लेखक : प्रतीक जे. चौरसिया
कोविड-19 महामारी ने लगभग हर क्षेत्र पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला है और मानव जीवन के सभी पहलुओं को बाधित किया है। हालाँकि यह भविष्य के लिए विचार करने और बेहतर तैयारी करने का अवसर भी प्रदान करता है। इस महामारी की वजह से सभी स्कूल बंद हैं और इससे देश भर के स्कूलों के करीब 240 मिलियन से अधिक बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। स्कूल कब खुलेंगे, यह कहना बहुत मुश्किल है। इसको देखते हुए केंद्र एवं राज्य दोनों ही सरकारें ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा को प्रोत्साहन दे रहीं हैं।
भारतीय शिक्षा प्रणाली पुरानी और संस्कारिक कही जाती है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है। अगर देखा जाए तो भारतीय शिक्षा प्रणाली पहले से ही काफी लचर अवस्था में थी, जिसके समक्ष कोविड-19 महामारी ने और भी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न की हैं ।
कोविड-19 महामारी और इसके कारण लगाए गए लाकडाउन ने भारत में शैक्षणिक ढांचा की कमियों को उजागर किया है। हालांकि लगभग 5,000 साल पुरानी भारतीय शिक्षा प्रणाली ने कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षण दृष्टिकोण में कई बदलावों को शामिल किया है।
डिजिटल शिक्षा
कोविड-19 महामारी की स्थिति में शिक्षा को संचालित रखने हेतु ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर फोकस किया जा रहा है; ताकि ‘एजुकेशन फॉर ऑल’ (Education for All) के विजन को पाया जा सके। ऑनलाइन या डिजिटल शिक्षा का तात्पर्य प्रौद्योगिकी, उपकरण, अंतरक्रियाशीलता, अवधि, अध्ययन सामग्री और उपयुक्त प्लेटफार्मों के माध्यम से कक्षा में शिक्षण को और अधिक संवादात्मक (इन्टरेक्टिव) बनाना है।
जब टेक्नोलॉजी शैक्षिक उद्देश्यों के लिए अच्छी तरह इस्तेमाल की जाती है, तब शिक्षा का अनुभव ज्यादा असरदार होने में मदद मिलती है और छात्र उसमें ज्यादा शामिल होते हैं। आज सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में PPT’s, वीडियो प्रेजेंटेशन्स, ई-लर्निंग तरीके, ऑनलाइन प्रशिक्षण और अन्य डिजिटल पद्धतियों के इस्तेमाल को महत्व दिया जा रहा है। इस वजह से कक्षा में सिखाना ज्यादा संवादात्मक (इन्टरेक्टिव) होती जा रही है।
सीखना बुनियादी तौर से एक सामाजिक गतिविधि है। इसीलिए बच्चों को ऑनलाइन नेटवर्क से जुड़ने से रोकने के बजाय हमने उन्हें सुरक्षा के साथ सीखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डिजिटल शिक्षा अब हमारे जीवन का एक अंग बन चुकी है। अगर हम डिजिटल लर्निंग चाहते हैं, तो हमें अपने स्कूलों और शिक्षकों को उचित रूप से इंटरनेट संसाधनों के साथ तैयार करना जरूरी है।
‘एजुकेशन फॉर ऑल’ और डिजिटल शिक्षा
मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य विवाद में सन 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा पाने के अधिकार को प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार बताते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया था । भारतीय संविधान में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 21(क) जोड़कर 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है।
अगर सभी के लिए शिक्षा उपलब्ध करवाना है तो इसमें डिजिटल शिक्षा एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती है; क्योंकि इसकी व्यापक पहुँच होती है। एक शिक्षक ऑनलाइन प्लेटफ़ार्म के द्वारा एक ही कमसमय में अधिक संख्या में विद्यार्थियों से जुड़ सकता है। इसके लिए सरकार को डिजिटल शिक्षा से संबन्धित चुनौतियों एवं अवसरों पर फोकस करने की आवश्यकता है।
‘एजुकेशन फॉर ऑल’ हेतु डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियाँ व समस्याएं
देश में हर शैक्षणिक बोर्ड, कॉलेज, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम अलग-अलग हैं। पाठ्यक्रम की असमानता एक बहुत बड़ी चुनौती है, जो डिजिटल या ऑनलाइन शिक्षा के समुचित क्रियान्वयन में आड़े आ सकती है।
भारत में इंटरनेट की स्पीड एक बड़ी समस्या है। ऐसे में वीडियो क्लासेज लेते समय इंटरनेट स्पीड का कम या ज्यादा होना समस्या पैदा करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट स्पीड और भी खराब हालत में है,क्योंकि यहाँ इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ बिजली की भी समस्या है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (National Statistical Organisation- NSO) की हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में विभिन्न राज्यों, शहरों और गांवों तथा विभिन्न आय समूहों में डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) काफी अधिक है। इसके अलावा, देश के बहुतायत विद्यार्थियों के पास बहुत कम डिजिटल या ऑनलाइन संसाधन उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey) के वर्ष 2017-18 के आँकड़ों के अनुसार, केवल 42 प्रतिशत शहरी और 15 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा मौजूद थी।
- डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र ‘तकनीकी समझ’ भी एक बड़ी समस्या है। अगर तकनीकी शिक्षा से जुड़े अध्यापकों और विद्यार्थियों को छोड़ दें तो बाकी लगभग सभी विषयों से जुड़े शिक्षकों और शिक्षार्थिंयों को तकनीकी समस्या का सामना करना पड़ता है। प्राइमरी और माध्यमिक स्तर पर ये समस्या और अधिक है।
- ऑनलाइन शिक्षण को सामान्यत: रेगुलर कक्षाओं की तरह नहीं चलाया जा सकता है, जिससे लर्निंग आउटकम प्रभावित होता है।
- कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी में जिस ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का संचालन किया जा रहा है , उसमें लगभग 60 से 70 प्रतिशत विद्यार्थी इसके दायरे से बाहर हैं।
- भारत में शिक्षकों के पास ऑनलाइन माध्यमों द्वारा बच्चों को शिक्षा देने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षिण नहीं है।
अगस्त, 2020 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के आर्थिक परिणामों के प्रभावस्वरूप अगले वर्ष (2021) लगभग 24 मिलियन बच्चों पर स्कूल न लौट पाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94% छात्र आबादी प्रभावित हुई है और निम्न तथा निम्न- मध्यम आय वाले देशों में यह संख्या लगभग 99% है। महामारी ने शिक्षा प्रणाली में मौजूद असमानता को और अधिक बढ़ा दिया है।
डिजिटल शिक्षा के प्रचलन में महिला वर्ग भी काफी संवेदनशील है; क्योंकि इनके पास डिजिटल संसाधन काफी कम हैं। इसके कारण बाल विवाह और लिंग आधारित हिंसा के मामले अधिक देखने को मिल सकते हैं।
डिजिटल ‘एजुकेशन फॉर ऑल’ के लिए सुझाव
डिजिटल एजुकेशन फॉर ऑल के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे बुनियादी शर्त यह है कि डिजिटल एजुकेशन से जुड़ी हुई आधारभूत संरचना का विकास पहले किया जाए एवं ‘डिजिटल डिवाइड’ जैसे मूलभूत विषय वस्तु का सरकार के द्वारा व्यापक रूप से संबोधित किया जाए। वर्तमान में ग्रामीण इलाकों में अभी भी दूरसंचार अवसंरचना का घनत्व कम है; विशेष रूप से दुर्गम क्षेत्रों जंगलों, पहाड़ी, सीमावर्ती इलाकों में।
एजुकेशन फॉर ऑल के लक्ष्य को पाने के लिए डिजिटल साक्षरता की दिशा में भी काफी तेजी से आगे बढ़ना होगा; क्योंकि डिजिटल शिक्षा के लिए अभी भी शिक्षकों एवं अन्य संबंधित कार्यबल में डिजिटल साक्षरता का न होना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
सरकार को डिजिटल शिक्षा के तहत एजुकेशन फॉर ऑल का लक्ष्य पाने के लिए आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की उपलब्धता पर भी ध्यान देना होगा; जिससे डिजिटल शिक्षा को सुचारू रूप से सब तक समावेशी पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
सरकार को शिक्षा क्षेत्र के अग्रणी एनजीओ को शामिल करके डिजिटल लर्निंग डिजिटल एजुकेशन से जुड़े उनकी विशेषताओं का लाभ उठाते हुए आगे बढ़ना चाहिए; जिससे सभी भारतीय लोगों को डिजिटल शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
अगर पाठ्यक्रम की असमानता को दूर कर लिए जाये तो देश के किसी भी कोने में कोई विषय सामग्री तैयार होगी, तब वह सामग्री समानता के साथ देश के सभी विद्यार्थियों के लिए लाभकारी होगी। इस समान विषय सामग्री का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद आवश्यकता के अनुसार कराया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में डिजिटल शिक्षा हेतु काफी बेहतर प्रावधान किए गए हैं; जिन्हें व्यावहारिक धरातल पर कियान्वित करने पर ज़ोर देना चाहिए। यह न केवल ‘समग्र और दूरगामी’ है; बल्कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रभावी’ भी है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को लागू करने पर अच्छी तरह चिंतन करके ठोस कार्ययोजना बनानी चाहिए; ताकि यह महज एक अच्छे विचार तक सीमित ना रह जाए।
कोविड-19 महामारी के इस दौर में पठन-पाठन के अनुभवों को देखते हुए ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा से भविष्य में शिक्षा को किफायती, समावेशी और कम लागत वाली बनाया जा सकता है। इसलिए सरकार सहित सभी हितधारकों को इस ओर मिलकर प्रयास करना चाहिए; ताकि आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में छात्रों के लिए ई-लर्निंग से शिक्षा को और अधिक सुलभ बनया जा सके और ‘एजुकेशन फॉर ऑल’ के विजन को पाया जा सके।