करीब 18 साल पहले यानी 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र साप्ताहिक ‘लोकलहर’ (हिंदी) और पीपुल्स डेमोक्रेसी (अंग्रेजी) में छपे एक लेख में अनुपम खेर का ताल्लुक RSS से बताया गया था।
लेख अखबार के संपादक कॉमरेड हरिकिशन सिंह सुरजीत ने लिखा था, जिसमें उन्होंने वाजपेयी सरकार के दौर में सरकारी पदों से नवाजे गए ऐसे लोगों के नामों का उल्लेख किया था, जो RSS से जुड़े थे। ऐसे लोगों में अनुपम खेर का नाम भी शामिल था, जो उस दौरान सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए थे और बाद में यूपीए सरकार आने पर उन्हें हटा दिया गया था।
अनुपम खेर अपने हटाए जाने से तो आहत थे ही, लेकिन इससे भी ज्यादा क्षुब्ध वे इस बात से हुए थे कि उनका संबंध RSS से जोड़ा गया था। उन्होंने इसे अपने चरित्र हनन की कोशिश मानते हुए कॉमरेड सुरजीत को अपने वकील के जरिए कानूनी नोटिस भिजवाया था।
उस नोटिस के बहुत संक्षिप्त जवाब में सुरजीत ने अनुपम खेर से इतना ही पूछा था कि इसमें इज्जत खराब होने जैसी क्या बात हो गई? बाद में अनुपम खेर ने सुरजीत पर अदालत में मानहानि का मुकदमा भी दायर किया।
जैसा कि अदालतों में होता है, उस मुकदमे में भी कुछ समय तक तारीख पर तारीख लगी। कॉमरेड सुरजीत अपनी व्यस्ताओं के चलते किसी भी तारीख पर अदालत में हाजिर नहीं हो सके। लेकिन उसी दौरान अनुपम खेर को उनके किसी समझदार शुभचिंतक ने समझाया कि इस मुकदमे से फजीहत के अलावा कुछ हासिल नहीं होने वाला है। बात उनकी समझ में आ गई और उन्होंने वह मुकदमा वापस ले लिया।
अनुपम खेर ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैंं जो RSS के साथ अपना नाम जोड़े जाने पर शर्म या अपराधबोध महसूस करते रहे हैं। सोशल मीडिया पर कई कवि, लेखक, साहित्यकार, पत्रकार आदि भी ऐसे पाए जाते हैं, जो सरकार के हर गलत काम का बचाव करते रहते हैं, लेकिन RSS से अपना संबंध जोड़े जाने पर बुरा मान जाते हैं।
आपातकाल के दौरान तो RSS के हजारों स्वयंसेवक थे, जिन्होंने अपने घरों पर टंगी हेडगेवार, गोलवलकर और सावरकर की तस्वीरें हटा कर उनकी जगह महात्मा गांधी, नेहरू और इंदिरा गांधी की तस्वीरें लगा ली थीं।
अनिल जैन