पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) और भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (एमडीओएनईआर) एवं चांगलांगकन महासंघ अब एक प्रेरणा बन गया है

दैनिक समाचार

पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी) ने स्वयं सहायता समूह महासंघ (एसएचजी फेडरेशन) की स्थापना कीI इससे पूर्व इस क्षेत्र में विभिन्न समुदायों की लगभग निराश और टूट चुकी महिलाएं यद्यपि स्वतंत्र रूप से कुछ नया करने में असमर्थ थीं  फिर भी उन्होंने धीरे-धीरे ही सही एक महासंघ (फेडरेशन) के रूप में एक साथ उठने का साहस जुटाया। तीस साल पहले चांगलांग परिक्षेत्र के निवासी समुदायों के यहां स्कूल, सड़क, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। फिर भी, लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया और वहां समुदायों को कड़ी मेहनत करने और सफलता के लिए अपना स्वयं रास्ता तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, चाहे वह आर्थिक, सांस्कृतिक या शैक्षिक किसी भी क्षेत्र में हो। हालाँकि अब भी अधिकांश गांव ढहने की कगार पर हैं क्योंकि 99% घरों के निवासी अफीम सेवन के आदी हैं। उनके बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है और महिलाओं को भी नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि ज्यादातर पुरुष अब भी अफीम के आदी हैं। महिलाओं को आर्थिक विकास और पुरुषों के सहयोग की कमी का सामना करना पड़ा। चारों ओर केवल निराशा दिख रही थी। इस समय समाज को जिस चीज की जरूरत थी, वह केवल सरकार से मिलने वाला धन नहीं था। लेकिन कमी थी तो केवल कौशल विकास के लिए प्रेरणा और स्वरोजगार और आत्मनिर्भर आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत करना। चांगलांगकन फेडरेशन एक ऐसा महासंघ है जिसने ऐसी स्थिति में डगमगाते लेकिन दृढ़ निश्चयी और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का साहस दिखाया है।

इन गांवों के अधिकांश परिवार कई महीने तो 100 रुपये भी नहीं कमाते हैं। हालांकि एनईआरसीओएमपी की स्थापना के 6 साल हो चुके हैंI लेकिन साफ़ दिखने वाली जमीनी परिस्थितियों के कारण उक्त महासंघ को खुद को ऊपर उठाने में समय लगा। सबसे महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक गतिविधियों के प्रति मानसिकता में परिवर्तन लाना था, क्योंकि पहले केवल स्व-उपभोग के लिए ही कोई काम किया जाता था, जैसे छोटे बगीचे और छोटे धान के खेत जिनकी उपज आधे साल के लिए भी पर्याप्त नहीं होती थी। महिलाओं के पास एकमात्र कौशल कपड़ों की बुनाई करना और चावल से शराब बनाना ही था। चूंकि सरकार बुनकरों पर शायद किसी प्रकार का ध्यान दे पाती थी और ये समुदाय बस कठिनायों से जूझते रहते थे क्योंकि करघे पर बुनाई की तुलना में केवल बैठे रहकर कपडा बुनने में कहीं अधिक समय लगता था जिसके कारण जब तक बुनकर अपनी आयु के तीसवें वर्ष में पहुँचते, तब तक उनकी पीठ में दर्द होने लगताI  साथ ही शारीर के जोड़ और निश्चित रूप से आंखों की रोशनी भी काफी हद तक प्रभावित होती रही, पर इसके लिए भी उस समय की सरकारों के पास बुनकरों के लिए चिकित्सा सहायता पर कोई नीति ही नहीं रही।

इस महासंघ (फेडरेशन) में उन्नीस (19) स्वयं सेवा समूह (एसएचजी) शामिल हुए थे। बीते इन वर्षों में समूहों की इन महिलाओं ने पारंपरिक गतिविधियों के अलावा आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए अकेले कदम बढ़ने का प्रयास छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी गतिविधियों को व्यावसायिक गतिविधियों में बदलने का प्रयास किया और वे स्वयं सेवा समूह गतिविधियों के सिलसिले में कार्यालयों और बैंकों में जाने लगीं।

चांगलांगकन संघ अपनी आर्थिक गतिविधियों के कारण अब निकटवर्ती स्वयं सेवा समूहों के महासंघों के लिए एक प्रेरणा बन गया है। हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी) के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त इस महासंघ की महिलाओं ने केक तैयार करना शुरू किया है। वर्तमान में चांगलांगकन के सदस्यों का अपना केक और कुकीज़ का बाजार है और चांगलांग शहर में इसकी सराहना की जा रही है।

ये स्वयं सहायता समूह महासंघ अब विभिन्न ग्राहकों द्वारा ऑर्डर किए गए क्रिसमस केक बनाते हैं। स्वयं सहायता समूह सदस्यों को पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी) के अंतर्गत चांगलांग सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन समिति (सीसीआईएमएस), जिला चांगलांग, अरुणाचल प्रदेश के तहत प्रशिक्षित किया गया था, जिसे बेकरी इकाई द्वारा भी समर्थन दिया गया था। इसके अलावा इन स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बेकर्स ने एक प्रशिक्षु के रूप में शुरुआत की थी, अब इन प्रशिक्षुओं ने अन्य समुदाय के सदस्यों को प्रशिक्षित किया है और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड- एनएबीएआरडी) द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी भाग लिया है। वे अब बेकरी इकाई भी चला रहे हैं जिसे पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी), पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया है।

पहले यहां मुख्यालय में कोई अच्छा बेकर नहीं था और जन सामान्य को केवल एक जन्मदिन के केक के लिए असम जाना पड़ता था पर अब ये अपने स्वयम सहायता समूह मुख्यालय के केंद्र में सभी प्रकार के केक और कुकीज़ ऑर्डर पर बनाते हैं। उनके ग्राहकों में सरकारी अधिकारी और कार्यालय, असम राइफल्स, केंदीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), राज्य पुलिस, छात्र, ग्रामीण समुदाय आदि शामिल हैं। वे जिला प्रशासन द्वारा समर्थित जिला पुस्तकालय में एक कैफेटेरिया भी चला रहे हैं। अब तक, कुल 500 से अधिक नग (लगभग) केक बेचे गए हैं, जिनकी औसत कमाई 20,000/- रुपये बीस हजार प्रति माह रही है। परियोजना से जो प्रशिक्षण मिला उसने और बाजार की मांग ने उन्हें काम के महत्व का एहसास करा दिया है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘किसी व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि उनके आत्मविश्वास और अधिक प्रेरित किया जाए जिससे बाकी लोग भी आगे बढ़ेंगे।’ 

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