द्वारा : पुष्परंजन
हंबनटोटा में राजपक्षे के क़िलेनुमा मकान में भीड़ ने आग लगा दी। महिंदा राजपक्षे परिवार समेत त्रिकोमाली नौसेना अड्डे पर भूमिगत हैं, यह ख़बर सामान्य नहीं, कई कयासों को जन्म देने वाली है। क्या राजपक्षे कुनबा देश छोड़ने की तैयारी में है? यदि ऐसा होता है, तो क्या प्रभाकरन की जड़ें समाप्त करने वाले महिंदा राजपक्षे को भारत शरण देने की स्थिति में है? तमिल वोट बैंक की वजह से यहां नहीं, तो फिर कहां शरण लेंगे श्रीलंका के पूर्व तानाशाह? सत्तारूढ़ सांसद समेत चार लोग मॉब लिंचिंग के शिकार हो जाएं, कोलंबो में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास समेत 41 मंत्रियों के घर भीड़ आग के हवाले कर दे, बारूद के ढेर पर बैठे श्रीलंका में यह सब क्या अपेक्षित था? इस समय सबसे चिंता वाली बात भारतवंशियों की सुरक्षा की भी है।
मंगलवार को भारतीय उच्चायोग की वेबसाइट खोलने पर वहां ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ अवश्य दिखा, मगर श्रीलंका में रह रहे भारतीयों को सतर्क करने संबंधी कोई सूचना नहीं दिखी। कोलंबो से 115 किलोमीटर दूर कैंडी में असिस्टेंट हाई कमिश्नर हैं, जाफना, हंबनटोटा में भारतीय कांसुलेट। क्या वहां भी सब कुछ सामान्य है? ‘हम स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं, जस्ट चिल।’ फोन से पूछने पर जवाब यही मिला।
दो करोड़, 15 लाख, 78 हज़ार की आबादी वाले इस आइलैंड देश में भारतीय मूल के लगभग 17-18 लाख लोग होंगे। 30 अक्तूबर, 1964 को 9 लाख 75 हज़ार भारतीय मूल के लोग यहां बसते थे। 58 साल पहले भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और उनकी समकक्ष सिरिमाओ आरडी भंडारनायके के बीच 10 सूत्री समझौता हुआ था। सभी बिंदुओं को देखिये, भारतीय नागरिकों के आबोदाना-आशियाना, सुरक्षा संबंधी विषयों पर दोनों शासन प्रमुखों ने हस्ताक्षर किये थे। गृहयुद्ध की स्थिति में भारत सरकार की क्या भूमिका होगी? इस सवाल का त्वरित उत्तर देने के वास्ते नई दिल्ली को तैयार रहना चाहिए। वहां केवल तमिल मूल के भारतीय नहीं हैं।
सोमवार की हिंसा को भड़काने में क्या महिंदा राजपक्षे समर्थकों को बड़ा रोल रहा है? सोशल मीडिया पर अपलोड वीडियो फुटेज और श्रीलंका में ज़मीनी रिपोर्ट कर रहे पत्रकारों की खबरों से यह सवाल उठ सकता है। महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के कुछ देर बाद, श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (एसएलपीपी) के समर्थकों ने जिस तरह उत्पात मचाया, विरोधियों की पिटाई, उनके टेंटों को उखाड़ फेंकने से लेकर आगजनी तक की, उसके दुष्परिणाम भयावह निकले। कोलंबो स्थित ‘टेंपल ट्री’ प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है। ‘टेंपल ट्री’ के गिर्द कुछ हफ्तों से प्रतिरोध करने वाले टेंट लगाकर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। बल्कि, पूरे राजपक्षे कुनबा से मुक्ति संग्राम 3 अप्रैल, 2022 से देशव्यापी हो चुका था। कोलंबो में समंदर को निहारता पांच हेक्टेयर का पार्क है, ‘गाले फेस ग्रीन’, यह प्रतिरोध का दूसरा एपीसेंटर रहा है। सत्तारूढ़ एसएलपीपी के सदस्यों और हंबनटोटा से आये मुस्टंडों ने यहां भी विरोधियों की मार-पिटाई की, और उनके टेंट उखाड़ फेंके थे।
इसके जवाब में सोमवार दोपहर तीन बजे के बाद, जिस तरह जनता जुटी, वो बारूद के ढेर पर तीली जैसा ही था। प्रधानमंत्री आवास को आग के हवाले कर देना, वहां पर फायरिंग। पूरे कोलंबों में तोड़फोड़, एसएलपीपी सांसद अमरकीर्ति अथुकोराला समेत पांच लोगों की भीड़ द्वारा हत्या, मंत्रियों, सांसदों के दर्जनों आवासों को आग के हवाले कर देना, ऐसे दुष्परिणाम की कल्पना सत्तापक्ष वाले नहीं कर रहे थे। इस अराजकता का अंत, और इस द्वीपीय देश में शांति की स्थापना कब और कैसे होगी? इस बारे में समग्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सोचना होगा।
श्रीलंका में रोज़ाना 1 लाख 30 हज़ार बैरल तेल की खपत है, तेल आयात हो रहा है 31 हज़ार 960 बैरल। ऐसे में देशव्यापी हाहाकार तो मचनी थी। उर्वरक किसानों को मिल नहीं रहा। दवा से लेकर भोजन संकट तक की ख़बरों से पूरी दुनिया वाबस्ता है। जून, 2019 में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 8 हज़ार 884 मिलियन डॉलर था, जो फरवरी 2022 में घटकर, 2311 मिलियन डॉलर पर आ गया। यह कम से कमतर होता जा रहा है। इतने पैसे से एक हफ्ते तक के तेल की ख़रीद हो सकती है।
18 से 22 अप्रैल, 2022 के बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारियों से बैठक के वास्ते वित्त मंत्री अली साबरी के नेतृत्व में कोलंबो से एक टीम वाशिंगटन गई थी, उसके त्वरित परिणाम निकलते, तो शायद यह नौबत नहीं आती। श्रीलंका को तत्काल कुछ महीनों के वास्ते तेल, राशन, उर्वरक, आवश्यक खाद्य सामग्री भेजने, मेडिकल सेवाओं को सुचारु करने की आवश्यकता है, यह आग तभी बुझेगी। इसके बाद का उपाय यही है कि संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में एक सर्वस्वीकृत सकारात्मक परिणाम देने वाली सरकार की स्थापना वहां हो।
श्रीलंका की राजनीति का कुनबावाद ने कुंडा किया है, उससे मुक्ति आज की पीढ़ी चाहती है। सेना की कमान शाहे-वक्त को सलाम करने वाले भ्रष्ट हाथों में है, बौद्ध धर्मगुरुओं को विश्वास में लेकर राजपक्षे परिवार आमजन को नियंत्रित कर रहा था, उसे 2020 के संसदीय चुनाव के दौरान सबने देखा था। इसमें कोई शक नहीं कि श्रीलंका को इस हालत में पहुंचाने में चीन की क़र्ज़ नीति का सबसे बड़ा योगदान रहा है। चीन पहले क़र्ज़ देकर घी पिलाता है, फिर उस देश का भूमिहरण करता है।
हंबनटोटा वो इलाका है, जिसे राजपक्षे कुनबे का प्रभावक्षेत्र मानते हैं। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को 2017 में चीन के हवाले करने की विवशता थी। इन दिनों पूर्वी एशियाई देश यह चर्चा करने लगे थे कि 99 साल की लीज़ को चीन 198 साल की लीज़ में बदल सकता है। अप्रैल, 2022 में ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट दी थी कि चीन का कर्ज़ श्रीलंका पर ढाई अरब डालर का है। यों, अंतर्राष्ट्रीय कर्ज़ लेने से किसी देश की स्थिति थोड़ी दुरुस्त हो जाती है, मगर पांच वर्षों में श्रीलंका जिस कंगाली और गृहयुद्ध की हालत में पहुंचा, उससे उन तमाम देशों को सबक लेना चाहिए, जो चीन से क़र्ज़ लेते हैं।
श्रीलंका पर चीन का कर्ज़ है 10 प्रतिशत, उतना ही कर्ज़ जापान का उस पर है, मगर जापान ने ज़मीन नहीं हथियायी। भारत ने दो फीसद कर्ज़ श्रीलंका को दिया है, अन्य देशों से नौ, विश्व बैंक का नौ प्रतिशत, एशियन डेवलपमेंट बैंक का सर्वाधिक 10 फीसद, मार्केट से उसकी उधारी 47 प्रतिशत है। भारत ने तेल ख़रीदने के वास्ते श्रीलंका को फरवरी, 2022 में 50 अरब डॉलर का क़र्ज़ दिया था। इसके अलावा नई दिल्ली से कोलंबो को अब तक 1.9 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन और करेंसी स्वैप की सुविधाएं दी जा चुकी हैं। मगर, मदद की भी एक सीमा होती है!
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।