भीड़ तंत्र ने ली डाक्टर अर्चना की जान

दैनिक समाचार

डॉ रमेश चंद्र पाराशर :-

कस्बे के छुटभैये उद्दण्ड नेताओं, बेलगाम पत्रकारों और नकारा पुलिस की जुगलबंदी किसी मासूम की किस तरह जान ले लेती है, ये विगत 29 मार्च को डॉ अर्चना शर्मा की आत्महत्या से साबित हुआ.

जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर लालसोट (जिला दौसा, राजस्थान) की युवा चिकित्सक, गोल्ड मेडलिस्ट डॉ अर्चना शर्मा, कभी गांधीनगर मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर भी रह चुकीं थीं. उनके पति डॉ सुमित उपाध्याय जो एक साइकियाट्रिस्ट हैं, के कथनानुसार, उनकी पत्नी ने एक गर्भवती महिला का सिजेरियन ऑपरेशन किया. (यह महिला पहले भी इनके अस्पताल में सिजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ बच्चे पैदा कर चुकी थी.)

गर्भवती महिला एक कॉम्प्लिकेटेड केस था, जो लालसोट से दौसा, फिर वहाँ से जयपुर रिफ़र हुआ था. अंततः इनके लालसोट में आकर भर्ती हुआ. ऑपरेशन के बाद दुर्भाग्यवश पीपीएच (Post partum hemorrhage) याने ब्लीडिंग शुरू हो गई. लाख प्रयासों के बाद भी यह दंपत्ति उस ब्लीडिंग को रोक नहीं सके जो अंततः मरीज की मौत का कारण बनी. PPH एक जटिल कॉम्प्लिकेशन है. कई बार इसमें जान नहीं बचाई जा सकती. कोई भी चिकित्सक जानबूझकर अपने मरीज को मौत के मुंह में नहीं ढकेलता है.

मरीज की मौत से क्षुब्ध मगर चिकित्सक दंपत्ति के प्रयासों से संतुष्ट परिजनों को स्थानीय भाजपाई नेताओं, पत्रकारों ने एक बड़ी रकम मुआवजे में दिलाने का लालच देकर लाश का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया. डॉ सुमित के कथनानुसार, इन्ही भाजपा नेताओं ने लाश को घर से उठवाकर, अस्पताल के सामने रखवा दिया और धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. फिर इन्हीं सब लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाकर डॉक्टर दंपत्ति के खिलाफ IPC की धारा 302 का मुकदमा दर्ज करा दिया.

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी चिकित्सक के विरुद्ध, पुलिस द्वारा, किसी भी प्रकार का मुकदमा, गिरफ्तारी, या वारंट तब तक जारी नहीं किया जा सकता जब तक मेडिकल काउंसिल या डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी अपनी प्राइमाफेसी जांच में दोषी होने की रिपोर्ट न दे दे. यह तथ्य जानते हुए भी स्थानीय DSP, SHO ने सीधे IPC 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

गिरफ्तारी और बदनामी के डर से डॉ अर्चना शर्मा बेहद दबाव और डिप्रेशन में आ गयीँ. इसी के चलते उन्होंने विगत मंगलवार 29 मार्च को आत्महत्या कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा, जिसमें उन्होंने खुद को निर्दोष बताया. ये बेहद दुःखद है.

हर जिले में आपको ऐसे छुटभैये नेता, पत्रकारों व पुलिस का अघोषित गैंग मिल जायेगा. ये गैंग छोटे अधिकारियों, व्यापारियों, डॉक्टरों और उनके नर्सिंग होम पर घात लगाए रहते हैं.

ज्योंही किसी की कोई कमजोर नस इनकी पकड़ में आ जाती है, ये सक्रिय हो जाते हैं. धरना, प्रदर्शन, अखबार बाजी चरम पर करेंगे. मक़सद रहेगा कि बन्दे को इतना ‘नर्वस’ कर दो कि इनके चरणों में शरणागत हो जाये. फिर शुरू होती है इनकी ब्लैकमेलिंग. फिर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि ये धन दोहन पर ही रुक जायेगी या तन दोहन तक पहुंचेगी? इनकी तिकड़मों में पुलिस प्रशासन के छुटभैये भी कभी जाने अनजाने शामिल हो जाते हैं.

स्थानीय इस गैंग ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके धत् करम् का अंजाम डॉ अर्चना की आत्महत्या तक पहुँच जायेगा. बहरहाल मामला राजस्थान के मुख्यमंत्री से लेकर, पूरे देश के चिकित्सकों में फैल गया है.

देश और समाज पर नेताओं के वर्चस्व के कारण तथाकथित ये छुटभैये नेता उद्दंड और बेलगाम हो गए हैं. अपनी नेतागिरी की ‘हनक’ को आजमाने और चमकाने की नियत से कोई भी कारनामा करने से बाज नहीं आते. देश प्रदेश के आकाओं का संरक्षण प्राप्त होने से इनका मनोबल भी जरूरत से ज्यादा ‘हाई’ रहता है.

अब देखना है कि ये दुखद ‘एपिसोड’- समाज, नेतागिरी, पुलिस, प्रशासन की व्यवस्था में कोई परिवर्तन लेकर आता है या ब्लैक मेलिंग के शातिर गैंगों को और दुस्साहसी बनाकर जाता है.
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