पूँजीवादी ढाँचे को उखाड़कर समाजवादी ढाँचे के निर्माण की लड़ाई को तेज़ करो!
प्यारे लोगो,
23 मार्च का दिन इंक़लाबी लहर के विख्यात शहीदों, शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का 91वाँ शहादत दिवस है। इस दिन इंक़लाबी लहर के ये योद्धा बेशक शारीरिक तौर पर मेहनतकश लोगों से बिछड़ गए, लेकिन उनके विचार और कुर्बानियों भरी विरासत आज भी जुझारू लोगों की लहर को रौशन कर रही है। ‘हवा में रहेगी मेरे ख़याल की बिजली, ये मुश्ते-खाक है फानी, रहे, रहे ना रहे’ – शहीद भगतसिंह की ये पंक्तियाँ हूबहू सच साबित हुई हैं। शहीद भगतसिंह और उनके साथियों के ख़यालों की बिजली नौजवान पीढ़ी को एक बेहतर समाज बनाने के लिए जूझने का जज़्बा और सूझ देती है। आज उन्हें याद करने का हमारा मक़सद है उनके सपनों और विचारों पर शासकों द्वारा बैठा दी गई धूल को हटाना और उनके विचारों को अपनाकर इंक़लाबी परिवर्तन के काम को आगे बढ़ाने के लिए नौजवानों का आह्नान करना।
इन योद्धाओं की शहादत ने देश में आज़ादी की लहर का रास्ता रौशन किया और डेढ़ दशक बाद भारत अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक चुंगल से आज़ाद हो गया। लेकिन आज़ादी के संघर्ष की बागडोर इंक़लाबी ताक़तों के बजाए भारत के पूँजीपतियों-कुलीनों के हाथ आ गई जिसकी अगवाई गांधी-नेहरू वाली कांग्रेस पार्टी कर रही थी। इसी के चलते असली अर्थों में आज़ादी नहीं मिल सकी। शहीद भगतसिंह और उनके साथियों की जद्दोजहद सिर्फ अंग्रेज़ों से मुक्ति के लिए नहीं थी, बल्कि लूट-उत्पीड़न पर टिके पूरे ढाँचे से मुक्ति के लिए थी, जो कि अधूरी ही रह गई। सत्ता के शीर्ष पर कांग्रेस के रूप में भारत के बड़े पूँजीपतियों का कब्जा हो गया, जिसके चलते देश के मेहनतकश लोगों के पल्ले कुछ ना पड़ा।
चाहे राजनैतिक तौर पर हम औपनिवेशिक गुलामी से आज़ाद हो गए, लेकिन अब भारत का शासक वर्ग दुनिया के साम्राज्यवादी देशों का सहभागी बनकर देश के मेहनतकश लोगों का लहू चूस रहा है। पिछले सात दशकों से अधिक समय में पूँजीपतियों और साम्राज्यवादियों की इस मंडली ने मेहनतकशों की बेतहाशा लूट की है – ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, महँगाई जैसी समस्याएँ उनके ऊपर लादी हैं। आज भी देश की नब्बे करोड़ जनता ग़रीबी में रहने पर मजबूर है। आज के महँगाई के इस दौर में रोज़गार प्राप्त आबादी का 90 प्रतिशत हिस्सा दस हज़ार रुपए प्रति महीना से भी कम कमाता है। करोड़ों लोगों के सिर पर छत नहीं है, जो खुले आसमान के नीचे िज़ंदगी बसर करने को मजबूर हैं। बेरोज़गारी रिकार्ड स्तर को छूह चुकी है। लोगों की ही मेहनत से बने सरकारी विभागों को निजीकरण के तहत लगातार बेचा जा रहा है। भारत में बसने वाले विभिन्न राष्ट्र, धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, स्त्रियों पर उत्पीड़न लगातार जारी है, बल्कि और बढ़ रहा है। दूसरी ओर देश के मुट्ठीभर धन्नासेठों की दौलत आसमान छू रही है और अमीर और ग़रीब का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। साल 2014 के बाद से केंद्र में आई मोदी की अगवाई वाली सांप्रदायिक फासीवादी भाजपा-आरएसएस की सरकार ने लोगों का शोषण और तेज़ करके अपने पूँजीपति मालिकों की तिजोरियाँ भरी हैं। वैश्वीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की जनविरोधी नीतियों को और आगे बढ़ाया है। साथ ही देश की आबो-हवा में सांप्रदायिक ज़हर घोलकर हिंदुत्व के सांप्रदायिक एजंडे को भी लागू कर रही है।
साथियो, इन हालात से स्पष्ट है कि मौजूदा आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था मेहनतकशों को दुश्वारियों के सिवा और कुछ नहीं दे सकती। इसीलिए एक बेहतर समाज बनाने के लिए इस पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से ख़त्म करना होगा। सिर्फ पार्टियाँ या सरकार बदलकर कुछ भी हासिल नहीं होगा, क्योंकि ये सभी पार्टियाँ पूँजीपतियों की ही पार्टियाँ हैं और उन्हीं के हितों की नुमाइंदगी करती हैं। इन पार्टियाँ का मेहनतकश लोगों से कोई भी वास्ता नहीं।
पिछले दिनों संपन्न हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पंजाब में आम आदमी पार्टी और अन्य चार में भाजपा की सरकार बनी है। भले ही पंजाब में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से ‘बदलाव’ का एक भ्रम पैदा हुआ है, लेकिन नीतियों के स्तर पर ‘आप’ भी बाव़फ़ी पार्टियों की ही तरह पूँजीवादी पार्टी है। क्योंकि शासक वर्ग हमेशा इस बात से डरता है कि पारंपरिक पार्टियों के खि़लाप़फ़ गुस्सा कहीं पूरे ढाँचे के खि़लाप़फ़ गुस्से में ना बदल जाए, इसीलिए शासक वर्ग ‘आप’ जैसी पार्टियों को आगे करके इस ढाँचे को बचाने और लोगों के गुस्से को ठंडा करने का काम करता है। ‘आप’ की सरकार भी मेहनतकशों के साथ वैसा ही बर्ताव करेगी, जैसाकि अकाली दल-कांग्रेस की सरकारें करती आई हैं। यह पूँजीपतियों की ही सेवा करेगी। भले ही जीतने के बाद भगवंत मान ने शहीद भगतसिंह से संबंधित गाँव खटकड़ कलाँ में शपथ ग्रहण समागम करने और शहीदों के सपनों को साकार करने का जुमला उछाला है, लेकिन ऐसा करने के पीछे इनकी कोशिश शहीद भगतसिंह जैसे इंक़लाबियों के विचारों को धुँधला करने की है। क्योंकि भगतसिंह का सपना इस पूँजीवादी ढाँचे को सलामत रखना नहीं, बल्कि इसे तबाह करके मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट ख़त्म करने वाला समाजवादी ढाँचा बनाना था। चार राज्यों में भाजपा की जीत भी इसी तरह मेहनतकशों के लिए और मुश्किलों को लेकर आएगी। केंद्र में पहले से ही मौजूद भाजपा और अब राज्यों में दोबारा सत्तासीन होने के बाद भाजपा सरकार का लोगों के ऊपर आर्थिक और सांप्रदायिक फासीवादी हमला और तेज़ होगा।
इसीलिए आज शहीद भगतसिंह और उनके साथियों की महान विरासत और उनके सपनों को ‘आप’ जैसी पूँजीवादी पार्टियों द्वारा बदु करने की कोशिश को नकारते हुए और भाजपा के फासीवादी रथ को रोकने के लिए शहीदों के सच्चे वारिसों का प़फ़ज़र् बनता है कि वे अपना प़फ़ज़र् पहचानते हुए शहीद भगतसिंह और उनके साथियों के सपनों को लोगों के बीच ले जाएँ, ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ के नारे के असली अर्थों को लोगों तक लेकर जाएँ और इंक़लाबी बदलाव के कार्य में और तेज़ी से जुट जाएँ। आज यही इन इंक़लाबी शहीदों को याद करने का मक़सद और सच्ची श्रृद्धांजलि हो सकती है। 23 मार्च के महान अवसर पर इन महान शिख़्सयतों को याद करते हुए हम ‘नौजवान भारत सभा’ की ओर से भगतसिंह के सच्चे वारिसों का आह्नान करते हैं कि आओ! जिनके दिल में आम लोगों के लिए दर्द है, जो कुछ कर गुज़रने की हिम्मत रखते हैं, जो लूट-शोषण-बेइंसाप़फ़ी को बर्दाश्त नहीं कर सकते, आओ! संघर्षों के मैदान आपको आवाज़ दे रहे हैं! आओ शहीद भगतसिंह और उनके साथियों के सपनों के समाज के लिए, समाजवाद के निर्माण के लिए संघर्ष करें और इस मानवद्रोही व्यवस्था को उखाड़ फेंकें।
(नौजवान भारत सभा द्वारा जारी पर्चा)