किसी बात को इसलिए मत मानो कि ऐसा सदियों से होता आया है, परंपरा है या सुनने में आया है.
इसलिए भी मत मानो कि किसी धर्म शास्त्र में लिखा हुआ है या ज्यादातर लोग मानते हैं।
किसी धर्मगुरु, आचार्य, साधु, संत की बात को आंख बंद करके मत मान लेना.
किसी बात को इसलिए भी मत मान लेना कि वह तुमसे कोई बड़ा या आदरणीय व्यक्ति कह रहा है.
बल्कि हर बात को पहले तर्क, बुद्धि, विवेक, चिंतन व अनुभूति की कसौटी पर तोलना, कसना, परखना और यदि वह बात स्वयं के लिए, समाज व संपूर्ण मानव जगत के कल्याण के हित की लगे, तो ही मानना!
अपना दीपक स्वयं बनेँ!