व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा
अब तो विरोधियों की भी समझ में आ जाना चाहिए कि चाहे कितना ही विरोध हो, चाहे कितनी ही मुश्किलें सामने आएं, चाहे कितनी ही कुर्बानियां देनी पड़ें, मोदी जी अपने नये इंडिया को विश्व गुरु की गद्दी पर चढ़ाकर रहेंगे। मोदी जी का मिजाज ही ऐसा है, शुरू से ही। जो मन में ठान लेते हैं, कर के ही रहते हैं। बताइए, कोई सोच सकता था कि कभी, किसी तख्तनशीं की ‘‘मन की बात’’ की भी सेंचुरी हो सकती है! पीएम के मन की हुई तो क्या हुआ, है तो एक बंदे के मन की ही बात; 2014 से पहले कोई मान सकता था कि सारे पीएमों को मिलाकर भी नहीं, सिर्फ एक बंदे की मन की बात की सेंचुरी हो सकती है? अरे सेंचुरी की छोड़ो, हमें नहीं लगता कि पहले किसी पीएम के पास इतना जिगरा भी था कि पब्लिक से कहता कि तुम्हारी कांय-कांय बहुत हुई, सब के सब चुप बैठकर कम-से-कम एक बार मेरे मन की बात सुनो!
पर जिगरा होने के लिए जो फकीरी चाहिए, वह भी तो नहीं थी पहले किसी पीएम में। हर वक्त गद्दी छिन जाने का डर; हर वक्त परिवार के सडक़ पर आ जाने की फिक्र; हर वक्त वोट पर नजर। बेचारे सारे टैम तो पब्लिक की लल्लो-चप्पो करने में, बल्कि पब्लिक का तुष्टीकरण करने में ही लगे रहते थे। अपने मन की बात कहते-करते भी थे तो हमेशा उसे पब्लिक के मन की बात बताकर। मन की बात करने का पब्लिक में कोई जिक्र भी करता तो हमेशा पहले आप, पहले आप कर के, पब्लिक के सिर पर बला टालने की कोशिश करते थे। पर मोदी जी किसी से नहीं डरते। पब्लिक से तो बिल्कुल भी नहीं। जिस दिन जी किया, झोला उठाकर निकल जाने की फकीरी जो है। किसी को डरना ही हो, तो पब्लिक डरती है — अब राजा जी के मन की बात भी सुनो। पंद्रह अगस्त वगैरह की तरह साल में एक बार नहीं, बार-बार सुनो। महीना-दर-महीना, साल-दर-साल लगातार सुनो। सेंचुरी तक ही क्यों, सेंचुरी के भी पार सुनो! बल्कि डबल सेंचुरी के पार भी क्यों नहीं!!
खैर! वर्ल्ड रिकार्ड के लिए तो एक सेंचुरी ही काफी है। पब्लिक को इस तरह अपने मन की बात सुनाने के मामले में सिर्फ इंडिया ही नहीं, दुनिया भर में मोदी जी के सामने हमें तो लगता नहीं कि कोई कम्पटीशन है। सुनते हैं कि अगले जमाने में कोई हिटलर-हिटलर कर के हुआ था। कहते हैं कि उसे भी जर्मनी की पब्लिक को अपने मन की बात सुनाने का बहुत शौक था(?)। पर उसे पब्लिक को बुलाकर, आमने-सामने से मन की बात करना ही ज्यादा पसंद था। पब्लिक को जुटाकर मन की बात सुनाने में, घर बैठे लोगों को अपने मन की बात सुनाने वाली बात कहां? कहां मुश्किल से लाखों तक पहुंचने वाली मन की बात और कहां करोड़ों में देशप्रेम जगाने वाली मन की बात। अब तो भाई लोगों ने सर्वे से नाप कर भी बता दिया है कि कम से कम एक बार मन की बात सुनने वालों का आंकड़ा भी करोड़ की सेंचुरी के पार है। और मन की बात तो खैर सेंचुरी के पार है ही।
पर गिनीज बुक वालों के रिकार्ड में दूसरों को सुनाने वाली मन की बात का आइटम ही नहीं है, सो सेंचुरी बनाने के साथ ही, सेंचुरी दर्ज कराने की भी मेहनत, मोदी जी की सरकार को ही करनी पड़ रही है। इसीलिए, स्पेशली गा-बजाकर; पकड़-पकडक़र लोगों को सुना-सुनाकर, रेडियो-एफएम रेडियो-टीवी-सोशल मीडिया, सब पर सुना-दिखाकर, सेंचुरी हुई है। सौ रुपए के खास सिक्के ढलवा कर सेंचुरी हुई है। मोदी जी के विश्व के सबसे लोकप्रिय टेलीवाइज्ड रेडियो प्रोग्राम की एक नयी प्रसारण प्रजाति के जन्मदाता होने का, सूचना व प्रसारण मंत्री से एलान कराके सेंचुरी हुई है। देश की और विदेश की भी सारी मोदी विरोधी ताकतें मिलकर भी, मन की बात के इस विश्व रिकार्ड को दर्ज होने से रोक नहीं सकती हैं। और जिसका दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों को अपने मन की बात सुनाने का रिकार्ड हो, उसे विश्व गुरु के आसन पर चढऩे से भला कोई कैसे रोक सकता है? बस 2024 में मोदी जी तीसरी बार पीएम बन जाएं!
फिर भी, विरोधियों की मोदी जी को भारत को विश्व गुरु मनवाने से रोकने की कोशिशें भी लगातार जारी हैं। अब देखिए, एक तरफ मोदी जी हैं। कर्नाटक में इतना महत्वपूर्ण चुनाव है और मुश्किल भी। फिर भी, कर्नाटक में उद्घाटन करने, तोहफों वगैरह का एलान करने के लिए तो मोदी जी पिछले महीने-डेढ़ महीने में दर्जनों बार गए होंगे, पर चुनाव प्रचार के लिए तो मोदी ऐन आखिरी टैम में गए हैं। और प्रचार के इस आखिरी टैम में भी, क्या किया है, क्या करेंगे जैसी मामूली बातों से पब्लिक को खुश करने के बजाए, मोदी जी ने ज्यादा ध्यान पब्लिक को इसकी याद दिलाने में लगाया है कि विरोधियों के निकम्मेपन की वजह से, उनके नये इंडिया का एक और विश्व रिकार्ड बनते-बनते रह गया लगता है। उन्होंने बाकायदा सूची बनवा के, गिनती करा के देख लिया है, विरोधियों ने उन्हें सब मिलाकर इक्यानवे गालियां दी हैं यानी सेंचुरी में सिर्फ नौ कम। मोदी जी अगर पब्लिक को हर महीने के चौथे इतवार को सुबह-सुबह मन की बात सुनाने की सेंचुरी पूरी कर सकते हैं, तो विरोधी कम से कम गालियों की सेंचुरी तो कर ही सकते थे। सेंचुरी हो जाती, तो दूसरों से सुनने-बताने में भी अच्छा लगता और विश्व गुरु के आसन पर भारत का दावा भी और मजबूत हो जाता। पर वही विपक्ष वालों की नर्वस नाइन्टीज की प्राब्लम। पर सवाल यह है कि सारी सेंचुरियां मोदी जी ही बनाएंगे या विरोधी भी एकाध सेंचुरी लगाकर राष्ट्र का गौरव बढ़ाने में मोदी का हाथ बंटाएंगे। अब क्या मन की बात का विस्तार कर, गालियों की सेंचुरी भी मोदी जी को ही पूरी करनी होगी!
और राष्ट्र का गौरव बढ़ाने से याद आया, इन पहलवानों की अकल क्या वाकई घुटनों में ही होती है। बताइए, मोदी जी पब्लिक को अपने मन की बात सुना-सुनाकर राष्ट्र में गौरव की हवा भरने में लगे हुए हैं, और ये पट्ठे पहलवान पब्लिक को कुश्ती संघ के अध्यक्ष की करतूतों की बात सुनाकर, गौरव के गुब्बारे को पंचर करने पर तुले हैं। अरे इतना तो अब तक सब को समझ ही जाना चाहिए था कि अगर मोदी राज की बुराई करना भारत पर हमला है, अगर अडानी के घोटालों की चर्चा करना भारत पर हमला है, तो ब्रजभूषण शरण सिंह को हटाने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर धरना देना, भारत की शान में बट्टा लगाना क्यों नहीं है? रही महिला पहलवानों की इज्जत-बेइज्जती की बात, तो अव्वल तो ऐसे मामलों में बात ढंकी-छुपी रहने में ही इज्जत रहती है। फिर इज्जत खतरे में हो तब भी, महिला पहलवानों की इज्जत बचाने के लिए मोदी जी, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष से इस्तीफा दिलवाकर, इन अनुशासनहीन खिलाडिय़ों को भारत की साख को बट्टा कैसे लगने देंगे! कुश्ती खिलाड़िऩों की इज्जत, देश की इज्जत से बड़ी तो नहीं ही हो जाएगी? वैसे भी, बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ में, बेटी से कुश्ती लड़ाओ कहां आता है!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)