बहुजन चिंतकों की नज़र में दशरथ पुत्र राम-संदर्भ रामनवमी

दैनिक समाचार

डॉ. सिद्धार्थ रामु

भारत में चिंतन की दो स्पष्ट धाराएं रही हैं. एक द्विज और दूसरी बहुजन. दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी भी चीज को देखने की भारत में दो बिलकुल विपरीत विश्वदृष्टियां रही हैं – एक बहुजन विश्वदृष्टि और दूसरी ब्राह्मणवादी विश्वदृष्टि.

रामकथा और राम पर आधारित महाकाव्यों के संदर्भ में भी दोनों दृष्टियां निरंतर टकराती रही हैं.

आर्य-द्विज ब्राह्मणवादी परंपरा के आदर्श नायक दशरथ पुत्र राम हैं और उन पर सबसे बड़े महाकाव्य वाल्मीकि की रामायण और उत्तर भारत में तुलसी की रामचरितमानस है.

जहां एक ओर द्विज अध्येता, लेखक और पाठक राम को आदर्श नायक और रामायण एवं रामचरितमानस को महान महाकाव्य मानते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बहुजन नायकों की दृष्टि में दशरथ पुत्र राम और उन पर आधारित महाकाव्य, बहुजनों पर द्विजों के वर्चस्व के उपकरण हैं.

यह अकारण नहीं है कि करीब-करीब सभी बहुजन नायकों ने राम और उनकी रामकथा पर लिखा है और बताया है कि “कैसे, राम न तो ईश्वर हैं, न आदर्श नायक और ना ही कोई धार्मिक व्यक्तित्व.”

बहुजन नायकों का यह भी कहना है कि वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस आर्य-ब्राह्मण श्रेष्ठता और बहुजनों पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना के लिए लिखे गए ग्रंथ हैं.

ये किसी भी तरह से धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, जैसे बुद्ध के त्रिपिटक, बाइबिल और कुरान हैं…

रामकथा के बारे में ई.वी.रामसामी पेरियार, डॉ. आंबेडकर, पेरियार ललई सिंह यादव, स्वामी अछूतानंद, चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’, अमर शहीद जगदेव प्रसाद, संतराम बी.ए., मोतीराम शास्त्री, रजनीकांत शास्त्री, भदन्त आनंद कौशल्यायन, कंवल भारती और तुलसीराम आदि चिंतकों-लेखकों ने विस्तार से लिखा है. इन सभी ने एक स्वर से रामायण और राम को शूद्रों (पिछड़ों), अतिशूद्रों (दलितों), महिलाओं और आदिवासियों पर वर्चस्व कायम करने की विचारधारा वाला काल्पनिक चरित्र और ग्रंथ कहा है तथा यह भी बताया है कि कैसे अनार्यों को ही राक्षस-राक्षसी कहकर राम ने उनका कत्लेआम किया!!

पेरियार ने ‘सच्ची रामायण’, डॉ. आंबेडकर ने ‘राम और कृष्ण की पहेली’ (‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ किताब में), स्वामी अछूतानंद ने ‘रामराज्य न्याय’, चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’ ने ‘ईश्वर और उनके गुड्डे’, पेरियार ललई सिंह यादव ने ‘शंबूक बध’, मोतीराम शास्त्री ने ‘रावण तथागत’, रजनीकांत शास्त्री ने ‘हिंदू जाति का उत्थान और पतन’, भदन्त आनंद कौशल्यायन ने ‘राम की कहानी राम की जुबानी’, कंवल भारती ने ‘त्रेता युग का महा हत्यारा’, और तुलसीराम ने ‘क्या अयोध्या बौद्ध नगरी थी?’ में रामकथा व राम के पिछड़े, दलित, आदिवासी तथा महिला विरोधी चरित्र को उजागर किया है…

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