RRR ने किया कश्मीर फाइल्स का डब्बा गुल तो…

दैनिक समाचार

इस वक्त देश में चारों तरफ एसएस राजामौली की फिल्म आरआरआर की चर्चा हो रही है. जिसे देखो वह RRR की ही बात कर रहा है. फिल्म में कलाकारों की मेहनत और अभिनय पर बात हो रही हैं तो तकनीक और निर्देशन को लेकर भी लोग कहना और सुनना पंसद कर रहे हैं. सच तो यह हैं कि फिल्म के एक-एक फ्रेम और एक-एक दृश्य पर लोग बात कर रहे हैं और खुद को समृद्ध कर रहे हैं.

किसी फिल्म को लेकर ऐसी दीवानगी हैरत में डालती है. साठ-सत्तर और अस्सी के दशक में जब फिल्मों का जबरदस्त क्रेज हुआ करता था तब इस तरह की बातचीत देखने-सुनने को मिलती थीं. तब लोग पहले दिन पहला शो देखकर आते थे और पुल-पुलियों पर बैठकर सनीमा की स्टोरी सुनाया करते थे. अब तो सार्वजनिक पुलियाएं बची नहीं सो चाय की गुमटियों, दफ्तरों, कॉफी हाउस और मोबाइल के जरिए फिल्म की विशेषताओं का बखान हो रहा है.

लोग स्वस्फूर्त ढंग से सिनेमा हॉल जा रहे हैं. मॉल जा रहे हैं. लाइन में खड़े होकर टिकट ले रहे हैं या ऑनलाइन टिकट बुक करवा रहे हैं. पिक्चर देखकर तालियां बजा रहे हैं. सीटियां बजा रहे हैं.

केंद्र की मोदी सरकार के चलते लोग-बाग एक लंबे अरसे से गाल ही बजा रहे थे. गाल बजाने वाले लोगों को अपना गम भूलकर सीटी बजाते हुए देखना सुखद लग रहा है. हालांकि पायजामा कुर्ता पहनकर शास्त्रीय संगीत सुनने वाले संभ्रांत किस्म के दर्शकों को सीटियां परेशान कर सकती हैं, लेकिन संभ्रांत दर्शकों को पता भी नहीं होगा कि उनके संतानें इस्ट्राग्राम पर रोजाना आंख दबा रही है और वक्त-बेवक्त सीटियां बजा रही है. खैर…कई बार सामूहिक सीटियां आनंद से भर देने वाले कोरस का काम करती हैं… इसलिए बरसों बाद सिनेमा हॉल में लौटी हुई इन सीटियों का स्वागत किया जाना चाहिए.सीटियों का सम्मान होना चाहिए. इन सीटियों के सम्मान में हमें भी एक जोरदार सीटी बजा ही लेनी चाहिए.

हमें यह सीटी इसलिए भी बजानी चाहिए क्योंकि आरआरआर ने सहमति और असहमति के बीच झूलते हुए देश के सीधे-सादे आमजन को नफरत की आग में झुलसने से बचा लिया है. इस फिल्म ने लोगों को नफरत के विषाक्त किटाणुओं से भरी हुई फिल्म कश्मीर फाइल्स से थोड़े समय के लिए ही सही मगर मुक्ति दिलवा दी हैं. ऐसा महसूस हो रहा है कि नफरती चिन्टुओं के द्वारा पैदा किए गए बेमतलब के शोर पिंड छूट गया है.

अब कश्मीर फाइल्स बड़े से बड़े शहर में एकाध शो में चल रही है. ( उज्जड़ प्रदेश का नहीं बता सकता ) यह फिल्म जहां कहीं भी चल रही हैं वहां पहले की तरह इसे वहीं लोग देखने जा रहे हैं जो सदियों से बोरिया-बिस्तर और चना-सत्तू बांधकर हिन्दुओं को जागृत करने के गोरखधंधे में लगे हुए थे.

बहरहाल आरआरआर ने कश्मीर फाइल्स का डब्बा गुल कर दिया है तो भक्त बुरी तरह से फड़फड़ा उठे हैं. उन्हें लग रहा कि साला… ये क्या हो गया ? अच्छी-खासी नफरत की खेती चल रही थीं. दो सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म ने सौ करोड़ हिन्दुओं को जगाने का काम प्रारंभ कर दिया था. चारों तरफ बामन-बामन-पंड़ित-पंड़ित हो रहा था… लेकिन अचानक सारा किया धरा फेल हो गया ?

ये घनचक्कर बाहुबली वाले को भी अभी ही फिल्म रीलिज करनी थीं ? हॉल बुक करके लोगों को फ्री में फिल्म दिखाकर जनसेवा करने का मौका मिल रहा था. हॉल में नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे जैसी प्रार्थना गाने और भगवा गमछा धारण करके सेल्फी लेने का आनंद ही कुछ और था लेकिन सब चौपट हो गया. भैय्या जी के कहने पर मोटर साइकिल में पेट्रोल डलवाते थे. जय-जय श्रीराम का नारा लगाते हुए रैली निकालते थे. ढोल बजाते थे. फिल्म देखने जाते थे. इंटरवेल में समोसा खाते थे… सब खत्म हो गया है.

अब आरआरआर आ गई तो लोग आदिवासी नायकों की बात करने लगे हैं. लोग झूठी कहानी के जरिए खड़े किए गए किसी भी एजेंडे का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं है. ऐसा कैसे चलेगा ? नफरत का धंधा तो चौपट हो जाएगा ?

दर्शकों की अब सारी दिलचस्पी दूसरी तरफ टर्न हो गई है. वे आंध्र प्रदेश के सीतारामा राजू और तेलंगाना के कुमारम भीम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं. इन जगहों के आदिवासी अपने इन दोनों नायकों को भगवान की तरह पूजते हैं. कहा जाता है कि अल्लूरी ने मनयम इलाके के आदिवासियों को जल-जंगल और जमीन की लड़ाई के लिए एकजुट किया जिससे अंग्रेजों में खौफ पसर गया था वहीं कुमारम भीम ने गोंड आदिवासियों के अधिकारों के लिए निजाम से टक्कर ली थीं. बताते हैं कि दोनों आदिवासी नायक अपने-अपने इलाके में आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम कर रहे थे. दोनों क्रांतिकारी जीवन में कभी भी एक-दूसरे से नहीं मिले. फिल्मकार राजामौली ने दोनों नायकों को अपनी फिल्म में एक साथ मिलाया और अपनी शानदार कल्पनाशीलता से यह बताया कि जब दो क्रांतिकारी एक साथ मिल जाते हैं तो कैसा धमाल मचा सकते हैं ?

यहीं एक वजह से फिल्म में रामायण के राम का जिक्र होता है. सीता का जिक्र होता है और महाभारत के भीम की उपस्थिति भी देखने को मिल जाती है. राम और भीम के साथ-साथ गाड़ियों के पंचर बनाने वाले अख्तर की भी बात होती है. ( भीम अपनी पहचान छिपाने के लिए कुछ समय तक अख्तर बने रहता है ) इस फिल्म में कई महत्वपूर्ण दृश्य है. एक महत्वपूर्ण दृश्य यह भी है कि राम और भीम ( अख्तर ) एक मुसलमान के घर पर बड़ी सी थाली में भोजन करते हैं. एक गाने में राम अपने कंधों पर भीम को घुमाता है तो संकट के एक दृश्य में भीम… राम को कांधे पर लेकर चलता है.

भक्त यह सब देखकर परेशान चल रहे हैं. वे यह सोच नहीं पा रहे हैं कि यह सब कैसे हो रहा है. और क्यों हो रहा है ? जिस टोपी और पंचर बनाने वाले से नफरत करते हैं उसके मारधाड़ से भरे एक्शन पर जनता ताली क्यों बजा रही है. ? जबकि थाली और ताली तो तब बजानी होती है जब मोदी जी का आदेश होता है.

मौली का भीम अंग्रेजों से लड़ता है और मौली का राम भी अंग्रेजों पर बाण चलाता है… लेकिन फिल्म को देखकर लौटे एक भक्त का कहना था कि प्रभु राम जी को कहीं और मतलब टुकड़े-टुकड़े गैंग पर बाण चलाना था. अंग्रेज राक्षस नहीं थे. ( जब भक्त के पूर्वजों ने कभी अंग्रेजों से युद्ध नहीं किया तो भक्त को कैसे पता चलेगा कि अंग्रेज राक्षस थे या नहीं ?)

बहरहाल आरआरआर की जोरदार सफलता ने भक्तों को परेशान कर दिया है. वे अब फिल्म को लेकर दुष्प्रचार में जुट गए हैं. एक बार फिर बरसों से सोए हुए हिन्दुओं को जगाने वाली फिल्म यानि कश्मीर फाइल्स का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया व गोदी मीडिया में तेज कर दिया गया है. अपनी गैरत को बेचने के लिए मशहूर अखबार की वेबसाइट में खबर चल रही है कि आरआरआर के कलेक्शन में गिरावट आ रही है जबकि कश्मीर फाइल्स की जवानी बरकरार है वह अंगडाई लेते हुए उठ खड़ी हुई है. खबर है कि आरआरआर के दुष्प्रचार के लिए आईटीसेल की टीम भी सक्रिय हो गई है.

चाहे कितनी भी टीम सक्रिय हो जाए… आरआरआर इसलिए चलेगी क्योंकि इस फिल्म में भाजपा और संघ का थोथा राष्ट्रवाद मौजूद नहीं है. फिल्म के राम में धैर्य है. ऊर्जा है. संतुलन है तो भीम में बेशुमार ताकत के बावजूद संवेदनशीलता है. फिल्म में जल-जंगल और जमीन के लिए लड़ने वाले नायकों और उनका साथ देने वाली जनता का गुणगान है. यह फिल्म अपने दर्शक को उन्माद नहीं बल्कि उर्जा से भर देती है. ( इस पोस्ट के साथ संलग्न वीडियो में दर्शकों का उत्साह देखा जा सकता है. )

मुझे यह फिल्म बेहद अच्छी लगी हैं इसलिए इसकी कुछ टूटी-फूटी समीक्षा दोबारा लिख रहा हूं. यह फिल्म अभी एक बार टू डी में देखी है. दोबारा फिर देखूंगा और थ्रीडी में देखूंगा.

राजकुमार सोनी

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