आलेख : बादल सरोज
मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक प्रसिद्ध मन्दिर है। इसे शारदा देवी के मन्दिर के नाम से जाना जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश की संस्कृति एवं धार्मिक न्यास मंत्राणी उषा सिंह ठाकुर के हुकुम पर मप्र सरकार की इस विभाग की उपसचिव पुष्पा कुलश्रेष्ठ ने आदेश जारी किया है कि इस मंदिर के स्टाफ में जितने भी मुस्लिम कर्मचारी हैं, उन्हें तत्काल वहां से हटाया जाये। इस आदेश में सतना कलेक्टर को साफ़-साफ़ निर्देशित किया गया है कि वह अगले तीन दिन में इस आदेश पर अमल सुनिश्चित करे। बताते हैं कि मंत्राणी उषा सिंह ठाकुर को ऐसा करने का हुक्म, महाकौशल प्रांत के बजरंग दल/विश्व हिन्दू परिषद ने दिया था। ये दोनों ही संगठन आरएसएस के आनुषांगिक संगठन हैं और स्वाभाविक है कि उन्होंने मंत्राणी को यह निर्देश, संघ के कहने पर ही दिया होगा।
इससे पहले कि इस आदेश के बाकी पहलुओं पर आया जाए, यह दर्ज करना जरूरी है कि ऐसा नहीं है कि मैहर के शारदा देवी मंदिर में मुस्लिम कर्मचारियों की भरमार थी। कुल 250-300 के कर्मचारियों में मुस्लिम नामों वाले कर्मचारी फकत दो थे : आबिद खान और अय्यूब खान। वे भी कोई आज-कल भर्ती नहीं हुए थे। आबिद, मन्दिर के सेवादार हैं, 1993 से नौकरी में आये थे अब स्थायी कर्मचारी हैं और मंदिर के लीगल सेल और वाहन शाखा का काम देखते हैं। अय्यूब उनसे भी पहले,1988 से हैं और मंदिर परिसर में पानी की सप्लाई का काम देखते हैं। फिर आज अचानक ऐसा करने की जरूरत क्यों आ पड़ी? वैसे यदि मुस्लिम कर्मचारियों की संख्या दो से अधिक भी होती, तब भी इस तरह का शाासकीय आदेश कैसे जारी किया जा सकता है? अभी जब भारत का संविधान बना हुआ है, अभी जब भारत के प्रत्येक नागरिक को, किसी भी आधार पर, किसी भी तरह के भेदभाव से संरक्षण देने वाले, उसके बुनियादी अधिकार उस संविधान में बने हुए हैं — तब उस संविधान की रक्षा करने, उसके आधार पर राज चलाने की शपथ लेकर पद पर बैठी कोई सरकार, इस तरह का गैरकानूनी और असंवैधानिक फैसला ले ही कैसे सकती है?
जिस मंदिर की समिति – शारदा प्रबंध समिति – के बारे में इन मंत्राणी ने यह आपराधिक और संविधान विरोधी आदेश जारी किया है, उसका गठन विधानसभा के प्रस्ताव से हुआ है। इसमें भर्ती नियम वही हैं, जो शासन के नियमों के अनुरूप हैं। मध्यप्रदेश के ही उज्जैन के महाकाल मंदिर, सीहोर के सलेमपुर स्थित बिजासन माता मंदिर और मैहर की शारदा माता मंदिर, इंदौर का खजराना गणेश मंदिर के प्रबंधकों द्वारा अलग-अलग कानून बनाये गये हैं, पर उनमें भी कर्मचारियों के विषय में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि वे सिर्फ हिन्दू ही होने चाहिए। (यही वजह है कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सतना का कलेक्टर इन दोनों कर्मचारियों को हटाने के आदेश का पालन नहीं कर पाया है। हर बार उसका यही जवाब आया है कि, ‘‘हम अध्ययन कर रहे हैं।’’)
स्पष्ट है कि धार्मिक आधार पर किसी कर्मचारी को न तो भर्ती किया जा सकता है, न ही हटाया जा सकता है। ऐसे में, इस विधानसभा द्वारा पारित एक्ट से गठित की गई समिति से धर्म विशेष के कर्मचारियों को बाहर निकालने वाले निर्णय के पीछे के इरादे क्या हैं? इन पर आने के पहले यह याद दिलाना अप्रासंगिक नहीं होगा कि जिस मैहर के बारे में यह आदेश दिया गया है, यह उस मैहर के इतिहास और विरासत के ही बिल्कुल प्रतिकूल है — उसका घोर तिरस्कार और निषेध है।
मैहर के बाबा अलाउद्दीन खां क्या करेंगे?
मैहर दो बातों के लिए जाना जाता है : एक तो मां शारदा देवी के मन्दिर के लिए और दूसरे भारतीय संगीत के दिग्गज पद्म विभूषण उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खां के लिए। उन्हें संगीत की दुनिया और पूरा मैहर, बाबा के नाम से जानता था/है । इस मंदिर के साथ उनका रिश्ता वही था, जो उस्ताद बिस्मिल्ला खान का बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ था। जिस तरह बिस्मिल्ला खान अपने दिन की शुरुआत काशी विश्वनाथ के मंदिर प्रांगण में अपने शहनाई वादन से करते थे, मैहर के बाबा यही काम शारदा देवी के मंदिर में करते थे। अलाउद्दीन खान संगीत के अनोखे सिद्ध थे। माना जाता है कि वे मियां तानसेन की शिष्य परंपरा के अंग थे व देश में ऐसे संगीतज्ञ विरले ही हैं। उनकी एक भरी-पूरी शिष्य परम्परा है। उनके अनेक मशहूर शिष्यों में पंडित रविशंकर और अली अक़बर ख़ां जैसे कलाकार शामिल हैं। बाबा 1971 में चले गए, मगर आज भी मैहर के माहौल में उनकी सुर लहरियां गूंजती हैं — उनकी रूह बसती है। आबिद और अय्यूब को नौकरी से हटाने का हुकुम जारी करने वाले भाजपा-विहिप-आरएसएस और शिवराज, इस रूह और सुर लहरियों को निष्कासित कर के कहां भेजेंगे? इसे शायद तो वे खुद भी नहीं जानते हैं।
बाबा की बेटी अन्नपूर्णा और दामाद भारत रत्न पंडित रविशंकर का क्या होगा?
चलिए मान लिया कि बाबा को यदि उन्होंने निकाल भी दिया, तो भी उनकी सबसे प्यारी बेटी अन्नपूर्णा देवी का क्या करेंगे? अन्नपूर्णा असल में शारदा देवी का ही दूसरा नाम है। बाबा ने अन्नपूर्णा देवी की शादी भी विश्वविख्यात संगीतज्ञ पंडित रविशंकर से की थी। वे सिर्फ रविशंकर की पत्नी ही नहीं हैं, वे बाबा के बाद उनकी दूसरी गुरु भी हैं और उन्हें संगीत सिखाया भी है। बाबा के इस सबसे काबिल शिष्य और दामाद रविशंकर द्वारा अपने जीवन काल में मैहर को दिलाई गयी विश्वव्यापी लोकप्रियता का क्या करेंगे? उनके पोते और नाती — आशिष खान देबशर्मा, शुभेन्द्र शंकर — और परपोते और परनाती कावेरी शंकर व सोमनाथ शंकर का क्या करेंगे? क्या उनसे उनका ननिहाल और ददिहाल छीन लेंगे??
अलाउद्दीन खां को मैहर के महाराज बृजनाथ सिंह बीसवीं सदी की शुरूआत में मैहर लाए थे। लेकिन बाबा जितना उनके दरबार में बजाते थे, उससे कहीं अधिक नियमित रूप से मां शारदा देवी के मंदिर में गाते थे। उसका क्या करेंगे? बाबा ने दो मकान बनाए मदीना भवन और शांति कुटीर। इनमें से किस पर बुलडोजर चलाया जायेगा?
बाबा अलाउद्दीन ख़ां को भारतीय संगीत का पितामह कहा जाता है। उन्होंने मैहर बैंड – मैहर वाद्य वृंद – उस जमाने में बनाया था, जब भारत में कोई जानता तक नहीं था कि ऑर्केस्ट्रा किस चिडिय़ा का नाम होता है। इस मैहर वाद्य वृन्द ने न केवल मुश्किल समय में मैहर के समाज को संगीत से रौशन किया, बल्कि यह ऑर्केस्ट्रा आज भी बाबा की सैंकड़ों रचनाओं को ऐसे ही बजाता है, जैसे बाबा के समय में बजाया जाता था। यह बाबा द्वारा निर्मित सैकड़ों राग-रचनाओं का एक सुगठित, व्यवस्थित मंच और संग्रह है। इसमें हर वाद्य से एक साथ एक ही सुर निकलता है और शायद यह दुनिया का एक मात्र ऐसा ऑर्केस्ट्रा है, जिसमें वादक बिना नोटेशन या स्वरलिपि के बजाते हैं। बाबा यूं तो 200 से ज़्यादा भारतीय और पश्चिमी वाद्य बजाते थे, मगर उन्हें सरोद, सितार वादन और उनकी ख़ास ध्रुपद गायकी के लिए ज्यादा जाना जाता है। उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत भी सीखा था और क्लेरनेट, वायलिन और चेलो जैसे पश्चिमी वाद्यों को अपने वाद्यवृंद में शामिल भी किया था। संगीत और वाद्य यंत्रों के साथ भी उन्होंने अनूठे प्रयोग किये थे। उन्होंने बंदूकों की नाल से एक नए वाद्य, नलतरंग का आविष्कार किया था। सवाल यह नहीं है कि ऐसा क्या था बाबा में, सवाल यह है कि ऐसा क्या नहीं था? मैहर में हर राह चलता आदमी भी बता देता है कि बाबा जिस भी वाद्य को छूते थे, वो उनका गुलाम बन जाता था। भाजपा-विहिप-आरएसएस और शिवराज का राज इन सबका क्या करेंगे?
बाबा के कमरे में उनके वाद्यों के साथ दीवारों पर उनके प्रसिद्ध शिष्यों, उनके बेटे और प्रख्यात सरोद वादक अली अकबर ख़ान और दामाद पंडित रविशंकर की तस्वीरें टंगी हैं। मगर बाबा के शिष्यों की सूची तो यहां से बस शुरू होती है, इसमें बांसुरी वादक पन्नालाल घोष और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया सहित भारतीय संगीत के अनगिनत विख्यात नाम शामिल हैं। इनका क्या होगा?
यह और कुछ नहीं, मुसलमानों से सब्जी-भाजी तक न खरीदने, उनकी दूकानों तथा संस्थानों का बहिष्कार करने के आह्वानों से शुरू हुए, उनके सामाजिक-सांस्कृतिक बहिष्करण का, भाजपा सरकार द्वारा स्वीकृत चरण है। ठीक यही वजह है कि संस्कृति मंत्राणी का हिटलरी आदेश सिर्फ आबिद खान और अय्यूब खान की नौकरी छीनने वाला ही नहीं है — यह भारत से उसकी संगीत, संस्कृति की ऐतिहासिक विरासत और मैहर से उसकी पहचान छीनने वाला भी है। यह साझी गुलजार बगिया को उजाडक़र, उसे बंजर कर, धतूरे उगाने की मोदी-भाजपा-विहिप-आरएसएस और शिवराज की महापरियोजना का हिस्सा है। ऐसा करने का एकमात्र मकसद, जनता के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करना, साफ़-साफ़ कहें तो मुसलमानों के अलगाव को और ज्यादा बढ़ाना है। मध्यप्रदेश में कुछ महीनों बाद चुनाव है। भाजपा की चुनावी विकास यात्रा में एकाध ही कोई मंत्री-संत्री बचा होगा, जिसके काफिले पर धूल-मिट्टी न फेंकी गयी हो, जिसे जनता ने दुत्कारा न हो। उपलब्धि एक नहीं है — नाकामियां अनगिनत हैं। ऐसे में इस नफरती ब्रिगेड के पास सिवाय जहरीले उन्माद को फैलाने के कोई और रास्ता नहीं है।
अगला नम्बर किसका?
मगर बात निकलेगी, तो फिर दूर तलक जायेगी। अगर यह सिलसिला शुरू हो गया, तो यह सिर्फ आबिद और अय्यूब और बाबा अलाउद्दीन खान तक ही रुकने वाला नहीं। इसके बाद यही ढोंगी, तथाकथित धर्म-रक्षक इसे आगे, इसके अगले पड़ाव, शूद्रों और दलितों तक ले जायेंगे; इसकी परिधि में वे समुदाय भी आयेंगे, जिन्हें इन दिनों ओबीसी का झुनझुना पकड़ाया हुआ है, लेकिन जो वर्णाश्रम के श्रेणीक्रम में शूद्र ही हैं। कहा जायेगा कि उनकी उपस्थिति मात्र से अलां और फलां मंदिर अशुद्ध हो रहा है। इस के समर्थन में मनुस्मृति सहित अनेक शास्त्रों और कथित धर्मग्रंथों को प्रमाण की तरह सामने लाया जायेगा। अगर कहीं वह सब हो गया, तो फिर उसके बाद आबिद और अय्यूब के हटाने का आदेश जारी करने वाली मंत्राणी उषा सिंह ठाकुर खुद भी बचेंगी क्या? क्या यही लोग शबरीमला की तर्ज पर उन्हें भी, उनके स्त्रीत्व की वजह से, मंदिर की चौहद्दी के बाहर नहीं बिठाएंगे? निश्चित रूप से बिठाएंगे!! कठुआ की पीड़िता को मुस्लिम गुर्जर होने की वजह से खुद से अलग मानने वालों को हाथरस की नवयुवती को देखना पड़ा। हाथरस की युवती को दलित भर मानने वाले आज देश की लाड़ली पदक विजेता खिलाड़ी लड़कियों को, जंतर-मंतर पर सडक़ पर बैठे देखने की त्रासदी झेल रहे हैं।
इसलिए, मैहर से निकला आदेश सिर्फ मैहर तक नहीं रुकने वाला है। ये ठग अगर भारत की समावेशी विशिष्टता के खिलाफ अपनी आपराधिक साजिशों में कामयाब हो गये, तो फिर साबुत-सलामत कुछ नहीं बचने वाला।
(लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन’ के संपादक तथा अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)