कर्नाटक में पिछले कई महीनों से जारी हिजाब विवाद के बाद अब हलाल विवाद तूल पकड़ता नजर आ रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने मंगलवार 29 मार्च 2022 को हलाल मीट बेचने को इकोनॉमिक जिहाद बताया।
हलाल मीट के विरोध के सवाल पर बीजेपी नेता का कहना है कि बिजनेस एकतरफा नहीं बल्कि दोनों तरफ से होता है। सीटी रवि का कहना है कि जब मुसलमान लोग हिंदू की दुकान से झटके का गोश्त नहीं खरीदते हैं तो फिर हिंदू लोग मुसलमानों से हलाल मीट क्यों ख़रीदें?
ग़ौरतलब है कि कर्नाटक में पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर हिंदुओं से हलाल मीट का इस्तेमाल नहीं करने की अपील की जा रही है। अपील में उगाडी त्यौहार (हिंदू नव वर्ष) के बाद हलाल मीट का इस्तेमाल न करने को कहा जा रहा है। दरअसल उगाडी के एक दिन बाद हिंदू लोग भगवान को मांस की भेंट चढ़ाते हैं और नया साल सेलिब्रेट करते हैं।
इस ख़बर से दो बातें निकलकर सामने आ रही हैं,
- दक्षिण भारत के हिंदू मांसाहारी हैं। वे गोश्त खाते भी हैं और भगवान को भोग के रूप में चढ़ाते भी हैं।
- हिंदुत्ववादी लोगों की ओर से अप्रत्यक्ष रूप से गोश्त बेचने वाले मुसलमानों का बायकॉट करने की अपील की जा रही है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि इस नफ़रत का जवाब क्या है? इसका जवाब जानने से पहले आप यह भी समझ लें कि हलाल गोश्त और झटका गोश्त में क्या फ़र्क़ है?
■ जब किसी जानवर को हलाल किया जाता है तब उसकी नरखरे की नस काटी जाती है, रीढ़ की हड्डी और उसके सहारे वाली नसों के ज़रिए धड़ का कनेक्शन दिमाग़ से जुड़ा रहता है। इससे यह फ़ायदा होता है कि दिमाग़ सक्रिय रहता है और उस जानवर के जिस्म से सारा ख़ून बाहर निकल जाता है।
■ इसके विपरीत, जब किसी जानवर की गर्दन, एक ही झटके में काटकर अलग कर दी जाती है तो उसके दिमाग़ का कनेक्शन बाक़ी जिस्म से टूट जाता है। इस वजह से पूरा ख़ून बाहर नहीं निकल पाता।
■ बीमारियों के वायरस ज़्यादातर ख़ून में होते हैं। आपने देखा होगा कि जब कोई बीमार होता है तो डॉक्टर सबसे पहले ख़ून टेस्ट करवाते हैं, उसके बाद दवा देते हैं। झटका करने की वजह से जब पूरा ख़ून जानवर के जिस्म से बाहर नहीं निकलता है तो वायरस भी गोश्त के साथ लगे हुए रह जाते हैं और खाने वाले के शरीर में पहुंच जाते हैं।
हमारा मानना है कि मुसलमानों को जज़्बात में नहीं आना चाहिये और बेवजह मामले को तूल नहीं देना चाहिये। बेहतर तरीक़ा यह है कि हलाल गोश्त की ख़ूबियाँ और झटका मीट की ख़ामियां बतानी चाहिये। उसके बाद गोश्त ख़रीदने वाले लोगों को मुनासिब लगेगा तो वे ख़ुद ही इन बायकॉट अपीलर्स की अपील का ‘बायकॉट’ कर देंगे यानी नफ़रत फैलाने की अपील नाकाम हो जाएगी।
हम एक बार फिर यह बात दोहराना चाहते हैं कि नफ़रत को नफ़रत के ज़रिए ख़त्म नहीं किया जा सकता। पॉज़िटिव सोच के ज़रिए और मुहब्बत के ज़रिए नफ़रत के सारे वायरस ख़त्म किये जा सकते हैं, बस इस काम में थोड़ा वक़्त ज़्यादा लगता है। सलीम ख़िलजी (एडिटर इन चीफ़ आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क) मोबाइल : 9829346786