भाग-1
साहित्य और फिल्म समाज का आइना होता है और इन्हीं से समाज बहुत कुछ सीखता है। इस फिल्म कश्मीर फाइल्स के जरिये आप देख सकते हैं। द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने किस तरह से जनता के दिलो-दिमाग में एक धर्म विशेष और कम्युनिस्टों के खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश किया है।
फिल्म के देखने के बाद थियेटर के अन्दर और बाहर से कई विडियो सोशल मीडिया में तैर रहे हैं, आप देख सकते हैं जो खुलेआम एक धर्म विशेष के खिलाफ टिप्पणी कर माहौल खराब कर रहें हैं। इस फिल्म से अधिकांश कश्मीरी पण्डित भी खुश नहीं हैं क्योंकि इससे इनके बीच में जो दूरियां थी और बढ़ जायेंगी और इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता इसलिये इस फिल्म के खिलाफ खुलेआम बोल रहें हैं और इस फिल्म पर सवाल भी उठा रहे हैं।
यह दो घंटे पचास मिनट की वाहियात फिल्म है। मैं इसे नहीं देखना चाहता था, मगर इसकी समीक्षा के लिए तथा फिल्म बनाने और इसके प्रचार के पीछे शासक वर्ग के नुमाईन्दा नरेन्द्र मोदी जैसे क्रूर शासकों और उनके संघी साथियों की साज़िश का पर्दाफाश करने के लिए देखना पड़ा।
इसी तरह की 2020 में सिकारा नाम की एक फिल्म आयी थी जिसे देखकर समय बर्बादी हुई और निराशा भी हुई पर इतनी खतरनाक नहीं थी जितनी द कश्मीर फाइल्स है।
कश्मीर फाइल्स फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाती है और एक के बाद एक प्रॉपगैंडा सामने आता जाता है जैसे “सेल्यूलर असल में सेकुलर हैं, यानी बीमार हैं”। “संघवाद से आजादी, मनुवाद से आजादी…. जैसे नारे लगाना देश से गद्दारी करना है”। “मुसलमान आपका कितना भी ख़ास क्यों ना हो, मगर वक़्त आने पर वो अपना मजहब ही चुनेगा।”….
मै इस फिल्म को देखकर इस फिल्म के उद्देश्य और कश्मीर त्रासदी के इतिहास पर लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। मगर इस सब के बावजूद मैं आपसे कहूँगा कि इस नफरती, झूठी और वाहियात फिल्म को मत देखिये। देखना है तो क्रांतिकारियों के और प्रगतिशील फिल्मों को और ज्ञानवर्धक फिल्में देख सकते हैं जैसे द लीजेंड आफ आफ भगत सिंह, दो बीघा जमीन, पार्टी 1984, निशांत, आक्रोश-ओम पुरी, प्यासा- गुरुदत्त, चिटगांव, दामूल, फ़िराक़, सदगति, लीजेंड ऑफ भगत सिंह, चक्रव्यूह, मिर्च मसाला, 1084 वें की माँ, अर्थ, पिंजर, मंटो, परज़ानिया, लाइफ इज ब्यूटीफुल, उधम सिंह, गरम हवा, 200 हल्ला हो, काला, जॉर्ज रेड्डी, Umar mukhtar, Parched, Schindelers list, Breaking With Old Idea’s, Spartacus, The Motorcycle Diaries, The Yong Carl marx….
फिर भी इस वाहियात फिल्म को देखना ही चाहते हैं तो हिन्दू मुस्लिम नजरिए से मत देखिये, इसे अमीर और गरीब के नजरिये से देखिये। इस सच्चाई को समझते हुए देखिये कि शासक वर्ग ने जनता को जनता से लड़ाने के लिये किसी तरह से साज़िश रची है और मेहनतकश जनता इनके साजिश में फंसकर अपनों के लिये दिलों में नफरत भरकर आपस में लड़कर शासक वर्ग का काम आसान कर दे रहें हैं।
मुझे इस कश्मीर फाईल्स फिल्म से आपत्ति इसके छिपे शातिराना उद्देश्य और फिल्म की नियत से है कि पूरे फिल्म में सच कम और अधिकांश झूठ को इस शातिराना ढंग से पेश करते हुए कश्मीरी पण्डितों पर हुवे जुल्म और पलायन की त्रासदी को कश्मीर समस्या से जोड़कर एक अलग और स्वतंत्र समस्या के रूप में पेश किया गया है।
शेष अगले भाग में….
अजय असुर
राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा
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