टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, हैदराबाद के रीडर और वर्ष 2020-21 के लिए स्वर्ण जयंती शोधकर्ता पबित्रा के. नायक अगली पीढ़ी की कम लागत वाली सक्षम अर्धचालक सामग्री बनाने करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं के समूह का नेतृत्व कर रहे हैं जो इस क्षेत्र की प्रौद्योगिकी में भारत की अगुवाई में योगदान कर सकता है।
भारत ने हाल ही में अर्धचालक (सेमीकंडक्टर्स) के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में देश को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए 2,30,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की है क्योंकि आधारभूत बिल्डिंग ब्लॉक और अगली पीढ़ी की कम लागत वाली सक्षम अर्धचालक सामग्री आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के मुताबिक देश को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
मेटल हैलाइड पेरोवस्काइट और कार्बनिक अर्धचालकों जैसी कम ऊर्जा संसाधित करने योग्य सामग्री से बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से साध्य इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोग सिद्ध हो सकता है। हालांकि, पारंपरिक अकार्बनिक अर्धचालकों के साथ प्रतिस्पर्धा में कार्बनिक पदार्थ और हैलाइड पेरोव्स्काइट अभी भी विद्युत चालकता में कम हैं। इस कमी को डोपिंग के माध्यम से दूर किया जा सकता है जिससे अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रॉनों (या छिद्र) की चालकता में वृद्धि हो या अन्य अर्धचालकों या धातुओं के इंटरफेस पर चार्ज इंजेक्शन/एक्सट्रैक्शन के गुणों को नियंत्रित करने के लिए, इस प्रकार उपकरणों के प्रदर्शन को प्रभावित किया जा सके।
अनुसंधान समुदाय का अधिकांश ध्यान इलेक्ट्रॉनिक डोपेंट्स सिस्टम विकसित करने में रहा है जो अत्यधिक जटिल और प्रतिक्रियाशील कार्बनिक या कार्बनिक व धातुई जटिलताओं पर आधारित है, जो काफी हद तक अक्षम होती हैं और डिवाइस की दीर्घकालिक स्थायित्व को प्रभावित करने वाली अशुद्धियों को पीछे छोड़ देती हैं। इस प्रकार इन दृष्टिकोणों से परे और इलेक्ट्रॉनिक डोपिंग में अत्याधुनिक अनुसंधान से परे देखने की जरूरत है।
डॉ. नायक ने ’नेचर मैटेरियल्स’ में प्रकाशित एक शोध-पत्र में कार्बनिक अर्धचालकों के लिए योगोत्पाद आधारित डोपेंट सिस्टम (अशुद्धियां जो अर्धचालकों की विद्युत चालकता को बदल सकते हैं) का पहला उदाहरण बताया है, जहां डोपेंट किसी भी साइड प्रोडक्ट यानी अशुद्धियों को पीछे नहीं छोड़ते हैं और डोपेंट की मौजूदा श्रेणी से बेहतर काम करते हैं। उभरते हुए सोलर सेल प्रौद्योगिकियों की प्रगति को आगे बढ़ाने वाली सामग्री हैलाइड पेरोव्स्काइट्स में क्रिस्टलीकरण और डोपिंग की समझ के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की स्वर्ण जयंती फेलोशिप के विजेता डॉ. नायक का लक्ष्य अब आण्विक योगोत्पादों (विशेष प्रकार के अनेक अणुओं के संयोजन से बनी है अणुओं की एक प्रजाति यानी मोलेक्यूलर स्पेसीज) और विभिन्न प्रकार के अर्धचालकों के सक्षम व स्वच्छ इलेक्ट्रॉनिक डोपिंग के लिए रेडिकल्स पर आधारित नए डोपिंग एजेंटों को विकसित करना है। उन्हें उम्मीद है कि इससे नये सिस्टम तैयार करने में मदद मिलेगी जिनका प्रदर्शन बेहतर होगा।
उनका समूह कार्बनिक और मेटल हैलाइड पेरोव्स्काइट सेमीकंडक्टर्स के पी-टाइप और एन-टाइप इलेक्ट्रॉनिक डोपिंग के के मेकेनिज्म की जांच करेगा। इलेक्ट्रॉनिक दोषों को बेअसर करने के लिए प्रक्रियाएं विकसित की जाएंगी, जो अक्सर डिवाइस के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार होती हैं। समूह द्वारा विकसित नई डोपिंग विधियों और सामग्रियों का उपयोग अत्याधुनिक पेरोव्स्काइट और कार्बनिक-आधारित सोलर सेल्स प्रकाश उत्सर्जक उपकरणों और ट्रांजिस्टर और विषम संरचनाओं साबित करने के लिए किया जाएगा। नई डोपिंग विधियों और डोपेंट से नरम अर्धचालकों के डोपिंग में एक बड़े बदलाव की उम्मीद है क्योंकि इनसे अत्यधिक महंगे डोपेंट अणुओं पर हमारी निर्भरता समाप्त हो जाएगी। डोपेंट की नई पीढ़ी अपनी दक्षता और स्थिरता में सुधार करके डिस्प्ले, सोलर सेल और बायो-इलेक्ट्रॉनिक्स में अगली क्रांति लाएगी। यह कम लागत और प्रिंट करने योग्य इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापक अनुप्रयोग को सक्षम करेगा।
डॉ. नायक ने बताया कि इन सभी संभावनाओं से अर्धचालक सामग्री अनुसंधान और विकास में भारत की प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा, जो स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग से संचालित स्थायी सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
विस्तृत जानकारी के लिए पबित्रा कुमार नायक (pabitra.nayak@tifrh.res.in) से संपर्क किया जा सकता है।
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