भाकपा ने टोल के औचित्य पर सवाल खड़े किये
सभी वृद्धियों को तत्काल वापस ले सरकार: भाकपा
लखनऊ, 1 अप्रैल 2022। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव मंडल ने कहा कि पेट्रोल डीजल रसोई गैस और प्राक्रतिक गैसों की कीमतों में लगातार होरही वृद्धि से महंगाई ने पहले ही सारी सीमायें तोड़ रखी हैं अब टोल की दरों में वृद्धि कीमतों में और आग लगायेगी। जनहित में इन वृद्धियों को वापस लेने की मांग कराते हुये भाकपा ने टोल टैक्स के औचित्य पर ही सवाल उठाया है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि सरकार ने अनौचित्यपूर्ण टोल दरों में 10 रुपए से 65 रुपए की वृद्धि कर महंगाई की मार से पहले से ही हलकान जनता के ऊपर एक और प्रहार किया है। पाँच राज्यों के चुनावों के दौरान पेट्रोल डीजल रसोई गैस और अन्य गैसों की कीमतों की वृद्धि सरकार ने रोकी हुयी थी, अब चुनाव परिणाम आने के बाद से सरकार इन पदार्थों के दामों में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी कर रही है। इससे बाजार में वस्तुओं के दामों ने छलांग लगाई है और गरीब तथा मध्यम वर्ग काफी कठिनाइयों से गुजर रहा है। अब टोल टैक्स में वृद्धि इस पीड़ा को और अधिक बढ़ा देगी।
भाकपा ने टोल टैक्स की अवधारणा पर ही सवाल खड़ा किया है और केंद्र तथा राज्य सरकार से अपेक्षा की है कि वे इसका जबाव जरूर देंगी। भाकपा ने कहा कि वाहन खरीद के समय क्रेता जीएसटी अदा करता है। उसके तत्काल बाद उसे वाहन रजिस्ट्रेशन के समय उसे लहीम सहीम रोड टैक्स और इन्स्यौरेंस देना होता है। वाहन चालन के लिए स्तेमाल होने वाले ईंधन पर कई कर और अतिरिक्त कर (सेस) अदा करने होते हैं। इन तमाम टैक्सों से अर्जित धन से बनने वाली सड़कों पर फिर टोल क्यों लगाया जाता है। सरकार को इसका जबाव देना चाहिए।
मजे की बात यह है कि एक देश एक टैक्स की बात करने वाली सरकार यात्रा और ढुलाई पर ही दर्जनों टैक्स वसूल रही है। उसकी कथनी करनी का फर्क साफ देखा जा सकता है।
लोगों पर लादे गये इन करों के चलते यात्रा एवं माल ढुलाई बहुत महंगी होगयी है। जनता की जेब खाली कराने पर आमादा राज्य सरकारों ने लूट का एक और रास्ता खोज लिया है। एक्स्प्रेस हाइवे पर 100 किमी प्रति घंटा की गति निर्धारित कर दी गयी है। यदि स्पीड थोड़ी भी बढ़ जाये तो रुपए 2000 की पेनाल्टी लगा दी जाती है। हर आरटीओ क्षेत्र में अलग अलग पेनाल्टी देते देते वाहन स्वामी थक गये हैं। उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और अदालती कार्यवाही पर अलग खर्च करना पड़ता है। जिन उपभोक्ताओं पर भाजपा का भूत सवार है वे तो इसे सह जाते हैं। पर अन्य वेचारे क्या करें।
सरकार के ये फैसले राजनैतिक हैं। वरना चुनावों के दरम्यान वृद्धियाँ क्यों रोकी गयीं थीं? जनता को इसका जबाव भी राजनैतिक रूप से ही देना होगा। भाकपा इन वृद्धियों की कड़े शब्दों में निन्दा करती है और इन्हें तत्काल वापस लेने की मांग करती है।