बढ़ती गरीबी एक अभिशाप है!

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लेखक : प्रतीक जे. चौरसिया

      गरीबी एक ऐसी दर्दनाक स्थिति है, जहाँ मनुष्य हर चीज़ के लिए बेबस और लाचार होता है।  वह अपनी तीन ज़रूरी चीजों को पाने में असमर्थ है : रोटी, कपड़ा और मकान। पूरा दिन मज़दूरी करने के बाद भी भरपेट खाना उन्हें नहीं मिलता है।  तपती धूप, हाड़ कंपाती ठण्ड और तेज़ बारिश से बचने के लिए उनके पास एक छत तो दूर की बात है, सर्दी के दिनों में उन्हें तन ढकने के लिए गरम ऊनी कपड़े तक नसीब नहीं होते। पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण उनका शारीरिक विकास एवं शिक्षा नहीं दिलवा पाने के कारण मानसिक विकास नहीं हो पाता है। 

      देश की बढ़ती जनसंख्या गरीबी बढ़ने के प्रमुख कारणों में से एक है।  इच्छाशक्ति की कमी के कारण सरकार के पास ऐसी योजनाएं नहीं है कि वह देश के सभी लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ें मुहैया करा सके; जितनी जनसंख्या अधिक होगी, सभी प्रकार की सुविधाओं और संसाधनों में कमी आएगी। जनसंख्या वृद्धि की वजह से जो लोग गरीब या उससे भी निचले स्तर पर जी रहे हैं, उनकी ज़िन्दगी नरक से कम नहीं होती है।

      देश में इतनी जनसंख्या बढ़ गयी है कि बहुतों को एक नौकरी नहीं मिल पा रही है।  अगर देश में इतने अधिक लोग होंगे तो जाहिरतौर पर सभी को नौकरी मिलना मुश्किल होगा। छोटी नौकरियां भी आजकल विलुप्त होती जा रही हैं। बेरोजगारी गरीबी को अधिक बढ़ा रही है। ऐसे में जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो सबसे अधिक गरीब लोग प्रभावित होते हैं, तब उनको बचाने वाला  कोई नहीं होता है।  कुछ लोग हैं, जो गरीबों की  स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्हें NGO के माध्यम से मदद करते हैं। कुछ जगहों पर गरीब बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है;  लेकिन यह सभी गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की हालत और अधिक दयनीय है।

      गरीब  बच्चे अक्सर संपन्न घरों के बच्चों को विद्यालय जाते, उन्हें खेल-कूद  करते हुए देखते हैं।  मगर दुर्भाग्यवश उनकी जिन्दगी ऐसी नहीं होती है। गरीबी उनके परिवार को हर बुनियादी आवश्यकताओं से उन्हें दूर रखती है। अच्छे स्कूल में पढ़ना गरीब बच्चों के लिए एक सपना बनकर रह जाता है, कभी-कभी तो उन्हें दो वक़्त की रोटी मिलना भी टेढ़ी खीर बन जाती है। वह अपने बच्चों को पुस्तकें और खिलौने खरीद कर देने में असमर्थ होता है। स्वादिष्ट, संतुलित और पौष्टिक भोजन उसके परिवार और बच्चों को नहीं मिल पाता है। ऐसे विभिन्न कारणों से उनके बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाता है।

                गरीब परिवार अज्ञानता के कारण अधिक बच्चों को जन्म देते हैं और अपनी परेशानियां स्वयं बढ़ा लेते हैं। ऐसे में घर पर थोड़ी बहुत कमाई के लिए अपने बच्चों को काम पर लगा देते हैं।  अक्सर चाय की दुकानों और उद्योगों में छोटे बच्चों से काम करवाया जाता है।  इससे बाल मज़दूरी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है, जो कानूनन जुर्म है।

      सरकारें गरीबी को दूर करने की कोशिशें की हैं, मगर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।  गरीबी, अभिशाप है और देश की उन्नति में बहुत बड़ी बाधा है। गरीबी मिटाने में कोई भी लोकप्रिय सरकार सफल नहीं हो पायी है। सरकारों ने बच्चों को मुफ्त शिक्षा जैसी अनेकों कार्य करने का प्रयास की हैं,  लेकिन अभी उन्हें हज़ारों मील चलना बाकी है।

      देश में गरीबी बड़ी आम-सी हो गयी है।  सड़कों के आसपास छोटी-छोटी झोपड़ियों में जैसे-तैसे बिना रोटी, कपडे, और मकान के गुजर-बशर करने को मजबूर हैं। उनकी दयनीय हालत उनके आँखों से झलकती है।  कोई भी उन्हें इज़्ज़त नहीं देता, हर जगह तिरस्कृत किया जाता है। यह देश की विडंबना है कि एक ओर इतने अमीर लोग हैं और दूसरी तरफ मजबूर-गरीब; जिसके पास खाने के लिए सिर्फ नमक-रोटी है।       “गरीबी का दिन” कोई भी नहीं देखना चाहेगा। दिन-रात मेहनत करने पर उसे कुछ पैसे मिलते हैं, जो पर्याप्त नहीं होते। इसलिए गरीबों के कल्याण के लिए आर्थिक नीतियाँ बनाई जाएँ, बेरोजगारी दूर करने के लिए छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना की जाये तथा अमीरों और पूंजीवाद को बढावा देने वाली नीतियों में बदलाव लाया जाए; ताकि गरीबी और अमीरी के बीच की खाई को पाटा जा सके। तभी देश को गरीबी के कलंक से छुटकारा मिल सकेगा और गाँधी जी के भारत के नवनिर्माण का सपना साकार हो सकेगा।

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