विपक्ष वालों ने भी हद्द ही नहीं कर रखी है! आखिर, मोदी जी की सेना उनसे एक छोटी-सी माफी मांगने की मांग ही तो कर रही है। किसी का सिर तो नहीं मांग रहे हैं। किसी का देश निकाला भी नहीं मांग रहे हैं। और तो संसद निकाला भी नहीं मांग रहे हैं। सिर्फ एक छोटी सी माफी मांग रहे हैं। विपक्ष वाले उसके लिए भी तैयार नहीं हैं। याद रहे, पांडवों ने पांच गांव ही तो मांगे थे, पर कौरवों को वो देना भी मंजूर नहीं हुआ। और महाभारत हुआ। पर विपक्ष वाले तो एक माफी की मांग भी मानने को तैयार नहीं हैं; अब संसद-वंसद का क्या काम, बस महाभारत होगा!
और विपक्ष वाले यह कहकर क्या साबित करना चाहते हैं कि मोदी जी ने भी विदेशी धरती पर, देश की हालत को लेकर काफी भला-बुरा कहा था। सिर्फ विरोधियों को ही बुरा-भला नहीं कहा था, पहले जो भी था, सब को बुरा-भला कहा था। तो क्या? एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों के चुने हुए पीएम को क्या, अपने से पहले वाले के राज की आलोचना करने का भी अधिकार नहीं है? पीएम को भी! हिंदुस्तान में डैमोक्रेसी ही है या कुछ और? अगर पीएम को डैमोक्रेसी में भी पहले वालों की बुराई करने का अधिकार नहीं होगा, तो क्या मुगल राज में होगा! लेकिन पीएम, पीएम होता है; उसकी बराबरी किसी ऐरे-गैरे से कैसे की जा सकती है? यह तो भारतीय जनतंत्र का ही अपमान है। वैसे भी मोदी जी ने शर्म वगैरह आने की जो भी बात कही थी, वह गुजरे जमाने के लिए कही थी। जो गुजर गया उसकी बुराई और जो चल रहा है उसकी बुराई, बराबर कैसे हो जाएगी? यह अगर तख्तापलट की कोशिश नहीं है, तो और क्या है?
और कम से कम अडानी जी के मामले में जांच के लिए, जेपीसी की मांग से इस सब का कनैक्शन जोडऩे की कोशिश कोई नहीं करे। अडानी जी के मामले का संसद से क्या लेना-देना? वह अपना काम कर रहे हैं। कुछ भी ऊंच-नीच हुई, तो सरकारी एजेंसियां हैं। वे अपना काम करेंगी। संसद चले तो और नहीं चले तो। संसद रुकी हुई है, तो सिर्फ और सिर्फ एक माफी के लिए। विपक्ष वालो, माफी मांगो और संसद चलवा लो। डैमोक्रेसी के लिए एक माफी की मांग क्या बहुत ज्यादा है!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)