भारत में बेरोजगारी की भयावहता को समझना है तो बेरोजगारी दर को नहीं, रोजगार की दर को देखना चाहिए.

दैनिक समाचार

बेरोजगारी के आंकड़ों की गिनती उनमें से की जाती है जो सक्रियता से रोजगार ढूंढ रहे हैं, पर भारत में बेरोजगारी इतनी अधिक है कि अधिकांश बेरोजगार हिम्मत हार रोजगार ढूंढना भी छोड देते हैं और उन्हें बेरोजगार नहीं माना जाता.

इसके बजाय यह देखना चाहिए कि काम करने की उम्र (15 से 65 साल) के बीच कितनों को रोजगार मिला है?

भारत में अभी यह दर सरकारी आंकड़ों में 43% है, जबकि CMIE के सर्वे में 38% – फर्क यह है कि सरकारी सर्वे पिछले 6 महीने में कभी काम मिला हो, तो रोजगार मान लेता है, जबकि CMIE पिछले हफ्ते में मिला हो तभी रोजगार मानता है.

चीन में यह दर 63% है (समाजवाद के वक्त 80% के ऊपर थी),
बांग्लादेश में 53% है,
पाकिस्तान में 48% है,
विकसित पूंजीवादी देशों में औसतन 55 से 60% के बीच है!

भारत में काम करने वाली उम्र की आबादी 100 करोड़ से ऊपर है, पर आसानी के लिए इतना मान लेते हैं. अगर दुनिया के पैमाने पर 56% को आधार मान लें तो भारत में 56 करोड़ के पास रोजगार होता; पर है 38 करोड़ के पास ही!

अर्थात औसत बेरोजगारी से भी 18 करोड़ अधिक बेरोजगार भारत में हैं!

याद रहे ये संख्या कुल बेरोजगारों की नहीं है, क्योंकि सभी पूंजीवादी देशों में बेरोजगारी है.

यहां हमने सब देशों की औसत से अधिक बेरोजगारों की संख्या बताई है.

वास्तविक बेरोजगारों की संख्या 35 से 40 करोड़ होगी – अगर काम करने की उम्र के 100 करोड़ में से शिक्षा प्राप्त करने वाले और अस्वस्थ व्यक्तियों को छोड दिया जाये तब!

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