मेहनतकश विरोधी तानाशाह सरकार को मज़दूरों-किसानों की शांतिपूर्ण महापंचायत भी बर्दाश्त नहीं हो रही है।
दूसरी ओर
संघ-बजरंगदल-भाजपा के नफ़रती लोग, तलवार-भाले लहराते हुए मुस्लिम समुदाय को गालियाँ देते हुए, जुलूस निकालते हैं,
जगह-जगह हिन्दू-महापंचायत कर एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते हैं, पर उन पार सरकार मेहरबान रहती है!
क्या अभी भी किसी को भ्रम है कि यह व्यवस्था मज़दूर-किसान विरोधी नहीं है?
मेहनतकशों के ऊपर पूँजीपतियों-हिन्दू कट्टरपंथियों की तानाशाही नहीं है?
इस तानाशाही को “मज़दूर-किसान वर्ग के फ़ौलादी एकता” के दम पर ही चकनाचूर किया जा सकता है.
ऐसा एक दिन होकर रहेगा, इसी का भय इन लुटेरों को सताता रहता है!
Dharmendra Azaad