा कि पुराना बेरंग सा अस्पताल गायब है और उसकी जगह पर आलिशान बहु मंजिली इमारत खड़ी है। फर्श तो ऐसी चमकदार की पैर रखने में भी डर लग रहा था |
राम बहादुर बहुत खुश हुआ कि उसकी पार्टी ने देश में कितना अच्छा काम किया है | पहले की सरकार ने कोई काम नहीं किया, सत्तर सालों तक सिर्फ देश को और गरीबों को लूटा है।
पार्टी भक्ति का नशा अभी भी उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा था |
गाँव पहुंच कर वो सबको इस आलीशान अस्पताल के बारे में जरूर बताएगा।
ये सोचते हुए अस्पताल के अंदर जाने लगा |
राम बहादुर को अंदर घुसते देखकर सिक्योरिटी गार्ड ने घूरा |
“कहां जाना है ?”
“पेट दर्द का इलाज चलता है हमारा | कई महीने से ठीक था आज फिर तकलीफ शुरू हो गयी तो सोचा दिखा लूँ |” राम बहादुर डरते हुए बोला
“कितने समय बाद आए हो?” गार्ड ने पूछा।
“यही कोई एक डेढ़ साल बाद |” रामबहादुर ने जवाब दिया
“अच्छा, तो फिर बीमा करवा लिए हो ना?” गार्ड ने अगला सवाल दागा
” बीमा! वो किसलिए? ” राम बहादुर ने गार्ड की ओर देखकर पूछा
” अरे बीमा नहीं होगा तो क्या जमीन बेचोगे इलाज के लिए?” गार्ड ने कहा
“जमीन क्यूँ बेचेंगे,इतना महंगा कौन सा इलाज होना है ?” राम बहादुर ने झेंपते हुए पूछा
” अंदर जाओ पता चल जाएगा |” गार्ड ने हंसते हुए कहा
राम बहादुर उसकी बात को अनसुनी करते हुए अस्पताल के अंदर दाखिल हुआ |
अंदर पहले जैसी भीड़ नहीं थी | ना ही पहले जैसी बेतरतीब व्यवस्था | सब कुछ सिस्टम से हो रहा था | पैसे के लेन देन का काउंटर अलग था | डॉक्टर से मिलने के लिए अलग |
राम बहादुर ने कैश काउन्टर पर जाकर पर्चा बनवाने के लिए एक रुपये का सिक्का रखा |
“अरे बाबू जी, राम बहादुर के नाम से पर्चा बना दो |” उसने काउन्टर पर बैठे अस्पताल के कर्मचारी को बोला
काउन्टर पर बैठे आदमी ने कंप्युटर से नज़र उठाकर पहले राम बहादुर को देखा और फिर काउन्टर पर रखे हुए एक रुपये के सिक्के को |
“ये सिक्का किसलिए रखा है ?” उसने राम बहादुर से पूछा
” अब पर्चा बनवाने की फीस भी नहीं लगती क्या? ” राम बहादुर सच में झल्ला चुका था |
“फीस क्यूँ नहीं लगती,लगती है लेकिन ये एक रुपया किसलिए रखा?
फीस तो पांच सौ रुपये है |” उसने राम बहादुर को टोकते हुए कहा
“क्या, पांच सौ रुपया अस्पताल की फीस ?
गरीब आदमी पांच सौ रुपया कहाँ से लाए बाबू जी?
पहले तो एक रुपया ही फीस लगती थी | और दवा , जांच सब मुफ्त था |” राम बहादुर का सब्र जवाब दे रहा था
” अरे भाई, बहस मत करिए | पैसे दीजिए, मुझे और भी बहुत काम है |” अस्पताल कर्मी ने झल्ला कर कहा
राम बहादुर चिल्लाना चाहता था, लेकिन अस्पताल के भारी भरकम गार्ड्स को देखकर उसकी हिम्मत नहीं हुयी | उसे याद आया किस तरह एक बार इसी अस्पताल में उसने थोड़ा तेज इंजेक्शन लग जाने पर वार्ड ब्वाय को मार दिया था और वो चुपचाप गाली सुनकर चला गया था |
पर्चा बनवाकर वो डॉक्टर के कैबिन में पहुंचा तो वातानुकूलित कैबिन में सफेद कोट पहने डॉक्टर साहब कुछ पढ़ने में लगे हुए थे | उसके हाथ से पर्चा लेकर कंपाउंडर ने डाक्टर साहब की मेज पर रखा |
“क्या हुआ?” डॉक्टर साहब ने बिना नज़र उठाए राम बहादुर से पूछा
“साहब कई सालों से हमारा पेट दर्द का इलाज चलता है | पिछले एक डेढ़ साल से कोई तकलीफ नहीं थी | आज सुबह अचानक फिर से पेट में दर्द शुरू हो गया |” राम बहादुर ने डॉक्टर को बताया
“हम्म, जी आई इन्फेक्शन लगता है | चलो, देखो कुछ जांच करानी पड़ेंगी | और ये दवा लिख देता हूँ एक हफ्ते खाओ और जांच रिपोर्ट लेकर अगले हफ्ते आओ ” डॉक्टर साहब ने कहा
पर्चा लेकर कंपाउंडर ने राम बहादुर को पैथोलॉजी में जाने को बोला | राम बहादुर पैथोलॉजी में आकर खड़ा हुआ | वहाँ अलग अलग जाँच के लिए अलग अलग कमरे थे | काउन्टर पर पहुँचकर राम बहादुर ने पर्चा दिखाया |
” 7350 रुपये” काउन्टर पर बैठे आदमी ने कंप्युटर स्क्रीन पर से रेट चार्ट पढ़ते हुए कहा
“अब ये किस चीज के ” राम बहादुर ने विस्मय से पूछा
“4000 रुपये सोनोग्राफी और दूसरी जाँचों की फीस है और 3350 रुपये दवा के ” पैथोलॉजी वाला आदमी बोला
“पहले तो ये सब कुछ नहीं लगता था | आम आदमी एक रुपये के पर्चे से इलाज कराकर फ्री की दवा और मुफ्त जांच करवा कर हंसी खुशी घर चला जाता था | तुम लोगों ने तो हर चीज को धंधा बना लिया है |” राम बहादुर चीखते हुए बोला
” पहले की बात मत करो | मुफ्त का खा खाकर मोटे हो गए तुम लोग | अस्पताल अब सरकार नहीं, बल्कि निजी कंपनी चलाती है |
जांच और दवा सबका पैसा देना पड़ता है | ऐसे ही ये आलीशान अस्पताल नहीं खड़ा हो गया | पैसा नहीं कमाएंगे तो ये अस्पताल कैसे चलेगा?
आपके पास पैसे हों तो यहाँ इलाज करवाएं नहीं तो वापस जायें!” अस्पताल के कर्मचारी ने गुस्से से चिल्लाते हुए राम बहादुर को बोला
” वापस जायें, कैसे वापस जायें? उसके लायक भी तो नहीं छोड़ा तुम लोगों ने |
गरीबों का खून चूस रहे हो निजीकरण के नाम पर |
मैं अभी सरकार से तुम्हारी शिकायत करूंगा |” राम बहादुर ने रौब झाड़ते हुए कहा
“किस सरकार से?
वही जिसने तुम्हारा भविष्य निजी कंपनियों के हाथ में गिरवी रख दिया?
जाओ, देख लो शिकायत करके ,कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा |
तुम अपने आप को बेच चुके हो | धर्म, जाति के अंधे नशे में तुम्हें घेरकर सरकार ने तुम्हें बेच दिया |
तुम्हारा और तुम्हारी पीढ़ियों के नसीब का सौदा कर दिया |
जब यह सब बिक रहा था तब तुम हिन्दू मुसलमान के झगडे में उलझे रहे |
तुम्हें लगता था कि बिकने वाले संस्थानों ने तुम्हारा नुकसान किया है! और सोचते थे कि उनके बिकने से तुम्हारा खुद का घर भर जाएगा |
तुम्हें लगता था कि उनके बिकने से सब कर्मचारियों को सबक मिलेगा और सब तुम्हारे नौकर बन जाएंगे?
किन्तु देखो, ऐसा हुआ नहीं |
तुम ठग लिए गए हो, तुम्हें धर्म की घुट्टी पिलाकर मदहोश किया गया और तुम अपने ही लोगों के दुश्मन बन गए | तुमने दूसरों के लिए गड्ढा खोदा और तुम खुद ही उसमे गिर गए |
अभी भी वक़्त है, अपना भविष्य बचा सकते हो तो बचा लो | जिन संस्थाओं को तुम अपना दुश्मन मान बैठे थे, वही तुम्हारी सुख दुख की साथी हैं | बचा सकते हो तो बचा लो | अपने और अपने बच्चों के भविष्य को |
पीछे से कोई तेज आवाज मे ये सब बोल रहा था |
राम बहादुर ये आवाज पहचान गया था | ये वही आदमी था जिससे डेढ़ साल पहले राम बहादुर ने लड़ाई की थी | उसकी अस्पताल ने नौकरी खत्म कर दी थी और अपनी बची हुयी तनख्वाह के लिए वो तभी से चक्कर काट रहा था |
राम बहादुर उससे कुछ कहे उससे पहले ही पैथोलॉजी वाले ने गार्ड को राम बहादुर को अस्पताल के बाहर निकालने का आदेश दे दिया था और गार्ड ने राम बहादुर को धकियाते हुए अस्पताल से बाहर फेंक दिया |
विकास केवल एक ही क्षेत्र में नहीं होता है इसलिए पेट्रोल, डीजल,गैस, बस, ट्रेन, मकान का टैक्स,पानी का टैक्स,बिजली और टेलीफोन,जूते, कपड़े और खाद्य सामग्री, सभी का विकास किया जाएगा।
इतना विकास कि आम आदमी की पहुंच से दूर जाएं, जैसे शताब्दी और राजधानी ट्रेन तथा सवाई जहाज हुआ करते थे। वैसे ही कुछ दिनों में पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेन तथा बस होने वाली है।
माननीय पीएम ने कहा था कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज में सफर कर सकेगा?
यह व्यंग्य किया था न कि सुविधा देने की बात की थी।
क्योंकि पीएम साहब जानते थे कि हवाई चप्पले पहनने वालों के लिए भविष्य मे ट्रेन भी हवाई जहाज जैसी दुर्लभ होने वाली है।
राम बहादुर अब तक समझ चुका था कि कैसे उसने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी ऐसी पार्टी की सरकार का समर्थन करके जो बरसों की मेहनत से खड़ी की गयी संस्थाओं को बेचने में लगी हुयी थी और जनता धर्म के नशे में उलझकर आपस में ही लड़ती रही |
राम बहादुर के सर पर चढ़ा धर्म और फर्जी राष्ट्रवाद का नशा उतर चुका था और उसे असली और नकली देश प्रेम का अन्तर समझ आ गया था |