जंगल पनपेंगे फिर भी ! किसान पैदा करेंगे फिर भी ! मौजूद रहेंगे शहर फिर भी ! आदमी लेंगे सांस फिर भी !
इस समय दुनिया में लगभग एक साथ वित्तीय पूंजी, बाजार पूंजी, कारपोरेट पूंजी व क्रोनी पूंजी- मचल और उफन रही हैं! नव उदारवादी व्यवस्था से पहले यह स्थिति नहीं थी! पिछले तीन दशक में भारत में आर्थिक असमानता काफी बढ़ी है और निरंतर बढ़ती जा रही है. आर्थिक असमानता के साथ-साथ बड़े पैमाने पर लूट […]
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