शूद्रो का शातिर दुश्मन कौन?

दैनिक समाचार

द्वारा : शिवशंकर सिंह यादव

आज मेरी उम्र 72 वें साल में चल रही है। बचपन में याद है, एक देवकुर घर ( भगवान का घर) हुआ करता था। अनपढ़, गवार कोई भी पुरोहित ( पंडित ) हर एकादशी (महीने में दो बार ) को शाम घर पर आता, पाव किलो देशी घी का हवन करता। कुछ घी ले भी जाता था। रूपये पैसे के अलावा दक्षिणा (चावल, आटा दाल) भी देना पड़ता था, यही नहीं वह दक्षिणा भी उसके घर तक हम लोगों को पहुंचाना पड़ता था।
सभी छोटे बड़ो को तिलक लगाता, सभी लोग उसके पैर छूते और वह सबको आशीर्वाद देता था। अर्थात सबको नींच बनाता था। बचपन में कहानी भी सुनते थे “आन का आटा, आन का घी, भोग लगाएं पंडित जी, शाबस -शाबस बाबा जी “
भगवान् के नाम पर एक सामाजिक धार्मिक परम्परा बन गई है। इस तरह से ढोंगी पाखंडी काम, जैसे बच्चे के जन्म के समय को मूर (अपशकुन ) बता देना, मंगली करार कर देना और फिर उसे पूजा-पाठ करके शुद्धि करना, कभी नामकरण, कभी सत्यनारायण कथा आदि रूपो में चलता रहता है। ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म में जीवन पर्यन्त अपने भरण पोषण के लिए एक और तरीका निकाला हुआ है, जिसका नाम है मां बाप का गुरू-मुख होना इसके माध्यम से गुरु- मुख दम्पति की कमाई में 25% की हर साल हिस्सेदारी देना और जब कभी गुरू-मुख पंडित जी सामने दिखाई दिए तो, दंडवत प्रणाम करना अनिवार्य है , अन्यथा अनर्थ होने का डर, दिलो-दिमाग में भर दिया गया है। दूध-दही या कुछ दक्षिणा मांग दिया तो अपने बच्चे का हक्क मारकर उसको देना पहली प्राथमिकता होती है। हमें याद आ रहा है आठवी (1966) तक हम लोगों (10 ) के साथ एक ब्राह्मण का लड़का भी पढ़ता था , वह कितना भी बदमाशी करता था, हमलोग उसे, इस डर से कि बरम लगेगा, कभी उसे गाली या मारते नहीं थे।
इसी तरह शादी -विवाह या मरने के बाद अन्तिम संस्कार में भी भाज्ञ -भगवान्, पाप -पुन्य का डर और लालच दिखा कर जन्म से लेकर मरने तक आर्थिक, मानसिक, सामाजिक शोषण करता रहता है।इस परम्परा द्वारा ब्राह्मण अपने जजमान शूद्रों को नींच बनाकर, उनका मनोबल गिराना और इस तरह उनको धार्मिक गुलाम बनाना, विश्व का सबसे बड़ा अपराध माना गया है ।
अफसोस हमलोग आज भी अज्ञानता और मूर्खता में अपने पुर्वजो के अपराधियों को ही मान सम्मान देते चले आ रहे हैं।
आज भी जब कभी मैं गांव जाता हूं तो, हमारे समकक्ष या छोटी उम्र का अनपढ़ गवार, ब्राह्मण, सामने होने पर, जिज्ञासा भर, वह यह उम्मीद करता है कि, मैं ही पहले उसे इज्जत देते हुए नमस्कार या पाय लागू बोलूं। इसी अनुभव को देखते हुए बार बार दिमाग में खटकता है कि, हम ब्राह्मण से नींच क्यों है और कब-तक बनें रहेंगे? यह भी सवाल उठता है कि, मेरे अंदर ही यह प्रश्न क्यों बार बार उठता है? आप लोगों में क्यों नहीं?
कुछ सामंती अहंकारी शूद्रों का यह विरोधाभास कि आप की परवरिश के माहोल के कारण आप के साथ ऐसा होता हैं, मेरे साथ ऐसा व्यवहार कभी नहीं हुआ है। एक दो अपवाद हो सकता है। मैं आज भी मुंबई में काफी संपन्न यादवों को “पांव लागी पंडित जी” संबोधन करते हुए देखता हूं। हमारे एक चिर- परिचित सम्मानित डाक्टर साहब को, जिनकी उम्र करीब 75 साल हैं, अपने ब्राह्मण परिचित रोगियों को पांव लागी पंडित जी संबोधन करते देखा है। इस व्यवहार पर उन्हें टोकने पर, उनका कहना है कि, यह शिष्टाचार बहुत पहले से चला आ रहा है।
हिन्दू धर्म का मुख्य तत्व ज्ञान भी यही है कि ब्राह्मण सिर्फ मान सम्मान पाने का अधिकारी है, दूसरों को देने का नही ।
हमारा बचपन से लेकर आज तक मुसलमानों से नौकरी पेशा में या सामाजिक जीवन चर्या में हमेशा साथ रहा है। मैं 1979 – 1998 तक मुस्लिम बहुल क्षेत्र जोगेश्वरी पश्चिम, यादव नगर में रहा हूं। यादव नगर का अध्यक्ष होने के कारण भी, मैं यह दावा कर सकता हूं कि, कभी किसी भी तरह से किसी को भी अकारण अपमानित नही किया है। उल्टे जब भी सामना हुआ है, हमें मान सम्मान और सहयोग ही दिया है और लिया भी है। कुछ असामाजिक तत्व तो हर समाज में होते है, इसे नकारा नही जा सकता है।
कुछ लोग तो कुछ कारणो से इतने अच्छे होते है कि हम सोच भी नही सकते, जैसे ब्याज या सूद न लेना, दूध में पानी न मिलाना, आपस में भाई चारे से रहना, असहाय और गरीबो की यथाशक्ति मदद करना। मेरा साधारण सा अनुभव भी कहता है कि, यदि मुसलमानो के साथ राजनीतिक दुर्भावना, काश्मीर मसला और पर्सनल बाद -विवाद को अनदेखी कर दे, जो की हर परिवार में दर-दयाद, भाई भतीजे के साथ ही, झगड़े, कोर्ट मुकदमा सबसे ज्यादा होती है। स्वस्थ मानसिकता से देखें तो कहीं कोसो दूर तक, धर्म आधारित हिन्दू-मुश्लिम दुश्मनी का कारण नजर नही आता है। यही नहीं स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजी शासन में तथा सैकड़ों सालों तक मुगल मुसलमान पिरियड में, राजा रजवाड़ों के साम्राज्य विस्तार में भी धार्मिक हिंदू-मुस्लिम नफरत कहीं नहीं दिखाई देती है।
एक अनुभव शेयर करना उचित समझता हं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुम्बई में 1993 में हिन्दू -मुस्लिम दंगा हो गया। यादव नगर के साथ साथ कुछ और हिन्दू बस्ती चारो तरफ से मुस्लिम बस्तीयों से घिरी हुई थी । यादव नगर के हनुमान मंदिर और सगुफा बिल्डिंग के मस्जिद की दीवार कामन थी। बाहर से कुछ असामाजिक तत्व आते थे, तरह तरह के अफवाह फैला कर दंगा कराने की कोशिश करते थे।
किसी भी कीमत पर यादवों और मुसलमानों में दंगा कराना उनका मकसद रहता था। एक ब्राह्मण भी अपनी पहचान छिपा कर आता था, जो तथाकथित हिन्दुओं का रक्षक होने का दावा भी करता था। उसको बराबर जबाब देकर मैं भगा देता था। उसका बार बार अफवाही मैसेज जैसे, वहां — मुसलमानों ने हिन्दुओं को काट डाला, सगुफा बिल्डिंग और मस्जिद में आज रात को हथियारों का जखीरा रखा गया है। मैंने कहा, तुम यहां से दूर रहकर हथियारों का जखीरा देख लेते हो, जब कि हमलोग बाजू में रहकर रात-भर पहरेदारी करके भी नहीं देख पाए।
हिन्दू -मुस्लिम शान्ति एकता कमेटी भी बनाई गई थी। जोगेश्वरी रेल्वे स्टेशन, आने जाने के लिए करीब 500 मीटर मुस्लिम बस्ती से ही गुजरना पड़ता था। किसी हिन्दू को कोई नुकसान न हो, मुस्लिम भाई पूरे रास्ते की चौकसी करते हुए सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए हुए थे । मैं भी कुछ लोगो के साथ यादव नगर के बाहर चौराहे पर ही हर समय चौकसी करता रहता था। एरिया में शान्ति बनी हुई थी।
एक बार पुलिस की गाड़ी आई, मैं खुद सामने आकर अधिकारी से बात किया और कहा साहब यहां सब नार्मल है। इतना कहते ही डंडे चला दिया और कहा यह तुम्हारा काम नहीं है, अपने घर से बाहर मत निकलो।
उनके गलत इरादों को भांपते हुए भी अपना फर्ज निभाया और यादव नगर मे दंगा भड़काने के लाख कोशिशों के बाद भी, कहीं किसी को एक खरोच तक नहीं आई।
ठीक है मान लिया स्वतंत्रता से पहले तुम्हारा मनु सम्विधान था। तुमने शूद्रो को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक तथाकथित हिन्दू बनाकर शोषण किया। लेकिन आज समता, समानता और बन्धुत्व पर आधारित संविधान होने के बावजूद भी, शूद्रो के मूलभूत सम्वैधानिक अधिकारो का हनन और बिरोध भी ब्राह्मण ही करता है जबकि मुसलमान सहयोगी और हमदर्द हर मौके पर दिखाई देता है ।
अब आकलन आप को करना है, विशेष रूप से अंधभक्तों को कि, तुम्हारा शातिर दुश्मन कौन है?

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