द्वारा : इं. एस. के. वर्मा
*आज मन में आया तो बाजार से लीची घर लेकर आया! मन में क्या आया बल्कि सच कहूं तो सपने में बाबा आकर बोले(सुबह का सपना अक्सर सच ही होता है) कि बच्चा आज मुझे जहां आपको दर्शन दूंगा!
मन बड़ा व्याकुल और व्यथित था आखिर बाबा से मिलने की मन में एक अलग ही उमंग थी!
अचानक ही मुझे लीची बेचने वाले का ठेला दिखाई दिया।
बस मेरी गाड़ी का स्टेयरिंग अचानक उधर ही मुड गया! और जाकर सीधे लीची वाले के पास गाड़ी रुकी।
हमने आव देखा न ताव एक हाथ से लीची उठायी और हमारा दूसरा हाथ ठेले पर रखे चाकू की ओर बढने लगा।
हालांकि लीची खाने की कोई भी तमन्ना दिल में नहीं थी।
और देखते ही देखते हमने लीची को काट डाला। देखते क्या हैं अंदर बाबा विराजमान हैं।
हमारी तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, वही दंडवत प्रणाम किया तो लीची वाला फटीफटी आंखों से हमे देख रहा था।
हमने उस लीची विक्रेता से उसका नाम पूछा तो उसने अहमद बताया।
बताया क्या दिख भी रहा था क्योंकि उसने तहमद भी लपेटा हुआ था।
अब तो हमारी आँखे लाल हो गयी, (गुस्से में नहीं बल्कि बाबा के मिलने की खुशी में।)
लेकिन हमारे हाथों में चाकू और आँखे देखकर ठेले वाला अहमद सकपकाया और तहमद उठाकर दौड़ने ही वाला था। हमने उसे पकड़ा और पूछा, तुम लोग सुधरने वाले नहीं हो!
बताओ हमारे बाबा को लीची में क्यों कैद करके रखा हुआ है?
वो बोला बाबू जी हम तो खरीदकर लाते हैं, वहीं किसी ने रखा होगा?
हमने पूछा कहां से खरीदकर लाते हो?
बोला शब्बीर की आढ़त से लाते हैं डेढ़ सौ रुपए किलो देता है और हम दो सौ रुपए बेचकर बच्चों का पेट पालने के लिए यह काम करते हैं।
हमारी तो त्योरियां चढ़ गयी, और नथूने फूलने पिचकने लगे!
मतलब हमारे बाबा को कैद करके बेचते हो और धन कमाते हो, इतनी बड़ी स्मंगलिंग का धंधा करते शर्म तो बिल्कुल भी नहीं आती है?
चलो चुपचाप भरो सारी लीची हमारी गाड़ी की डिक्की मे, यें लीची खाने के लिए नहीं बल्कि पूजा के योग्य है! हमारे इसमे हमारे बाबा का लिंग है और आप लोग हैं कि स्मंगलिंग कर रहे हो?
देखते ही देखते भीड़ जुट गयी और जयकारे लगाने लगी, बाबा मिल गये, बाबा मिल गये!
भीड़ में आवाजें मुखर होने लगी मारो साले को!
हमने किसी तरह समझाकर मामला शांत कराया कि साले को मारना है तो अपने साले को जाकर मारो,लेकिन पत्नी की अनुमति लेकर, वरना तो आपका भुर्ता बनना निश्चित है।
रही बात लीची की, तब तक मुझे भी याद आ चुका था कि बचपन में जब हम लीची खाया करते थे तो ऐसा ही कुछ उसमें भी निकलता था। मगर तब हम अबोध बच्चे थे, हिन्दू मुसलमान की इतनी समझ नहीं थी।
जबसे समझदार हुए हैं तब से हर दाढ़ी वाला देश और धर्म व भगवान का दुश्मन नजर आने लगा है।
बची खुची कसर आज अहमद के ढेले पर पूरी होते होते बची।
शुक्र था कि चाकू हमारे ही हाथ में था,वरना भीड़ का क्या भरोसा, कोई बड़ी घटना भी घट सकती थी।
हमने अहमद को कहा जान की सलामती चाहते हो तो चुपचाप खिसक लो मियां!
वो बोला बाबू जी पांच हजार की लीची हैं अभी मुश्किल से दो किलो ही बिक पायी थी कि आप आ गये और बवाल खड़ा हो गया।
हमने उसे पांच सौ रुपए देकर दफा किया और भीड़ को समझाया कि देखो ताव खाने से कुछ नहीं होगा।
समझदारी दिखाओ और लीची मुफ्त में खानी है तो आप भी किसी अहमद ठेले वाले के पास जाओ।
बाबा को एकबार फिर से दंडवत प्रणाम करके गाडी के डेसबोर्ड पर रखा और घर आये। मिसेज ने पूछा इतनी लीची क्यों उठा लाए, सस्ती भी मिल रही थी तो क्या जरूरत थी इतनी लाने की?
हमने कहा, हमेशा ही कुछ भी जानै बगैर ही शुरू हो जाती हों बात तो सुना करो?
बोली बताईए श्रीमान जी,इतनी लीची क्यों खरीदकर लाए हैं और आफिस भी शायद नहीं गये इसलिए इतनी जल्दी लौट आए हैं?
हमने कहा पहले हाथ और मुंह धोकर आकर पूजा की थाली लेकर आओ।
वो असंमजस में पड़ गयी लेकिन अब तो हमारी बेटिंग करने की बारी चल रही थी ना? इसलिए तुरंत आदेश का पालन हुआ।
तब हमने हाथ में संजोकर रखे बाबा को निकाला और जोर से जयकारा लगाया बाबा मिल गये!
इतना कहना भर था कि पत्नी ने भी दंडवत प्रणाम करके अगरबत्ती सुलगा दी।
बोली यह चमत्कार कैसे हुआ?
हमने कहा ज्यादा सेंटीमेंटल होने की जरूरत नहीं है। सारी लीची अच्छे से धुलकर छीलवाओ और मक्सी में डालकर बेहतरीन सा जूस बनाओ।
ध्यान रहे इसमें बस रहे बाबा को जरा भी खरोंच भी नहीं आनी चाहिए।
मुफ्त का माल खाने का भी जो आनन्द है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है।
वैसे भी जब आस्था और श्रद्धा तथा भावना जुड़ी हो तो बात ही निराली है।
लीची का जूस बहुत बार पीया था लेकिन आज जितनी मिठास कभी नहीं महसूस हुई।
जब हमने मिसेज को सारी बातें बताई तो बोली आपने तो पाप किया है!
हमने कहा कौन सा पाप और कैसा पुण्य?
यह सब मनुष्यों ने अपनी सुविधानुसार मनघडंत परिभाषाएं बना रखी है।
जब चाहे पाप समझ लो और जब चाहे पुण्य!
गाय के दूधमुंहे बच्चे से दूध छुड़ाकर खीर, पनीर, घी और मिठाईयां खाते पाप नहीं लगता है?.
लेकिन गाय को जरा छड़ी मार दो पाप लगेगा?
जब तक दूध देती है वो माता है लेकिन दूध देना बंद तो कैसी माता और किसकी माता?
सड़कों पर आवारा घूमती और पालेथिन व कचरे के ढेर में चारा ढूढंते देखकर कितने हिन्दुओ को तरस आता है माता जी पर?
मधुमक्खियों की सालभर की मेहनत और उनके नवजात बच्चों के लिए इकट्ठा किया गया शहद एक ही झटके में तोड़कर सारे विटामिन्स और मिनरल्स का खजाना उसी में खोजते पाप और पुण्य का जरा भी ध्यान नहीं रहता है?
आदमी को रिक्शा में बैठाकर रिक्शा खींचने वालों से दस रुपए कम कराने में किसको अपनी कुशाग्र बुद्धि पर नाज नहीं होता है। जबकि होटल मू खाना खाकर जीएसटी सहित बिल भी बिना दाम पूछे ही चुकाते और सौ रुपए वेटर को टिप देकर राजा महाराजाओं जैसी फीलिंग किसे नहीं आती है?
मोहतरमा इस पाप और पुण्य के चक्कर में पडोगी तो एकदिन भी जिंदा नहीं रह पाओगी।
सबसे अधिक शाकाहारी और अहिंसा के पुजारी तो जैन होते हैं लेकिन पानी को कितना भी फिल्टर कर ले क्या उसके सारे वैक्टिरिया मर सकते हैं? मान लीजिए मर भी गये तो डेडबाडी कैसे निकाल पाएंगे?
हवा के साथ यानि सांस लेते समय भी लाखों करोड़ों वैक्टीरिया मरते हैं।
बताईए बिना सांस के कैसे कोई जिंदा रह पाएगा?
अजीब लोग हमारे डाक्टर भी, कोरोना कै समय मास्क लगाने की सलाह दे डाली जो आज तक बादस्तूर बरकरार है लेकिन कभी सोचती हो कि कोरोना का आकार कितना अति सूक्ष्म होता है?
वो सूक्ष्मदर्शी को भी कई गुना ज़ूम करके देखना संभव है जबकि किसी भी मास्क के छिद्रो के आरपार नंगी आँखो से भी देखा जा सकता है।
मतलब यह है कि इतना सूक्ष्म वायरस क्या इन छिद्रों से होकर नहीं गुजरेगा?
हमारे लिए सूक्ष्म छिद्र होंगे लेकिन उसके लिए तो सिक्सवे लेन से कम थोड़े ही होंगे?
मेरी प्यारी पत्नी मौका मिला है तो जूस का आनन्द खराब मत करो उसे हमारे पेट में मौजूद एक किलो चार सौ ग्राम यानि अरबो वैक्टीरिया की खुराक बनने दो वो सब भी जूस पीकर इतनी दुआ देगें और शरीर को पुष्ट करेंगे कि अकेला अहमद दस साल भी बददुआ देगा तो भी वैक्टिरिया की दुआ उस पर भारी पडेगी।
यानि यह पाप नहीं बल्कि बहुत बड़ा पुण्य का काम है।
यदि पुण्य का काम न होता तो किसान और मजदूरो के पेट पिचके और सेठों और पुजारियों की तोंद न निकली होती!
क्योंकि इनको ठगकर वो अपने वैक्टीरिया का पोषण करके उनको तंदरुस्त करते हैं इसलिए उन मजदूरों और किसानों की बददुआ कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती है।
माहौल जैसा हो उसी के अनुसार आदमी को बदल जाना चाहिए अर्थात गंगा गये, गंगा वासी और यमुना गये तो यमुना वासी!
प्रकृति में जैसे मौसम बदलते हैं वैसे ही इंसान को भी अपनी प्रकृति बदल लेनी चाहिए उसी में भलाई है।
मुगल आए,अंग्रेज आए, हुण, कुषाण, मोर्य, लोधी सब आये शासन करके चलते बने, लेकिन हिन्दू धर्म पर कभी खतरा नहीं आया, आता तो आज इतने लोग कैसे जिंदा बचें होते?
लोगो ने अपने आपको उनकी इच्छानुसार बदलने में ही भलाई समझी!
कार में बैठकर गाड़ी होने की ग़लती करके कौन अपना सिर फोडवाना चाहता है? मूर्ख ही होगा कोई?
इसलिए बाबा मिल रहे हैं तो जहां भी मौका मिले खोजते रहना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि किसी को पाप लगे या पुण्य, अपना फायदा हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।
जैसे कि मौजूदा सरकार कर रही है। विपक्ष में रहते कभी भी इनको बाबा या माता जी की खोज करने का जरा भी ख्याल नहीं आया!
मगर जब आया तो जिस जगह को खोदा बाबा को पाया!
देखती जाओ बाबा और बाकी देवी देवता कहां कहां दबे मिलते हैं?
कल सुबह उठकर जब जमीन पर पैर रखना चाहा तो मन में ख्याल आ रहा था कि कहीं यहां भी तो किसी देवी देवता को नहीं दबा रखा है। यह सोचकर पैर नीचे रखने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
यदि आप अपनी मधुर(वास्तव में कर्कश) वाणी से हमें ख्यालों से न जगाती कि आज आफिस नहीं जाना है क्या? एक घंटे से बैठे क्या सोच रहे हो?
तो शायद हम कभी जमीन पर पैर नही रख पाते!
खैर! प्रवचन समाप्त हुआ तो देखा कि पत्नी किचन में थी और हम अकेले ही बडबडा रहे थे।
लेउ अगले दिन से अहमद ने लीची का ठेला नहीं लगाया था, बल्कि आज तो पपीता बेचने वाला भी पपीता नहीं लाया था। पूछने पर बताया बाबूजी हमें पपीता भी शिवलिंग के आकार जैसा ही लगा इसलिए हमने उसे न बेचने का ही मन बनाया है?
समझ नहीं आता है कि कौन कौन से फल ठेले पर रखे जाएं और कौन से नही?
हमने डांटते हुए कहा कि तो इसका मतलब आप फल भी नही खिलाया करोगे?
गलत काम करते करते आप लोगो की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है, आजादी के सत्तर साल बाद देशभक्त पार्टी वाली सरकार आयी है तो सबकी अक्ल ठिकाने लगाकर ही दम लेगी!
लेकिन बाबा वाली लीची आज भी हमारी बुद्धि और रणनीति का लोहा मनवा रही थी और हम बाबा का अभिनंदन करते हुए मुस्कुरा रहे थे कि बाबा तेरी महिमा अपरम्पार है क्या पता कब किसको क्या दिला दें, और वो भी कोडियो के दाम या मुफ्त में भी!