क्या भारत सच में मूर्खों का देश है?

दैनिक समाचार


दुनिया भर में भारत की पहचान विज्ञानवादी, तर्कवादी व दूरदृष्टि रखने वाले महापुरुषों का देश पराक्रमी शूरवीरों का देश के रूप में है। पूरी दुनिया के लोग हमारे महापुरुषों द्वारा किए गए त्याग व पराक्रम के कारण सम्मान करते हैं, परन्तु भारत का सत्य क्या है? यह भारत में रहने वाले अधिकांश लोगों को भी नहीं मालूम।
सिर में मस्तिष्क होते हुए भी मस्तिष्क का कभी इस्तेमाल न करने वाले लोगों की संख्या भारत में ज्यादा हैं, मूत्र वह किसी का भी हो उसको पीना और दूध को पत्थर पर फेंक देना,क्या पीना चाहिए क्या फेंकना चाहिए इसका अंतर भी न समझने वाले लोगों को हम शिक्षित, विचारवान, बुद्धिमान, विवेकशील, वास्तव में किस शब्द से संबोधित करें यही नहीं समझ में आता।
भारत में अधिकतर लोग अपने दिमाग का उपयोग न करते हुए दूसरों के इशारे पर काम करते हैं, परन्तु दूसरों के इशारे पर किसी प्रकार का विचार न करनेवाले, किसी प्रकार का तर्क वितर्क न करते हुए काम करनेवाले जीव को मनुष्य कहना ही गलत होगा। क्योंकि खेती के बैल,घर के कुत्ते भी अपने दिमाग का इस्तेमाल न करते हुए मालिक जैसा कहता है वैसा ही करते हैं अर्थात वे गुलाम होते हैं।बैल और कुत्ते गुलाम होते हुए भी उनमें क्या खाएं क्या न खाएं इतनी अकल तो होती ही है, अपवाद छोड़कर दुनिया में कोई भी प्राणी किसी दूसरे प्राणी की विष्टा व मूत्र न खाता है न पीता है , जिन प्राणियों में बुद्धि की अत्यल्प मात्रा होती है जो बोल पाने में भी असमर्थ होते हैं उन प्राणियों में भी इतनी अकल तो होती ही है कि क्या खाएं और क्या न खाएं ।
परन्तु भारतीय लोग क्या खाएं क्या न खाएं इतनी अकल है कि नहीं यह तय करने का अधिकार मुझे तो कतई नहीं है, अंततः जिसको जो पसंद आए वे खा सकते हैं पी सकते हैं खाने पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं है फिर भी जानवर की विष्टा खाना और मूत्र पीना वैज्ञानिक दृष्टि से अनुचित ही है।
भारतीय लोगों को मूर्ख बनाने का काम चैनल वाले बहुत अच्छे तरीके से करते हैं। भारतीय लोगों के मानसिक गुलाम होने के कारण उन पर विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। चैनल वाले जो दिखाते हैं उसी पर लोग विश्वास करते हैं अनेक चैनलों पर इतने विद्वान लोग हैं कि परिवर्तन का कोई विचार न देते हुए लोगों के दिमाग में कोई विचार ही न पैदा हो ऐसी ही सामग्री सतत दिखाते रहते हैं, चैनल वाले कभी जनजागृति करनेवाले कार्यक्रम नहीं दिखाते।
प्रत्येक कार्यक्रम में अंधविश्वास का प्रसार करके लोगों को को ईश्वरवादी बनाने का प्रयास किया जाता है,चार पुस्तकें पढ़कर लाखों रुपए वेतन पाने वाला भी वह कार्यक्रम देखता है किन्तु कार्यक्रम के माध्यम से हमारा प्रबोधन नहीं होता, जनजागृति नहीं होती ऐसा माननेवाले और चैनल वालों से सवाल करने वाले कितने लोग हैं ? होंगे भी तो अपवाद स्वरूप ही।
हजारों रुपए का टीवी खरीदते हैं, सैकड़ों रूपए केबल वालों को देते हैं और इनके फायदे का एक भी कार्यक्रम चैनल वाले नहीं दिखाते फिर भी ये चुप बैठते हैं , उसका कारण मानसिक गुलामी ही है।
फेरीवालों से या बाजार में सब्जी या अन्य सामान लेते समय भाव कम करने के लिए खिच खिच करने वाला यह वर्ग चैनल वालों के विरोध में कोई भूमिका नहीं अपनाता इस पर आश्चर्य होता है।
भारत के लोगों को सत्य एवं विज्ञान जल्दी हजम नहीं होता इसीलिए अज्ञान और झूठे आश्वासनों का शिकार होने वालों की पूरी फौज है।
गुस्सा तो तब आता है जब यह ऊंचे पद पर होता है, गाड़ी बंगले में रहता है, शिक्षित होता है, और रास्ते पर अपना पेट भरने के लिए लोगों को ठगने वाला,अपना जीवन अंधकारमय होते हुए भी दूसरों का भविष्य बताने वाला व्यक्ति उसे गुमराह करके ठगकर पैसा लेकर निकल जाता है, ग्यारह या इक्कीस रूपए जमा करने वाला इसके शरीर पर राख का भभूत लगाता है जिसका इसे गर्व होता है उसी से मालूम पड़ जाता है कि इसका विज्ञान से कभी कोई संबंध रहा ही नहीं, सिर में मौजूद मस्तिष्क का इसने कभी इस्तेमाल किया ही नहीं इसलिए यह दिमाग में जंग लगे हुए व्यक्ति की तरह ही व्यवहार करता है ,यह सत्य परिस्थिति है।
कोई भी काम हमें करना हो और उसके बारे कुछ भी जानकारी न हो तो हम उस विषय के पारंगत अनुभवी व्यक्ति से सलाह लेते हैं उसका विचार लेना महत्वपूर्ण होता है और इसे अक्लमंदी कहते हैं, परंतु भारत में ऐसा नहीं होता, घर में किसी की शादी करनी है तो व्यक्ति पर कई प्रकार के तनाव व दबाव रहते हैं उसे कुछ समझ में नहीं आता ऐसे समय में वरिष्ठ और अनुभवी व्यक्ति से सलाह की जरूरत होते हुए भी हम भोंदू ब्राह्मण की मदद लेते हैं, हम सुशिक्षित और सुसभ्य होते हुए भी एक झूठे , पाखंडी मनुष्य के सामने हाथ पसारते हुए हमें शर्म नहीं आती।
दो चार रूपए के लिए गांव गांव घूमने वाले व्यक्तियों से हम मुहूर्त देखकर शादी की तारीख तय करते हैं।
शादी की तारीख तय करते समय मंडप वाला, खाना बनाने वाला, पानी वाला, ये सब किस तारीख को खाली हैं यह देखना जरूरी होते हुए भी हम मुहूर्त देखते हैं।
मुहूर्त देखने के कारण हमें उस मुहूर्त पर मंडप , कैटरर, आदि मूलभूत जरूरतों के लिए भाग-दौड़ करना पड़ता है , मार्च और अप्रैल महीने में भी ब्राह्मणों ने अनेक शुभ मुहूर्त बताया था, अच्छा मुहूर्त देखकर अनेक लोगों ने शादी की तैयारी भी शुरू कर दी थी किन्तु कोरोना का विघ्न आयेगा यह किसी ब्राह्मण या ज्योतिषी के जानकारी में नहीं आई इसी से साबित हो जाता है कि ये लोग कितने विद्वान होंगे? यह बात बहुजन समाज के समझ में कब आयेगी? शादी के बाद यदि बच्चे नहीं होते तो पाखंडी बाबाओं पंडे पुजारियों के पास जाकर पूजा-पाठ और अनेकों कर्मकांड करते हैं।
ढोंगी, पाखंडी बाबाओं, के यहां जाने से बच्चे होते तो शादी करने की जरूरत ही क्या थी ? ऐसा संत तुकाराम महाराज कहते थे, संतों ने अपना पूरा जीवन मानसिक गुलामी तोड़ने में लगा दिया परन्तु आज भी लोग मानसिक गुलामी की बेड़ियों में स्वयं और अपने परिवार को भी जकड़े हुए हैं।
लाखों रुपए खर्च करके घर बनाते हैं मजदूरों के साथ दूसरे दर्जे का बर्ताव और गृहप्रवेश कराने वाले पाखंडी ब्राह्मण के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने वालों में मानवता बची हुई है ऐसा नहीं कहा जा सकता।
संक्षेप में कहना हुआ तो यदि हमें कोई काम करना है और हमें उसके बारे में जानकारी नहीं है तो प्रशिक्षित एवं अनुभवी व्यक्ति से सलाह लेना जरूरी होते हुए भी जिसको उस काम के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है उसकी मदद लेने में समय, पैसा और श्रम बर्बाद करते हैं ऐसा करने में हमारी शिक्षा व गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है हमें उसका एहसास भी नहीं होता।
आज कोई भी घटना घटी तो टीवी वाले भिड़े नाम के ब्राह्मण से उस पर उसका विचार पूछते हैं और यह भिड़े नाम का व्यक्ति इतना बड़ा विद्वान, विशेषज्ञ एवं शोधकर्ता है कि उसका शोध भी अफलातून, नोबेल पुरस्कार मिलने लायक है उसने जो शोध किए हैं उनमें से दो शोध का यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा,पहिला शोध भिड़े के खेत में आम का बाग है उसमें पैदा होने वाले आम साधारण आम नहीं हैं बल्कि भिड़े द्वारा शोधित आम हैं , भिड़े के आम की कहानी सबको मालूम है मैं उसके शब्दों को दोहराकर उसके द्वारा दिखाई गई बुद्धिमत्ता? को नहीं दिखाऊंगा, महिलाओं के अपमान और अंधश्रद्धा फैलाने के आरोप में केस दाखिल हुआ है इस विद्वान पर , सरकार उसकी होने के कारण उसे सजा नहीं हो सकती यह बात अलग है।
आजकल भारत में कोरोना संक्रमण का संकट है, डाक्टरों ने बताया है कि कोरोना की कोई दवा अभी तक उपलब्ध नहीं है विश्व स्तर पर कोरोना के बारे में रिसर्च चल रहा है ऐसा होते हुए भी मीडिया के बुद्धिमान लोग भिड़े से कोरोना के बारे में उनके विचार जानने पहुंच गए , भिड़े ने अपने रिसर्च के आधार पर मीडिया वालों को बताया कि गाय का घी और मूत्र यह कोरोना की समाधान कारक उत्तम औषधि है, अति बुद्धिमान मीडिया भिड़े तक गई ही क्यों? किस आधार पर भिड़े का विचार लिया? गोमूत्र कोरोना की औषधि है इसका शोध पहले से ही भिड़े और भिड़े जैसे लोगों ने कैसे किया? गोमूत्र की ब्रेकिंग न्यूज बनाकर बारंबार दिखाने वाले चैनल कितने अक्लमंद हैं इससे यह मालूम पड़ता है।
कुछ भी हुआ तो उस पर भिड़े का विचार दिखाने की इन्हें बहुत जल्दी रहती है, भारत में खुद को उच्च कोटि का बुद्धिजीवी समझने वाले उच्च शिक्षित ये मीडिया वाले संबंधित क्षेत्र के किसी पारंगत के पास उसकी सलाह लेने क्यों नहीं जाते?
धर्म के नाम पर दिमाग का इस्तेमाल न करते हुए अंधश्रद्धा पर विश्वास करते हुए काम किया जाता है इसीलिए तो भारत की यह हालत है, भिड़े यदि डाक्टर होते और उनकी सलाह ली जाती तो निश्चित ही फायदा हुआ होता, घी और मूत्र पीने की सलाह देनेवाले और वह सुनकर विश्वास करने वाले एवं इसे अभिमान की बात समझकर बड़े चाव से खबर दिखाने वाले वर्ग को क्या वास्तव में विद्वान बुद्धिमान कहा जा सकता है? व्यक्तिगत जिसे जैसे रहना है खुशी से रहे परन्तु अंधश्रद्धा व तथ्यहीन सलाह देकर जनता को गुमराह करके देश की छवि को तो धूमिल मत करो।कोरोना से बचने के लिए मूत्र पीने और गोबर खाने को कहना यह देशवासियों का उपहास करने जैसा है ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें प्रसिद्धि दी जाती है यही समतावादी न्यायवादी व्यवस्था है क्या ? भिड़े जैसे लोगों से देश का कल्याण होता हो तो जरूर उनकी वाहवाही करो , किसी के पास कोई गुण कौशल है तो जरूर वह देश के काम आना चाहिए, परन्तु देश विघातक, अविवेकी व तथ्यहीन विधान करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिससे समाज में अंधविश्वास और गलत विचारों का प्रचार करने की किसी की हिम्मत न पड़े।
संविधान ने प्रत्येक नागरिक को संविधान के दायरे में रहकर अपने विचार रखने का अधिकार दिया है , परन्तु इस अधिकार का गलत इस्तेमाल करते हुए कुछ भी मत बोलो! आपके बोलने का समाज और देश को फायदा होना चाहिए तभी आपके विचारों का महत्व होगा वैसे भारतीय लोगों को सत्य बातें और कानों को सत्य बोला हुआ पसंद नहीं आता इसीलिए मन में सवाल उठता है…….


विनोद पंजाबराव सदावर्ते
अप्रैल 2020
मराठी से अनुवादित

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