पूंजीवादी सत्ता में हिस्सेदारी मांगने वाले फासीवाद से मुकाबला कर सकते हैं क्या?

दैनिक समाचार

मोदी सरकार के कुकृत्य का सही विश्लेषण करते हुए जब ऐतिहासिक भौतिकवाद के आधार पर भारत में वर्ग संबंधों के विकास का विश्लेषण किया जाएगा तो तमाम पूंजीवादी लोकतंत्र के हिमायती पार्टियों और उदारवादी बुद्धिजीवियों की पूंजीपरस्त विचार और मिज़ाज उभर कर सामने आ जाता है।

मोदी के खिलाफ इस तरह के लिबरल और पूंजी के समर्थक इतिहास के इस मोड़ पर लड़ाई को आगे नहीं ले जा सकते हैं। और जिस तरह से भारतीय संविधान के हिमायती बन दलितवादी तथा पिछड़ेवादी संपूर्णता में पूंजी की ही दलाली करने में अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं, वे भी बड़ी पूंजी के सबसे विश्वस्त पार्टी और नेता भाजपा तथा नरेंद्र मोदी के साथ समझौता करते ही दिख रहे हैं, ताकि सत्ता का एक छोटा सा टुकड़ा उन्हें प्राप्त हो जाए।

वर्तमान चुनाव के बाद जिस तरह से समाजवादी पार्टी और बसपा के तेवर ढीले पड़ गए है और उसके कुनबे के लोग भाजपा के साथ तालमेल बिठाने का जुगाड़ देख रहे हैं, इसने तय कर दिया है कि जो भी वामपंथी उनके साथ मिलकर के फासीवाद के खिलाफ संघर्ष करने का ख्वाब देखते हैं वे खुद को और जनवादी शक्तियों को धोखे में रख रहे हैं।

क्रान्तिकारी वामपंथियों को अपनी छोटी ताकत को आगे बढ़ाने के लिए मेहनतकशों तथा उत्पीड़ित समाज के बीच अपनी स्वतंत्र राजनीति के साथ जाना चाहिए न कि चुनावी गठबंधन को मुख्य आधार बनाकर चुनाव की राजनीति में डूब जाना चाहिए।

नरेंद्र कुमार

………………………………………….

शैतान _

अब वो काले कपड़े नहीं पहनता
क्यूंकि तांडव का कोई ख़ास रंग नहीं होता
ये काला भी हो सकता है और लाल भी
भगवा भी और हरा भी.

अब वो आँखों में सुरमा भी नहीं लगाता
अब वो हवा में लहराता हुआ भी नहीं आता
ना हीं अब उसकी आँखें सुर्ख और डरावनी दिखतीं हैं
वो अब पहले की तरह चीख़-चीख़कर भी नहीं हँसता
ना हीं उसके लम्बे बिखरे बाल होते हैं अब.

क्यूंकि इस दौर का शैतान
इंसान की खाल में खुलेआम घूमता है
वो रहता है हमारे जैसे घरों में
खाता है हमारे जैसे भोजन
घूमता है टहलता है
ठीक हमारी ही तरह सड़कों पर
और मज़ा तो ये
कि वो अखबार में भी छपता है
टी.वी. में भी आता है.

लेकिन अब उसे कोई शैतान नहीं कहता
क्यूंकि उसके साथ जुड़ी होती हैं जनभावनाएँ
लोग उसे “सेवियर” समझते हैं
और अब अदालतें भी कहाँ
सच और झूठ पर फैसले देतीं हैं साथी ?
अब तो गवाह और सबूत एक तरफ़
और सामूहिक जनभावनाएँ दूसरी तरफ.

अब इस अल्ट्रा मॉडर्न शैतान की शैतानियाँ
नादानियाँ कही जाती हैं
क्रिया-प्रतिक्रिया कही जातीं हैं.

इस दौर का शैतान बेहद ख़तरनाक है
क्यूंकि अब उसकी कोई ख़ास शक्ल नहीं होती
वो पल-पल भेस बदले है साथी
वो तेरे और मेरे अन्दर भी
आकर पनाह लेता है कभी-कभी
अब ज़रूरत इस बात की है
कि हम अपने इंसानी वजूद को बचाने के लिए
छेड़ें इस शैतान के साथ
एक आख़िरी जिहाद
एक आख़िरी जंग
इससे पहले की बहुत देर हो जाए…

अदनान कफील दरवेश

➖➖➖➖➖➖➖➖

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *