आज Albert Einstein का 140वां जन्मदिवस है। अपने बचपन के स्कूली दिनों में आइंस्टीन जिन हालातों से गुजरे, आज भी, कम से कम हमारे देश मे, हालत उससे अलग नहीं हैं। आज भी स्कूलों की स्थिति ज्यादा बेहतर नहीँ हुई। आज भी स्कूलों में ‘सोचना’ नहीं सिखाया जाता। आज भी कोई स्कूल एक बच्चे के लिए एक बुरा सपना ही है, जिसे वह अवश्य ही भूलना चाहेगा। आज भी जीवन के असली कौशल सिखाने से स्कूल कौसों दूर हैं। मुझे उन बच्चों के चेहरे देखकर बहुत तरस आता है, जो हमारी वर्तमान शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शामिल नहीँ हो पाते और स्कूल के बेहद रूखे system में खुद को समायोजित नहीँ कर पाते। वे बच्चे किसी भी दृष्टिकोण से अक्षम नहीँ हैं, बस हमारी विधियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। वरना क्या कारण है कि केवल कुछ ही विद्यार्थी (मात्र 8-10 % ही) अध्यापक के साथ चल पाते हैं। और हम हैं कि syllabus के मासिक और वार्षिक target को पूरा करने में और बाकी सारे अनावश्यक कार्यों में उलझाकर रख दिए जाते हैं। शिक्षा-विभाग के ज़मीनी सच्चाई को न समझकर नए नए प्रयोगों का परीक्षण-स्थल बने स्कूल आज अपनी ही हालत पर रोने को मज़बूर हैं। और लगता है नीचे से ऊपर के सारे अधिकारी और कर्मचारी सिर्फ नौकरी ही कर रहे हैं बस…..
न जाने कब वो दिन आएगा, जब स्कूल समाज और सरकारों के focus में आ पाएंगे
और शिक्षा भविष्य के प्रति निवेश समझकर हमारी सोच के केंद्र में होगी
आज परीक्षा केंद्रों में बच्चों की हड़बड़ाहट, बेचैनी और मात्र पास होने के लिए अपराध तक पहुँचने की हद क्या किसी को भी नहीं झकझोरती…….?
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