क्यासचमैबौद्धकालमैवैदिकसंस्कृतीथीयासिर्फऔरसिर्फकपोलकल्पित_है?

दैनिक समाचार

सर्वप्रथम, आपको शुंग काल से पूर्व के प्राप्त अवशेषों को देखना होगा कि सच में पुष्यमित्र शुंग ने पूर्व के किसी बौद्ध-स्थल को नष्ट भी किया था। या उसने सत्ता और राजनीतिक मजबूरी के चलते पक्ष-विपक्ष में रहे किन्हीं खास लोगों की हत्या की थी या समूचे भारत में रह रहे बौद्ध मतावलंबियों की भी हत्या कर दी थी?

इन सभी बातों के बाद दूसरी बातों पर भी बारीकी से ध्यान देना होगा , कि क्या वास्तव में गौतम बुद्ध के पहले भी वर्णाश्रम पर आधारित समाज का साक्ष्य मिलता है
या यह वर्णागत समाज सिर्फ कपोल-कल्पित है?

तीसरी बात, यह भी देखना होगा कि क्या गौतम बुद्ध के पूर्व-काल में भी संस्कृत भाषा में वैदिक ऋचाओं के साथ-साथ आज के देवताओं में प्राण प्रतिष्ठा करने वाले मंत्र या ब्राह्मणों द्वारा देवताओं को अपने वश में करते हुए कर्मकांड करने वाले मंत्र का मिलना होता था?

या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सिर्फ आज
की कपोल-कल्पना द्वारा रचित मंत्र का नाम देते हुए ठगी करने की भाषा है?

चौथी बात, यह भी प्रमुखता से देखना होगा कि क्या वैदिक सभ्यता का मूलाधार देवी-देवता की मूर्तियां हैं? अगर देवी-देवता की मूर्तियां हैं तो क्या वैदिक युग का घालमेल ये सभी देवी-देवता की मूर्तियां ईसा पूर्व के भारत में भी मिलती थीं?

अगर नहीं मिलती थीं तो इन सभी का बनना कब और किस आधार पर हुआ है?आज का प्रमाण तो इन सभी मूर्तियों का निर्माण ब्रिटिश भारत के समय स्थापित गीता प्रेस में कार्यरत चित्रकारों के कल्पना की बुनियाद पर प्रमाणित होता है।

अगर इस बात पर किसी को आपत्ति है तो गीता प्रेस की स्थापना से पूर्व वैदिक पात्रों का चित्र दिखाया जाए?
पांचवीं बात कुरीति से संबंधित है, इसमें एक प्रश्न उठता है कि वैदिक ब्राह्मणी परंपरा में देवदासी प्रथा, सती प्रथा, हरिबोल प्रथा, नर-बलि प्रथा, पशु-बलि प्रथा, नियोग प्रया, कन्या शुद्धि प्रथा जैसी अनेक कुरीतियां होने के बाद
भी यह ब्राह्मणी-वैदिक संस्कृति खत्म नहीं हुई,

लेकिन आज के कुछ तथाकथित विद्वान पंडित लोग पूर्व की बौद्धिक (बौद्ध) परंपरा का खात्मा का कारण अज्ञात
कुरीतियों को बताते नहीं थकते हैं! आखिर ऐसी दोरंगी सोच क्यों?

जब तक इन सभी बिंदुओं पर सूक्ष्म दृष्टिकोण को रखते हुए साक्ष्यपरक विश्लेषण नहीं करेंगे, तब तक किसी के पक्ष में कुछ भी कहना अपनी मनोनुकूलता के अनुसार तारतम्य बैठाने के समान समझा जाएगा।

आज तक वैदिक संस्कृती का कोई भी साक्ष्य नही मिला वैदिक संस्कृती सिर्फ और सिर्फ कपोल-कल्पित है?

वैभवी अम्बेडकर

जय भीम जय मूलनिवासी __

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