व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा
ये लो कर लो बात। अब विरोधियों को मोदी जी के इतिहास की किताबों में काट-पीट करवाने से भी प्राब्लम है। हर चैप्टर के फटने पर हाय-हाय। हर तथ्य के कटने पर कांय-कांय। ऊपर से इसके ताने और कि ऐसी काट-पीट के बाद जो बचेगा, वह इतिहास तो होगा नहीं। इतिहास का नाम लेकर गैर-इतिहास पढ़ाने से तो अच्छा है कि यही कह दें कि हम हिस्ट्री नहीं पढ़ाएंगे। अब न इतिहास पढ़ाएंगे, न पढ़ने देंगे और अगर कोई इतिहास पढ़ते या पढ़ाते पकड़ा गया, तो उसे एक साइड के टिकट पर पाकिस्तान या अफगानिस्तान नहीं, तो एंटीनेशनलों वाली स्पेशल जेल जरूर भिजवाएंगे, वगैरह।
भक्तगण ध्यान रखें, ये वही लोग हैं, जो कल तक मोदी जी की डिग्री दिखाने की मांग कर रहे थे और डिग्री छुपाने के बुनियादी अधिकार का मखौल उड़ाते हुए, डिग्री दिखाओ, डिग्री दिखाओ, का शोर मचा रहे थे; ये डिग्री नहीं दिखाएंगे, के ताने मार रहे थे! जो कल डिग्री नहीं दिखाएंगे, का विरोध कर रहे थे, वही आज हिस्ट्री नहीं पढ़ाएंगे, पर आब्जेक्शन कर रहे हैं। अरे भाई, जरा सी कॉमनसेंस भी तो इस्तेमाल कर लो। जब डिग्री दिखानी ही नहीं है, तो स्कूल-कालेजों में हिस्ट्री पढ़ने-पढ़ाने का ही क्या पाइंट है! इतिहास नहीं भी पढ़ाएं तो और इतिहास का नाम देकर, अगड़म-बगड़म कुछ भी पढ़ाएं तो, क्या फर्क पड़ता है! रही इतिहास के स्वांत:सुखाय और गर्व से खड़े कॉलर-हिताय पठन-पाठन की बात, तो उसके लिए व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी है ना। मुफ्त भी और सर्वसुलभ भी। और मुफ्त की रेवड़ी टाइप के लांछन से, एकदम मुक्त भी।
हमें पक्का है कि मोदी जी के विरोध के चक्कर में उनके विरोधी जान-बूझकर, स्कूलों की किताबों में काट-पीट के मकसद को ही तोड़-मरोडक़र पेश कर रहे हैं। सरकार की तरफ से बच्चों का पढ़ाई का बोझ कम करने की बात कही गयी, तो पहले तो भाई लोग इसी पर हुज्जत करने लगे कि अब तो कोरोना को खत्म हुए भी साल होने को आया; बोझ कम करने के नाम पर किताबों पर अब कैंची क्यों? इसके ताने और कि ये छात्रों का बोझ कम करना है या उनकी सिखाई-पढ़ाई को ही हल्का करना! और जब सरकार वालों ने यह समझाने की कोशिश की कि जब बाल काटने से मुर्दा हल्का नहीं होता है, दो-चार चैप्टर फाडऩे, यहां-वहां कैंची मारने से, सिखाई-पढ़ाई हल्की कैसे हो जाएगी? कुछ पूरा थोड़े ही हटाया है, बस बार-बार के दोहराव को निकाला है, तो भाई लोग गिनाने बैठ गए कि इसका दोहराव कब था, उसका दोहराव कहां था? अब आरएसएस पर पाबंदी लगने का जिक्र कहां है, वगैरह।
अब इन्हें कौन समझाए कि बात सिर्फ स्कूली किताबों में दोहराव की थोड़े ही है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के साथ जो दोहराव हो रहा है, उसके बोझ का क्या? वहां मुगल-वुगल सब खूब हैं, अंगरेेजों से पहले वाले भी, उनके बाद वाले भी और उन्हें हराने वाले हिंदू वीरों के किस्से भी। फिर बच्चों के बस्ते में नाहक किताबों का बोझ क्यों बढ़ाना! वैसे भी व्हाट्सएप के संघ-प्रमाणित ज्ञान के रहते हुए, अधकचरे किताबी ज्ञान से बच्चों को कन्फ्यूज करने का क्या फायदा?
और हां ये मुगलों को हटा दिया, मुगलों को हटा दिया, का इतना शोर क्यों? मुगलों को हिंदुस्तान में नहीं हटाया जाएगा, तो क्या पाकिस्तान में हटाया जाएगा? पाकिस्तान में पढ़ा लें, जितना मुगलों को पढ़ाना है, हम किसी को रोकते हैं क्या? पाकिस्तान वाले चाहें, तो नहीं पढ़ाएं हमारे महाराणा प्रताप, शिवाजी को, हम शिकायत नहीं करने वाले हैं। तब हमसे ही इतिहास में मुगलों को पढ़ाते रहने की उम्मीद क्यों की जाती है। नेहरू-वेहरू के चक्कर में और लाल झंडे वालों के भुलावे में, सत्तर साल जो हुआ सो हुआ, अब और नहीं।
अमृतकाल में और नहीं। मोदी जी के गद्दी पर रहते हुए, अब हर्गिज और नहीं। विदेशी दासता का कोई भी निशान, अब और नहीं। रही मुगलों को हटाने की बात, तो उन्हें तो अंगरेजों ने ही हटा दिया था, हिंदुस्तान के तख्त से। और अंगरेजों को तख्त से हटा दिया, अंगरेजविरोधी हिंदुस्तानवादियों ने मिलकर। अब मोदी जी की बारी में हटाने के लिए बचा ही क्या था, इतिहास से हटाने के सिवा। बेचारे थोड़ा सा मुगलों का इतिहास हटा रहे हैं, थोड़ा अंगरेजों का और थोड़ा अंगरेजविरोधी हिंदुस्तानियों का। और वह भी बच्चों पर किताबों का बोझ कम करने के नाम पर। इतना संतुलन, बल्कि समदर्शिता दिखा रहे हैं, तब भी मुगलविरोधी होने का शोर! यह तो घनघोर अन्याय है। पहले के सम्राटों को क्या कुछ करने का मौका नहीं मिला था? किसी को ताजमहल बनाने का, तो किसी को लाल किला बनाने का, तो किसी को लड़ते रहने का ही। हिंदू हृदयसम्राट को भी क्या और कुछ भी करने का मौका नहीं दिया जाएगा, अपनी पसंद की संसद-महल वगैरह बनवाने के सिवा। और वह मौका भी उन्हें कौन सा आसानी से मिल गया था, विरोधियों से लड़कर लेना पड़ा है। सम्राट नरेंद्र विरोधियों से भिड़ जाएंगे, पर इस बार इतिहास से मुगलों वगैरह को हटाकर दिखाएंगे।
और हां! नये इंडिया को कोई इसका डर दिखाने की कोशिश नहीं करे कि तीन-साढ़े तीन सौ साल का मुगल काल काट देेंगे तो, भारत का इतिहास कमजोर हो जाएगा। हमारा इतिहास बहुत पुराना है। हजारों, बल्कि लाखों साल पुराना। लाखों में से दसियों हजार साल का इतिहास तो पहले से ही गायब है। उसके बाद भी हमारे इतिहास में तो कोई कमजोरी नहीं आयी। फिर तीन-साढ़े तीन सौ साल और निकल जाने से ही ऐसी क्या कमजोरी आ जाएगी। लाखों साल के पुराणों में दर्ज इतिहास में, तीन सौ साल हुए ही कितने –ब्रह्माजी का एकाध पल मात्र ही तो। ब्रह्माजी का सही, पर एक पल कितना मैटर कर सकता है! रही बात बच्चों को यह बताने की कि पृथ्वीराज, महाराणा प्रताप, शिवाजी वगैरह किस के खिलाफ लड़कर वीर हुए थे, तो उसके लिए मुगलों का होना ही क्या जरूरी है? इसमें भी तो आत्मनिर्भरता संभव है। जब टीपू सुल्तान को मारने का गौरव अंगरेजों से छीनकर अपने नाम करने के लिए, कर्नाटक के चुनाव से पहले दो-दो हिंदू वीर योद्धा खड़े किए जा सकते हैं, तो हिंदू वीरों की वीरता साबित करने के लिए, नये हिंदू योद्धा क्यों नहीं?
रही ताजमहल वगैरह की बात, तो बाबरी मस्जिद की तरह हरेक ढांचा गिराने की भी जरूरत नहीं है। नाम बदलना ही काफी है बल्कि तेजोमहालय तो व्हाट्सएप पर पहले ही चल रहा है। बस आइटी सैल को जरा सा जोर लगाकर वाइरल करना है।
हां! बुढ़ऊ गांधी के अंत की नयी कहानी को अभी भी व्हाट्सएप से निकलकर, स्कूलों की किताबों तक पहुंचने में कुछ टैम लगेगा। आत्महत्या से लेकर बुढ़ापे की बीमारियों तक, अंत के आप्शन पहले ही सर्कुलेशन में हैं। इतिहास अनुसंधान परिषद 2025 तक शोधपूर्वक इनमें से किसी न किसी विकल्प को प्रमाणित कर देगी और स्कूली किताबों में नयी कहानी ठेल ही देगी। तब तक के लिए चुपके से पहली वाली कहानी से खाली करवा दी है। और जब गांधी जी को किसी ने मारा ही नहीं होगा, तो न हिंदू-अतिवादियों के उनको मारने का कोई सवाल उठेगा और न बुढ़ऊ के जाते-जाते आरएसएस पर पाबंदी लगवा जाने का। यानी शताब्दी गिफ्ट तैयार है — 1948 वाली पाबंदी रियल थोड़े ही थी। अपने सरदार पटेल की लगाई पाबंदी भी, कोई पाबंदी मानी जाएगी, लल्लू!
(इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)