एक बार अमेरिकी संसद में अब्राहम लिंकन बोल रहे थे। तभी एक सामंती मानसिकता वाले सांसद ने लिंकन को टोकते हुए कहा कि, घमंड में ज्यादा जोर से मत बोलो लिंकन, ये मत भूलना की तुम्हारे पिता हमारे घर के जूते बनाते थे, अपनी हैसियत मत भूलो।
इस पर लिंकन नें शालीनता से तुरंत उत्तर दिया, "महोदय, मुझे पता है कि मेरे पिताजी आपके परिवार के लिए जूते बनाते थे और यहां कई अन्य लोगो के भी बनाये होंगे। वे जूतों के एक अच्छे निर्माता थे। अगर उनके काम में आपको कोई शिकायत है तो मैं जूते की एक और जोड़ी आपके लिऐ बना सकता हूंँ। वे एक प्रतिभाशाली निर्माता थे और मुझे अपने पिता जी पर गर्व है।
यह सुनते ही उसकी मूड़ी शर्म से झुक गई। अब बोलो चुप क्यों हो गए? मुझे नींचा दिखाना चाहते थे, मगर अब आप खुद, अपनी नींच सोच के कारण नींच साबित हुए। उस अमेरिकी संसद के ऐतिहासिक वार्तालाप से एक थ्योरी निकली “Dignity of Labour” श्रम की महानता और इसका यह असर हुआ कि जितने भी कामगार थे, उन्होंने अपने पेशे को ही अपना गौत्र (surname) बना लिया।
आज अमेरिका में श्रम को सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है, इसलिए आज अमेरिका को दुनिया की महाशक्ति माना जाता है।
हमारे यहाँ सिर्फ कहावत भर है, कर्म ही पूजा है (Work is warship ) मनुवाद के कारण जमीनी सच्चाई कोसो दूर है।
इसके विपरीत भारत में कर्म करके जीवनपयोगी बस्तुओ का उत्पादन करने वाले श्रमजीवी को नींच और परजीवी को उच्च समझा जाता है। आज भारत देश की बदहाली का मुख्य कारण भी यही है।
साथियों, यदि बदलाव चाहिए तो हमें और आप सभी को इस अमेरिकन थ्योरी को ध्यान में रखते हुए अपनी मानसिकता में थोडा बदलाव लाना होगा और ढोंगी, पाखंडी सामने दिखाई देते ही, अपने आप में श्रमजीवी होने का फक्र महसूस करना चाहिए।
शिवशंकर सिंह यादव