बाँटो और राज करो की कूटनीति किसकी ?

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वर्षों से एक भ्रम फैलाया जा रहा है कि बाँटो और राज करो की नीति अंग्रेजों की है। इस भ्रम को फैलाने वाले एक वर्ग विशेष के लोग हैं। जब अंग्रेज, डच, तुर्क, पुर्तगाल, मुगल, अंग्रेज भारत में आये भी नहीं थे, तब भारत के मूलनिवासी नागवंशियों पर शासन करने के लिए विदेशी आर्यों ने बाँटो और राज करो की कूटनीति का सूत्रपात किया।
विदेशी आर्यों ने अपनी नस्ल को सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ बनाया। आर्यों ने अपनी नस्ल को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कहकर खुद को गौरवान्वित किया और भारत के मूलनिवासी नागवंशियों को शूद्र और अछूत बना कर अपवित्र घोषित कर दिया ताकि शासन कर सके।
विदेशी आर्यों ने बाँटो और राज करो की कूटनीति धर्म और ईश्वर के नाम पर रची, ताकि भारत के मूलनिवासी विरोध न कर सकें और आजीवन मानसिक गुलाम बने रहे। विदेशी आर्यों का यह षड़यंत्र बहुत गहरा, क्रूर, अमानवीय अत्याचार से भरा हुआ है।
आज भी भारत के मूलनिवासी नागवंशियों को यह समझ नहीं आया है। विदेशी आर्यों ने शासन करने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। उन्होंने भारत के मूलनिवासी नागवंशियों को शूद्र और अछूत के बाद एक नया षड़यंत्र रचा, ताकि फिर से बाँटो और राज करो की कूटनीति को सफल बनाकर शासन किया जा सके।
अबकी बार विदेशी आर्यों ने भारत के मूलनिवासी नागवंशियों को 6743 जातियों में बांट दिया। विदेशी आर्यों ने अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए यह कलंक अंग्रेजों के माथे पर लगा दिया। विदेशी आर्यों ने देश के समस्त संसाधनों पर कब्जा कर रखा है और भारत के मूलनिवासी नागवंशी आपस में ही एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बने हुए हैं। जिन मूर्खों को बहुजन समाज का अर्थ समझ नहीं आया, वे अपनी मूर्खता के कारण ही बर्बादी के कगार पर स्वतः धीरे-धीरे पहुंच रहे हैं।
विदेशी आर्यों की नस्ल ने ही जर्मनी को बाँटो और राज करो की कूटनीति के तहत बर्बाद कर दिया, क्योंकि विदेशी आर्यों की नस्ल जानती थी कि जर्मनी उनका देश नहीं है। वैसे ही भारत के विदेशी आर्यों को अच्छे से ज्ञात है कि यह देश उनका नहीं है। इसलिए इस देश और यहां के मूलनिवासी नागवंशियों को बर्बाद करना ही उनका मकसद है।

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