हमारे महान क्रांतिकारी राजगुरु सुखदेव और भगत सिंह

दैनिक समाचार

हमारे महान क्रांतिकारी राजगुरु सुखदेव और भगत सिंह


               ,,,,, मुनेश त्यागी 

मेरी कलम इस तरह से
वाकिफ है मेरे विचारों से
कि इश्क भी लिखना चाहूं
तो इंकलाब लिखा जाता है।
आज राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की फांसी का शहादत दिवस है। आज के दिन अंग्रेजों ने भारत माता के इन तीन सपूतों को हमसे छीन लिया था। 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने अपनी सनक और साजिश के तहत हमारे इन तीन वीर क्रांतिकारी शहीदों को मौत के घाट उतार दिया था।
आखिर हमारे क्रांतिकारी साथी क्या चाहते थे, क्यों इनको इतनी छोटी छोटी उम्र में अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई? जब हम अपने इन साथियों के जीवन का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं की राजगुरु सबसे ज्यादा निडर और त्याग की मूर्ति थे, सुखदेव अपने समय के सबसे बड़े संगठनकर्ता थे और भगत सिंह अपने सभी साथियों में वैचारिक रूप से सबसे ऊंचे स्तर के और मजबूत थे।
अंग्रेजों का मानना था कि अगर इनको फांसी ना दी गई और इनको छोड़ दिया गया तो यह फिर से जनता में इंकलाब की बात करेंगे, जनता का राज काम करने के बात करेंगे, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद करेंगे और अंग्रेजों की तानाशाही का विनाश करेंगे। इन्हीं सब मुद्दों को विचार में रखते हुए हमारे भारत माता के इन तीन शहीदों को फांसी दे दी गई।
राजगुरु महाराष्ट्र से थे, सुखदेव और भगत सिंह लायलपुर पंजाब से थे। सुखदेव का मानना था कि मौके के अनुसार सर्वोत्तम का प्रयोग किया जाना चाहिए। वे समाजवाद के बड़े पढ़ाकू थे। उनका कहना था कि हमारे दल का, क्रांतिकारियों का मकसद देश में समाजवादी प्रणाली स्थापित करना है। उनका मानना था कि हम तीनों के फांसी पर चढ़ने से देश की जनता का भला होगा।
राजगुरु का मानना था कि दुनिया से भागकर इस दुनिया को नहीं बदला जा सकता। वह क्या कमाल के इंसान थे कि मरने के मामले में उनकी भगत सिंह से होड़ लगी थी। वह संघर्षों में सबसे आगे रहना चाहते थे और उनकी इच्छा थी कि उनकी मौत भगत सिंह से पहले हो। उनका मानना था कि कम्युनिज्म या समाजवाद का रास्ता ही देश के भविष्य का रास्ता हो सकता है। समाजवाद के दीवाने थे राजगुरु।
हमारे इन तीनों शहीदों को समाजवाद में गहरा विश्वास था। यह तीनों अपने को देश के लिए मरना सौभाग्यशाली समझते थे। सुखदेव खूबसूरत दुनिया बनाने का ख्वाब लेकर इस दुनिया से चले गए। वे मानते थे कि हमारे देश में गरीबी है अभाव है और हमारी जनता के बीच में प्यार का अभाव है।
भगत सिंह अपने सब साथियों में, जिसमें हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ के लोग भी शामिल थे, सबसे बड़े विद्वान और विचारक थे। वह पढ़ने के शौकीन थे, उनकी जेब में हमेशा पुस्तक मौजूद होती थी। वह जब भी खाली समय में होते तो पुस्तक ही पढ़ते रहते थे और लिखते रहते थे उनका मानना था कि संगठन का बनाना और प्रचार करना क्रांति के लिए सबसे जरूरी है।
उन्होंने शोषण,दरिद्रता, असमानता अन्याय और भेदभाव का गहन रूप से अध्ययन किया। आजादी को बारे में उनका मानना था कि राजनीतिक ही नहीं आर्थिक और सामाजिक आजादी भी इस देश को चाहिए, इसके बिना हमारा देश आगे नहीं बढ़ सकता। वे साम्राज्यवाद विरोधी भावना को जनता में जगाना चाहते थे। वे समाज सामाजिक बदलाव के लिए क्रांतिकारी आंदोलन के लिए जनता में सहानुभूति पैदा करना चाहते थे।
वे तमाम तरह के शोषण के खिलाफ थे शोषण चाहे मनुष्य द्वारा मनुष्य का हो या एक द्वारा दूसरे राष्ट्र का हो। भगत सिंह क्रांति के एक बहुत बड़े प्रचारक थे। वाणी और लेखनी के धनी थे, पुस्तक प्रेमी थे। अभी तक प्राप्त 140 लेखों में भगत सिंह द्वारा 97 लेख लिखे गए थे एक बहुत बड़े लेखक थे। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक आजादी के बिना राजनीतिक आजादी के कोई अर्थ नहीं है।
समाजवाद की आवाज को सबसे पहले हमारे शहीदों और भगत सिंह ने सुना था और समाजवादी समाज और समाजवादी राजसत्ता की बात सबसे पहले अपने साथियों में भगत सिंह ने की थी। उनका लक्ष्य किसानों मजदूरों का राज काम करना और समस्त मानवता को सुखी बनाना था। भगत सिंह के आने से संगठन का जनतांत्रिककरण हुआ और संगठन के यानी एचएसआरए के सबसे पहले सेनापति शहीद चंद्रशेखर आजाद को चुना गया था और भगत सिंह अपने इस संगठन के प्रचार मंत्री बने थे।
हमारे इन शहीदों ने अदालत को राजनीतिक प्रचार का माध्यम बनाया और एसेंबली में नारे लगाए,,,, “सर्वहारा जिंदाबाद”,”साम्राज्यवादमुर्दाबाद”,”समाजवाद जिंदाबाद”, “इंकलाब जिंदाबाद”। हमारे यह साथी क्रांति से क्या मतलब रखते थे? क्रांति यानी मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का खात्मा। वाद विवाद में वे उत्तेजित नहीं होते थे। शोषकों को खत्म कर यह दुनिया हमें स्वर्ग बनानी पड़ेगी।उन्होंने भगवान और धर्म की निरर्थकता पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा था कि हमारा काम इस धरती को स्वर्ग बनाना है।उन्होंने अदालत को क्रांतिकारी प्रचार का माध्यम बनाया। साम्यवाद और समाजवाद भगत सिंह का प्रिय विषय थे। हमारे इन शहीदों ने नौजवानों को क्रांति के राही बताया, लोगों को जगाया और संगठित होना सिखाया, समाज में फैली मायूसी और लाचारी को दूर किया और खोए आत्मविश्वास को जगाया। यह लोग हमारे सारे क्रांतिकारी और उनके दल के लोग धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे, ऊंच- नीच छोटे-बड़े की सोच को खत्म करना चाहते थे, समाज का क्रांतिकारी और समाजवादी रूपांतरण चाहते थे। वह कांग्रेस को एक समझौतावादी और जातिवादी और उसी शोषणवादी सत्ता तंत्र को कायम रखने वाला दल मानते थे।उनका मानना था कि एक दिन कांग्रेस लुटेरे साम्राज्यवादीअ अंग्रेजों से समझौता कर लेंगे, गोरे अंग्रेजों की जगह काले भारतीय अंग्रेज बैठ जायेंगे और कांग्रेस का आंदोलन खत्म हो जाएगा।
उनका मानना था कि क्रांति से सर्वहारा वर्ग का स्थायी राज्य स्थापित होगा। नौजवानों को क्रांति का अलख जगाने के लिए फैक्ट्रियों, गांवों, झोपड़ियों और देश के कोने कोने में जाना होगा। उनका मानना था कि क्रांति के बिना शांति, सुव्यवस्था, कानून परस्ती और प्यार कायम नहीं किया जा सकता। क्रांति यानी समाजवाद की स्थापना से उनका मानना था कि सरकारी मशीनरी पर मजदूर वर्ग का, किसानों का कब्जा हो। वे नए समाज के यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना की स्थापना करने की हामी थे।
उनका मानना था कि क्रांति जनता द्वारा की जाएगी। क्रांति सर्वहारा की क्रांति, सर्वहारा के द्वारा और सर्वहारा के लिए क्रांति होगी। उनका मानना था कि चेतना ही नहीं वर्ग चेतना पैदा करनी होगी, तभी यह समाज बदला जा सकता है। उनका मानना था कि क्रांति के लिए सादा और स्पष्ट लेखन किया जाए, अध्ययन केंद्र खोले जाएं, पर्चे, पुस्तकें, मैगजीन निकालनी होगी और जनता के बीच बांटने होगी।
भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने विचारों और नारों द्वारा इंकलाब जिंदाबाद की बात की और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद की बात की। भगत सिंह यहां अपने शहीद क्रांतिकारियों में शक्ति सबसे आगे थे क्योंकि उनका मानना था कि साम्राज्यवाद और पूंजीवाद का मुकाबला क्रांति और समाजवादी समाज व्यवस्था से ही की जा सकती है इसलिए उसने उन्होंने साम्राज्यवाद के स्थान पर क्रांति और इंकलाब का नारा बुलंद किया।
भगत सिंह ने अपने लेखों में लिखा कि “अगर मैं जिंदा रहा तो मैं एक पार्टी का निर्माण करूंगा और जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी रखूंगा।” भगत सिंह के विचार उनके द्वारा लिखे गए 2 फरवरी 1931 नौजवानों से प्राप्त किए जा सकते हैं। जब बहुत सारे लोग इस बात को सुनते हैं तो वह वे आश्चर्यजनक रूप से सवाल करते हैं कि क्या भगत सिंह कम्युनिस्ट थे? तो इस पर हमारा कहना यह है कि हां उनके विचारों, उनके लेखों और उनकी कार्यक्रम को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भगत सिंह कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास करते थे और एक कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाने में, पालने पोसने में विश्वास रखते थे।
वह मानते थे कि क्रांति एक छोटे वर्ग द्वारा नहीं,पूरी जनता के द्वारा की जाएगी और उसी के द्वारा उसको स्थाई किया जाएगा। क्रांति से उनका मतलब था क्रांति जानी इंकलाब यानी संपूर्ण स्वतंत्रता। क्रांति यानी दिमागी गुलामी से पूर्ण आजादी।अपने सपनों को लेकर भगत सिंह और उनके साथी फांसी पर चढ़ गए और जो बचे थे, उनको सरकार ने सजा देकर जेल में भेज दिया, काला पानी भेज दिया, मगर भगत सिंह को दिए गए अपने वचन से उसके साथी डिगे नहीं और जेल से बाहर आए तो उनमें से अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और जनता और किसानों को संगठित करके क्रांति का ख्वाब देखने लगे और काम करते हुए अपने जीवन को जनता के हित के लिए न्यौछावर कर गये।
हमारे शहीदों के ख्वाब अभी पूरे हुए नहीं हुए हैं, यह उनके सपनों का भारत नहीं है। अभी यहां भ्रष्टाचार, बेईमानी, असमानता अन्याय, रिश्वतखोरी,भेदभाव ,ऊंच-नीच की मान्यता अपनी जड़े जमा हुए हैं। हमारा सबसे बड़ा काम यह है कि भगत सिंह का और शहीदों का समाजवादी समाज बनाने के लिए हम शहीदों के बताए रास्ते पर चलें क्योंकि उन्हीं के बताये विचारों और सिध्दांतों पर बना हुआ समाज ही एक बेहतर समाज हो सकता है।
इंकलाब जिंदाबाद
समाजवाद जिंदाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
जनता की एकता जिंदाबाद
अपने शहीद क्रांतिकारियों को अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हुए, हम तो यही कहेंगे,,,,
शाह रात में रोशन खिताब छोड़ गए
वो चले गए मगर अपने ख्वाब छोड़ गए
हजार जब्र हों लेकिन यह फैसला है अटल
वो जहन जहन में इंकलाब छोड़ गए।

               ,,,,, मुनेश त्यागी 

मेरी कलम इस तरह से
वाकिफ है मेरे विचारों से
कि इश्क भी लिखना चाहूं
तो इंकलाब लिखा जाता है।
आज राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की फांसी का शहादत दिवस है। आज के दिन अंग्रेजों ने भारत माता के इन तीन सपूतों को हमसे छीन लिया था। 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने अपनी सनक और साजिश के तहत हमारे इन तीन वीर क्रांतिकारी शहीदों को मौत के घाट उतार दिया था।
आखिर हमारे क्रांतिकारी साथी क्या चाहते थे, क्यों इनको इतनी छोटी छोटी उम्र में अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई? जब हम अपने इन साथियों के जीवन का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं की राजगुरु सबसे ज्यादा निडर और त्याग की मूर्ति थे, सुखदेव अपने समय के सबसे बड़े संगठनकर्ता थे और भगत सिंह अपने सभी साथियों में वैचारिक रूप से सबसे ऊंचे स्तर के और मजबूत थे।
अंग्रेजों का मानना था कि अगर इनको फांसी ना दी गई और इनको छोड़ दिया गया तो यह फिर से जनता में इंकलाब की बात करेंगे, जनता का राज काम करने के बात करेंगे, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद करेंगे और अंग्रेजों की तानाशाही का विनाश करेंगे। इन्हीं सब मुद्दों को विचार में रखते हुए हमारे भारत माता के इन तीन शहीदों को फांसी दे दी गई।
राजगुरु महाराष्ट्र से थे, सुखदेव और भगत सिंह लायलपुर पंजाब से थे। सुखदेव का मानना था कि मौके के अनुसार सर्वोत्तम का प्रयोग किया जाना चाहिए। वे समाजवाद के बड़े पढ़ाकू थे। उनका कहना था कि हमारे दल का, क्रांतिकारियों का मकसद देश में समाजवादी प्रणाली स्थापित करना है। उनका मानना था कि हम तीनों के फांसी पर चढ़ने से देश की जनता का भला होगा।
राजगुरु का मानना था कि दुनिया से भागकर इस दुनिया को नहीं बदला जा सकता। वह क्या कमाल के इंसान थे कि मरने के मामले में उनकी भगत सिंह से होड़ लगी थी। वह संघर्षों में सबसे आगे रहना चाहते थे और उनकी इच्छा थी कि उनकी मौत भगत सिंह से पहले हो। उनका मानना था कि कम्युनिज्म या समाजवाद का रास्ता ही देश के भविष्य का रास्ता हो सकता है। समाजवाद के दीवाने थे राजगुरु।
हमारे इन तीनों शहीदों को समाजवाद में गहरा विश्वास था। यह तीनों अपने को देश के लिए मरना सौभाग्यशाली समझते थे। सुखदेव खूबसूरत दुनिया बनाने का ख्वाब लेकर इस दुनिया से चले गए। वे मानते थे कि हमारे देश में गरीबी है अभाव है और हमारी जनता के बीच में प्यार का अभाव है।
भगत सिंह अपने सब साथियों में, जिसमें हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ के लोग भी शामिल थे, सबसे बड़े विद्वान और विचारक थे। वह पढ़ने के शौकीन थे, उनकी जेब में हमेशा पुस्तक मौजूद होती थी। वह जब भी खाली समय में होते तो पुस्तक ही पढ़ते रहते थे और लिखते रहते थे उनका मानना था कि संगठन का बनाना और प्रचार करना क्रांति के लिए सबसे जरूरी है।
उन्होंने शोषण,दरिद्रता, असमानता अन्याय और भेदभाव का गहन रूप से अध्ययन किया। आजादी को बारे में उनका मानना था कि राजनीतिक ही नहीं आर्थिक और सामाजिक आजादी भी इस देश को चाहिए, इसके बिना हमारा देश आगे नहीं बढ़ सकता। वे साम्राज्यवाद विरोधी भावना को जनता में जगाना चाहते थे। वे समाज सामाजिक बदलाव के लिए क्रांतिकारी आंदोलन के लिए जनता में सहानुभूति पैदा करना चाहते थे।
वे तमाम तरह के शोषण के खिलाफ थे शोषण चाहे मनुष्य द्वारा मनुष्य का हो या एक द्वारा दूसरे राष्ट्र का हो। भगत सिंह क्रांति के एक बहुत बड़े प्रचारक थे। वाणी और लेखनी के धनी थे, पुस्तक प्रेमी थे। अभी तक प्राप्त 140 लेखों में भगत सिंह द्वारा 97 लेख लिखे गए थे एक बहुत बड़े लेखक थे। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक आजादी के बिना राजनीतिक आजादी के कोई अर्थ नहीं है।
समाजवाद की आवाज को सबसे पहले हमारे शहीदों और भगत सिंह ने सुना था और समाजवादी समाज और समाजवादी राजसत्ता की बात सबसे पहले अपने साथियों में भगत सिंह ने की थी। उनका लक्ष्य किसानों मजदूरों का राज काम करना और समस्त मानवता को सुखी बनाना था। भगत सिंह के आने से संगठन का जनतांत्रिककरण हुआ और संगठन के यानी एचएसआरए के सबसे पहले सेनापति शहीद चंद्रशेखर आजाद को चुना गया था और भगत सिंह अपने इस संगठन के प्रचार मंत्री बने थे।
हमारे इन शहीदों ने अदालत को राजनीतिक प्रचार का माध्यम बनाया और एसेंबली में नारे लगाए,,,, “सर्वहारा जिंदाबाद”,”साम्राज्यवादमुर्दाबाद”,”समाजवाद जिंदाबाद”, “इंकलाब जिंदाबाद”। हमारे यह साथी क्रांति से क्या मतलब रखते थे? क्रांति यानी मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का खात्मा। वाद विवाद में वे उत्तेजित नहीं होते थे। शोषकों को खत्म कर यह दुनिया हमें स्वर्ग बनानी पड़ेगी।उन्होंने भगवान और धर्म की निरर्थकता पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा था कि हमारा काम इस धरती को स्वर्ग बनाना है।उन्होंने अदालत को क्रांतिकारी प्रचार का माध्यम बनाया। साम्यवाद और समाजवाद भगत सिंह का प्रिय विषय थे। हमारे इन शहीदों ने नौजवानों को क्रांति के राही बताया, लोगों को जगाया और संगठित होना सिखाया, समाज में फैली मायूसी और लाचारी को दूर किया और खोए आत्मविश्वास को जगाया। यह लोग हमारे सारे क्रांतिकारी और उनके दल के लोग धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे, ऊंच- नीच छोटे-बड़े की सोच को खत्म करना चाहते थे, समाज का क्रांतिकारी और समाजवादी रूपांतरण चाहते थे। वह कांग्रेस को एक समझौतावादी और जातिवादी और उसी शोषणवादी सत्ता तंत्र को कायम रखने वाला दल मानते थे।उनका मानना था कि एक दिन कांग्रेस लुटेरे साम्राज्यवादीअ अंग्रेजों से समझौता कर लेंगे, गोरे अंग्रेजों की जगह काले भारतीय अंग्रेज बैठ जायेंगे और कांग्रेस का आंदोलन खत्म हो जाएगा।
उनका मानना था कि क्रांति से सर्वहारा वर्ग का स्थायी राज्य स्थापित होगा। नौजवानों को क्रांति का अलख जगाने के लिए फैक्ट्रियों, गांवों, झोपड़ियों और देश के कोने कोने में जाना होगा। उनका मानना था कि क्रांति के बिना शांति, सुव्यवस्था, कानून परस्ती और प्यार कायम नहीं किया जा सकता। क्रांति यानी समाजवाद की स्थापना से उनका मानना था कि सरकारी मशीनरी पर मजदूर वर्ग का, किसानों का कब्जा हो। वे नए समाज के यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना की स्थापना करने की हामी थे।
उनका मानना था कि क्रांति जनता द्वारा की जाएगी। क्रांति सर्वहारा की क्रांति, सर्वहारा के द्वारा और सर्वहारा के लिए क्रांति होगी। उनका मानना था कि चेतना ही नहीं वर्ग चेतना पैदा करनी होगी, तभी यह समाज बदला जा सकता है। उनका मानना था कि क्रांति के लिए सादा और स्पष्ट लेखन किया जाए, अध्ययन केंद्र खोले जाएं, पर्चे, पुस्तकें, मैगजीन निकालनी होगी और जनता के बीच बांटने होगी।
भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने विचारों और नारों द्वारा इंकलाब जिंदाबाद की बात की और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद की बात की। भगत सिंह यहां अपने शहीद क्रांतिकारियों में शक्ति सबसे आगे थे क्योंकि उनका मानना था कि साम्राज्यवाद और पूंजीवाद का मुकाबला क्रांति और समाजवादी समाज व्यवस्था से ही की जा सकती है इसलिए उसने उन्होंने साम्राज्यवाद के स्थान पर क्रांति और इंकलाब का नारा बुलंद किया।
भगत सिंह ने अपने लेखों में लिखा कि “अगर मैं जिंदा रहा तो मैं एक पार्टी का निर्माण करूंगा और जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी रखूंगा।” भगत सिंह के विचार उनके द्वारा लिखे गए 2 फरवरी 1931 नौजवानों से प्राप्त किए जा सकते हैं। जब बहुत सारे लोग इस बात को सुनते हैं तो वह वे आश्चर्यजनक रूप से सवाल करते हैं कि क्या भगत सिंह कम्युनिस्ट थे? तो इस पर हमारा कहना यह है कि हां उनके विचारों, उनके लेखों और उनकी कार्यक्रम को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भगत सिंह कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास करते थे और एक कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाने में, पालने पोसने में विश्वास रखते थे।
वह मानते थे कि क्रांति एक छोटे वर्ग द्वारा नहीं,पूरी जनता के द्वारा की जाएगी और उसी के द्वारा उसको स्थाई किया जाएगा। क्रांति से उनका मतलब था क्रांति जानी इंकलाब यानी संपूर्ण स्वतंत्रता। क्रांति यानी दिमागी गुलामी से पूर्ण आजादी।अपने सपनों को लेकर भगत सिंह और उनके साथी फांसी पर चढ़ गए और जो बचे थे, उनको सरकार ने सजा देकर जेल में भेज दिया, काला पानी भेज दिया, मगर भगत सिंह को दिए गए अपने वचन से उसके साथी डिगे नहीं और जेल से बाहर आए तो उनमें से अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और जनता और किसानों को संगठित करके क्रांति का ख्वाब देखने लगे और काम करते हुए अपने जीवन को जनता के हित के लिए न्यौछावर कर गये।
हमारे शहीदों के ख्वाब अभी पूरे हुए नहीं हुए हैं, यह उनके सपनों का भारत नहीं है। अभी यहां भ्रष्टाचार, बेईमानी, असमानता अन्याय, रिश्वतखोरी,भेदभाव ,ऊंच-नीच की मान्यता अपनी जड़े जमा हुए हैं। हमारा सबसे बड़ा काम यह है कि भगत सिंह का और शहीदों का समाजवादी समाज बनाने के लिए हम शहीदों के बताए रास्ते पर चलें क्योंकि उन्हीं के बताये विचारों और सिध्दांतों पर बना हुआ समाज ही एक बेहतर समाज हो सकता है।
इंकलाब जिंदाबाद
समाजवाद जिंदाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
जनता की एकता जिंदाबाद
अपने शहीद क्रांतिकारियों को अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हुए, हम तो यही कहेंगे,,,,
शाह रात में रोशन खिताब छोड़ गए
वो चले गए मगर अपने ख्वाब छोड़ गए
हजार जब्र हों लेकिन यह फैसला है अटल
वो जहन जहन में इंकलाब छोड़ गए।

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