रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव एक महान आइडिया लेकर लाए हैं कि यदि रेलवे स्टेशनों के नाम के आगे या पीछे कंपनियों के नाम जोड़ दिए जाएँ तो रेलवे की आय बढ़ जाएगी। उन्होंने इसे नाम दिया है, ‘इनोवेटिव नान फेयर रेवेन्यू आइडिया’।
शाइनिंग इंडिया की तरह चमकता यह नाम इस आइडिया पर टिका है कि, किराया बढ़ाकर यात्रियों को भी चूसो और कंपनियों को स्टेशन बेचकर भी कमाई भी करो। आजकल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को औने पौने दाम पर, आनन फानन में बेच देना, एक नयी आर्थिक नीति है।
2014 के बाद यदि मोदी सरकार की कोई आर्थिक नीति है तो वह यह कि सार्वजनिक कम्पनियों का निजीकरण कर दिया जाय। पहले यह सिलसिला, घाटा देने वाली सरकारी कंपनियों से शुरू हुआ, अब देश का सर्वग्रासी क्रोनी कैपिटलाइजेशन लाभकारी और इंफ्रास्ट्रक्चर में सिरमौर नवरत्न कम्पनियों तक भी जा पहुंचा है।
यह विचार, नई दिल्ली स्टेशन पर एक प्रयोग के रूप में लागू किया जा रहा है। इस विचार के समर्थकों का मत है कि इससे दिल्ली रेलवे मंडल के 250 प्रमुख स्टेशनों से पचास करोड़ की अतिरिक्त आय होगी। रेलवे बजट में यह राशि बेहद कम योगदान करेगी।
अब तक तो मोदी सरकार के एजेंडे में, रेल बेचना ही था। स्टेशन तो बिकने भी लगे। अब प्लेटफार्म भी बिकने लगे हैं। बस मोदी सरकार अभी खुल कर ऑक्शन प्लेटफार्म पर नहीं आयी है। लेकिन, यदि आप नीति NITI आयोग की नीति का अध्ययन करें तो उनकी बस एक ही नीति है, सब कुछ बेच दो और जब अव्यवस्था फैले तो झोला लेकर निकल लो।