अवतार सिंह पाश एक इंकलाबी लेखक

दैनिक समाचार

राज कुमार शाही
सदस्य, प्रगतिशील लेखक संघ, पटना।
अवतार सिंह संधू जिन्हें पाश के नाम से जाना जाता है,का जन्म 9 सितंबर 1950 जालंधर जिले के तलवंडी सलेम नामक गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम सोहन सिंह संधू तथा माताजी का नाम नसिब कौर था। इनके पिताजी आर्मी में एक जवान थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई तथा 1976 ईस्वी में मैट्रिक परीक्षा पास की । पंजाबी में ज्ञानी की डिग्री हासिल किया जो स्नातक के समतुल्य माना जाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर में दाखिला लिया। इन्हें पंजाब साहित्य अकादमी से फेलोशिप दिया गया था। सत्रह साल की उम्र में पहली किताब “लौह कथा” की रचना कर साहित्य जगत का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इनकी कविताएं आज भी क्रांति की चेतना पैदा करने का काम करती है।”हम लड़ेंगे साथी” और “सबसे ख़तरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना “नाम से कविता संग्रह प्रकाशित किया। इनकी रचनाएं मजदूर वर्ग को संगठित कर समाजवादी भारत बनाने के लिए चल रहे आंदोलन को खुलकर समर्थन देने का काम करती है। इनकी राजनीतिक दृष्टि का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि शहीदे ए आजम भगत सिंह की शहादत पर पाश ने लिखा था कि ” पहला चिंतक था पंजाब का
सामाजिक संरचना पर जिसने
वैज्ञानिक नजरिए से विचार किया था
पहला बौद्धिक
जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा
की, जड़ों तक पहचान की थी
पहला देशभक्त
जिसके मन में
समाज सुधार का
एक निश्चित दृष्टिकोण था।”
एक जगह और लिखते हैं कि पंजाब सहित देश भर के नौजवानों को आगे क्या करना होगा इसको संबोधित करते हुए जो निम्नलिखित है
” जिस दिन फांसी दी गई
उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली
जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था
पंजाब की जवानी को
उसके आखिरी दिन से
इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे , चलना है आगे”।
पंजाब में सत्तर के दशक में एक ओजस्वी, क्रांतिकारी चेतना से लैस, मार्क्सवादी दृष्टिकोण से समाज और मजदूर वर्ग को राजनीति को दिशा देने का काम कर रहे थे। खालिस्तानी आंदोलन उफ़ान पर था उस दौर में जारी हिंसा के विरुद्ध मुखर आवाज बुलंद करने में लगे हुए थे। जिसके कारण एक बार हत्या के मामले में झूठे फंसाए गए, जेल गए बेकसूर साबित कर दिए जाने के बाद अलगाववादी शक्तियों ने 23 मार्च 1988 ईस्वी को गोलियों से भून दिया।विडम्बना देखिए कि अपराधियों ने जो दिन चुना वह भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव की शहादत दिवस को ही चुना। आज भगतसिंह और उनके सपनों को साकार करने वाली शक्तियों को दृढ़ संकल्प लेकर भावी पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। इसके लिए मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी और वैज्ञानिक चेतना से लैस होकर जुझारू आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना होगा। भगतसिंह एवं अवतार सिंह पाश दोनों ही एक ही विचारधारा एक इर्द गिर्द एक नया समाज बनाने की कोशिश में लगे हुए थे। आज फिरकापरस्त ताकतें पूरे समाज को धर्म और जाति के कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त कर लिया है और बदलाव की स्पिरिट पैदा करना हीं उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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