समाज के जिम्मेदार लोगों से बाबा साहब की एक अपील-
बाबा साहब डाँ. अम्बेडकर का ऐतिहासिक भाषण आगरा, 18 मार्च 1956

दैनिक समाचार

जन समूह से –

पिछले तीस वर्षों से आप लोगों को राजनैतिक अधिकार के लिये मै संघर्ष कर रहा हूँ. मैने आपको संसद और राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आरक्षण दिलवाया. मैंने आपके बच्चों की शिक्षा के लिये उचित प्रावधान करवाये. आज, हम प्रगति कर सकते है.

अब यह आपका कर्त्तव्य है कि “शैक्षणिक, आथिर्क और सामाजिक गैर बराबरी” को दूर करने हेतु, एक जुट होकर इस संघर्ष को जारी रखें.

इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आपलोगों को हर प्रकार की कुर्बानियों के लिये तैयार रहना होगा, यहाँ तक कि खून बहाने के लिये भी!

नेताओ से-

यदि कोई आपको अपने महल में बुलाता है तो स्वेच्छा से जाओ. लेकिन अपनी झौपड़ी में आग लगाकर नहीं. यदि वह राजा किसी दिन आपसे झगड़ता है और आपको अपने महल से बाहर धकेल देता है, उस समय आप कहां जाओगे? यदि आप अपने आपको बेचना चाहते हो तो बेचो, लेकिन किसी भी हालत में अपने संगठन को बर्बाद होने की कीमत पर नहीं.

मुझे दूसरों से कोई खतरा नहीं है, लेकिन मै अपने लोगों से ही खतरा महसूस कर रहा हूँ!

भूमिहीन मजदूरों से –

मै गाँव में रहने वाले भूमिहीन मजदूरों के लिये काफी चिंतित हूँ. मै उनके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर पाया हूँ. मै उनकी दुख तकलीफों को नजरन्दाज नहीं कर पा रहा हूँ. उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है. इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते. मै इसके लिये संघर्ष करूंगा.

यदि सरकार इस कार्य में कोई बाधा उत्पन्न करती है तो मै इन लोगों का नेतृत्व करूंगा और इनकी वैधानिक लड़ाई लडूँगा. लेकिन किसी भी हालात में भूमिहीन लोगों को जमीन दिलवाले का प्रयास करूंगा.

अपने समर्थकों से-

बहुत जल्दी ही मै तथागत बुद्ध के धर्म को अंगीकार कर लूंगा. यह प्रगतिवादी धर्म है. यह समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर आधारित है. मै इस धर्म को बहुत सालों के प्रयासों के बाद खोज पाया हूँ. अब मै जल्दी ही बौद्ध बन जाऊंगा.

तब एक अछूत के रूप में मै आपके बीच नहीं रह पाऊँगा, लेकिन एक सच्चे बुद्धिस्ट के रूप में आप लोगों के कल्याण के लिये संघर्ष जारी रखूंगा. मै आपको अपने साथ बुद्धिस्ट बनने के लिये नहीं कहूंगा, क्योंकि मै आपको अंधभक्त नहीं बनाना चाहता, परन्तु जिन्हें इस महान धर्म की शरण में आने की तमन्ना है, वे बौद्ध धर्म अंगीकार कर सकते है, जिससे वे इस धर्म में दृढ़ विश्वास के साथ रहें और बौद्धाचरण का अनुसरण करें.

बौद्ध भिक्षुओं से-

बौद्ध धम्म महान धर्म है. इस धर्म संस्थापक तथागत बुद्ध ने इस धर्म का प्रसार किया और अपनी अच्छाईयों के कारण यह धर्म भारत में दूर-दूर तक गली-कूचों में पहुंच सका, लेकिन महान उत्कर्ष पर पहुंचने के बाद यह धर्म 1213 ई. में भारत से विलुप्त हो गया जिसके कई कारण हो सकते हैं. एक प्रमुख कारण यह भी है कि बौद्ध भिक्षु विलासतापूर्ण एवं आरामतलब जिदंगी जीने के आदी हो गय थे. धर्म प्रचार हेतु स्थान-स्थान पर जाने की बजाय उन्होंने विहारों में आराम करना शुरू कर दिया तथा रजबाड़ो की प्रशंसा में पुस्तकें लिखना शुरू कर दिया.

अब इस धर्म की पुनर्स्थापना हेतु उन्हें कड़ी मेहनत करनी पडेगी. उन्हें दरवाजे-दरवाजे जाना पडेगा. मुझे समाज में ऐसे बहुत कम भिक्षु दिखाई देते हैं, इसलिये जन साधारण में से अच्छे लोगों को भी इस धर्म प्रसार हेतु आगे आना चाहिये और इनके संस्कारों को ग्रहण करना चाहिये.

शासकीय कर्मचारियों से –

हमारे समाज की शिक्षा में कुछ प्रगति हुई है. शिक्षा प्राप्त करके कुछ लोग उच्च पदों पर पहूँच गये हैं परन्तु इन पढ़े लिखे लोगों ने मुझे धोखा दिया है. मै आशा कर रहा था कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे समाज की सेवा करेंगे, किन्तु मै देख रहा हूँ कि छोटे और बडे क्लर्कों की एक भीड़ एकत्रित हो गई है, जो अपनी तौदें (पेट) भरने में व्यस्त हैं. मेरा आग्रह है कि जो लोग शासकीय सेवाओं में नियोजित हैं, उनका कर्तव्य है कि वे अपने वेतन का 20 वां भाग (5%) स्वेच्छा से समाज सेवा के कार्य हेतु दें. तभी समग्र समाज प्रगति कर सकेगा अन्यथा केवल चन्द लोगों का ही सुधार होता रहेगा. कोई बालक जब गांव में शिक्षा प्राप्त करने जाता है तो संपूर्ण समाज की आशायें उस पर टिक जाती हैं. एक शिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता समाज के लिये वरदान साबित हो सकता है.

छात्रों एवं युवाओं से-

मेरी छात्रों से अपील है कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी प्रकार कि क्लर्की करने के बजाय उसे अपने गांव की अथवा आस-पास के लोगों की सेवा करना चाहिये, जिससे अज्ञानता से उत्पन्न शोषण एवं अन्याय को रोका जा सके. आपका उत्थान समाज के उत्थान में ही निहित है.

“आज मेरी स्थिति एक बड़े खंभे की तरह है, जो विशाल टेंटों को संभाल रही है. मै उस समय के लिये चिंतित हूँ कि जब यह खंभा अपनी जगह पर नहीं रहेगा. मेरा स्वास्थ ठीक नहीं रहता है. मै नहीं जानता, कि मै कब आप लोगों के बीच से चला जाऊँ. मै किसी एक ऐसे नवयुवक को नहीं ढूंढ पा रहा हूँ, जो इन करोड़ों असहाय और निराश लोगों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी ले सके. यदि कोई नौजवान इस जिम्मेदारी को लेने के लिये आगे आता है, तो मै चैन से मर सकूंगा.”
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