राम से जय श्रीराम तक…!
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दैनिक समाचार

दया शंकर राय

कविजन खोजते रहे राम को
जो जन-जन के अभिवादन में थे
नमस्ते और पाँव लागी के बीच
जय राम जी की
और राम-राम भइया बोलते हुए

अभिवादन वाले राम
धीरे- धीरे बदलते गए
जय श्रीराम के गगनभेदी नारों में

राम-राम भइया कहते हुए
दोनों हाथ जुड़ते हुए
विनम्रता में झुक जाया करता था सिर

जब ‘जय श्रीराम’ में बदल रहे थे राम
अभिवादन वाले हाथों में
आ चुकी थीं चमकती नंगी तलवारें

जब एक हत्यारे ने मारा था गाँधी को
तो गाँधी के मुंह से निकला था
हे राम..!

हत्यारे अब छुपकर नहीं आते थे
अब वे जय श्रीराम के उदघोष के साथ
सड़कों पर जुलूस की शक्ल में थे

जय श्रीराम के लोमहर्षक उदघोष के बीच ही
मारे जा रहे थे
दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी
और गौरी लंकेश..!

अनसुनी सी थी गाँधी की वह आवाज़
हे राम..!

“प्रविशि नगर कीजै सब काजा
हृदय राखि कोशलपुर राजा..”
तुलसी की यह चौपाई
नये भारत में
एक नये रूपक में ढल रही थी..!

नहीं पता था तुलसीदास को
कि कोशलपुर राजा को हृदय में रख
हत्याएं भी अपराध नहीं होंगी
नये भारत में..!

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