अवार्ड वापसी और सत्ता का चरित्र

दैनिक समाचार

भाजपा ने विकास के नाम पर सत्ता प्राप्त की। देश मे जब वित्तिय विकास का नया युग शुरू हुआ था तो भाजपा ने देश के युवाओं को बरगलाया कि वे वित्तिय विकास के युग को विश्व शक्ति में बदल देंगे। विकास होगा, रोजगार होगा। हर हाथ स्किल्ड होगा। हर घर मे लघु उद्योग की यूनिट होंगी।

भाजपा ने एक दो साल ट्रैक पर रहकर काम किया। शायद देश औऱ नौकरशाही का मूड़ समझ रहे होंगे तब। अपने हिसाब से चीज़ें सेट करने में समय लगता है।

भाजपा दरअसल देश चलाने वाली पार्टी नही है। वह एक चुनावी प्रबंधन दल है। आज चुनाव का प्रबंधन ही इनकी योग्यता है बाकी तमाम चीजों, विभागों में इन्होंने मुंह की खाई है औऱ देश को पूरे विश्व मे बदनाम किया है।

भाजपा के असल चेहरे को सबसे पहले कुछ लेखकों ने पहचाना। उन्होंने देश मे प्रायोजित धार्मिक विवादों के विरोध में अपने साहित्य सम्मान वापिस किये। वे बड़े लेखक थे, बड़े नाम थे, वे लेखकीय जिम्मेदारियों को समझते थे और देश को गलत दिशा में जाते हुए देख रहे थे।

साहित्य सम्मान वापिस करना सरकार का बड़ा विरोध था। सरकार को बाकायदा बताया गया कि देश का बौद्धिक वर्ग आपकी धार्मिक विध्वंसक गतिविधियों के साथ नही है। भाजपा अपने विरोधियों की बात कभी नही सुनती। वह विरोधियों के बराबर एक और लाइन खड़ी करती है। कुतर्कियो की लाइन।भाजपा ने उन लेखकों को अवार्ड वापसी गैंग का तमगा दिया और बाद में उन्हें अर्बन नक्सली करार दे दिया।

भाजपा बेशक अपने कुप्रचार में लेखकों की आवाज के आगे बड़े कुतर्की खड़े क्ररके जीत जाने के भ्रम पाल बैठी हो लेकिन जिस दिन कोई सत्ता देश के बुद्धिजीवी को सुनना बन्द कर देती है, मुल्क उसी दिन से कमजोर होना शुरू हो जाता है। भाजपा ने अमर्त्य सेन को नही सुना। भाजपा ने RBI के पूर्व गर्वनर को नही सुना जिसे युरोपियन बैंक ने तवज्जो दी। भाजपा ने किसी बुद्धिजीवी को नही सुना।

लेखक लोग , जो अवार्ड वापिस कर रहे थे, वे हमे क्या बताना चाहते थे, क्या चेताना चाहते थे। वे बता रहे थे कि देश जिन मुद्दों पर सत्ता चुन रहा है वे मुद्दे पृष्ठ भूमि में धकेल दिए जा रहे हैं। असल मुद्दा धार्मिक जुगलबंदी है और उसका रास्ता विध्वंस में से होकर गुजरता है। लेखक लोग अंतराष्ट्रीय साहित्य और राजनीति के जानकार लोग होते हैं। वे देश को भ्रमित होते हुए देख रहे थे।

आज लेखकों की चिंता पर नज़र डालिये न । लेखक अर्बन नक्सली हैं। सरदार किसान खालिस्तानी हैं। मांगें मांगने वाले आंदोलन जीवी हैं। भाजपा का विरोधी देश द्रोही है। तमाम स्वायत संस्थाएं मृत पर्याय हैं। रोजगार देने वाली सरकार रोजगार खा रही है। महंगाई पर रोज देश व्यापी विरोध प्रदर्शन करने वाली भाजपा औऱ उनके हैवी वेट मंत्री आज चुप्पी मारे बैठे हैं। रामदेव हमारा डॉक्टर है। लोकतँत्र सिर्फ वोट डालने भर तक है उसके बाद खरीद बेच का गुणा भाग और अनैतिक राजनीति का भौंडा प्रदर्शन। जगह जगह धार्मिक उन्माद और हिन्दू राष्ट्रवाद का ज़हर। संविधान में लिखे सेक्युलर स्टेट शब्द की रोज धज्जियां उड़ाया जाना।

दिल पर हाथ रख कर कहिये, क्या आपको यही भारत चहिये था। क्या आपने भाजपा के हाथ देश देते वक्त ऐसे ही भारत की कल्पना की थी? क्या आप देश के बुद्धिजीवियों को देश द्रोही या अर्बन नक्सली समझ कर सत्ता की स्तुति में तो रत नही रहे?

लेखक होना क्या है? यह सत्ता के स्तुति गान गाते लेखकों को भी समझना चाहिए। लेखक होना सता का विपक्ष होना होता है। सत्ता की स्तुतियां लेखक नही लिखते। लेखकों की चिंता कल समझ नही आई तो आज समझ लीजिए। देश आपका है। और आपकी रक्षा संविधान करता है न कि धर्म। राजनीतिक तिकड़म के बहकावे में आकर धर्म के बदले संविधान कमजोर करना आत्मघाती है।

वीरेंदर भाटिया
??????

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *