भाजपा का स्थापना दिवस और प्रधानमंत्री व भाजपा अध्यक्ष नड्डा का वक्तव्य

दैनिक समाचार

केंद्र के साथ-साथ भारत के 18 राज्यों की सत्ता पर कायम भारतीय जनता पार्टी ने 6 अप्रैल को अपना 42वाँ स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के तमाम पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि पार्टी को यहांँ तक पहुंचाने में जिन तीन-चार पीढ़ियों ने खुद को खपाया है, उन्हें याद करें। एक बार फिर शब्दों की बाजीगरी दिखाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी सरकार राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए काम कर रही है। आज देश के पास नीतियां भी हैं, नियत भी है। आज देश के पास निर्णयशक्ति भी है और निश्चयशक्ति भी है। उन्होंने कहा कि अपने नागरिकों का जीवन आसान बनाना भाजपा सरकारों और डबल इंजन की सरकारों की प्राथमिकता रही है। इसके साथ ही कोरोना काल की अपनी उपलब्धियों का जिक्र भी नरेन्द्र मोदी ने किया कि कैसे उनकी सरकार 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन दे रही है। इसके अलावा उन्होंने परिवारवाद का जिक्र कर कांग्रेस का नाम लिए बिना निशाना साधा कि देश में दो तरह की राजनीति मौजूद है, एक ”परिवार भक्ति” की और दूसरी ”राष्ट्र भक्ति” की।
मौका भी है और दस्तूर भी, सो नरेन्द्र मोदी ने एक ओर अपनी उपलब्धियों का वैसा ही बखान किया, जो वे अक्सर लालकिले की प्राचीर से लेकर चुनावी मंचों तक करते हैं और कई बार संसद में भी इसी तरह का भाषण देते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और गांधी परिवार को कोसने का सिलसिला भी उन्होंने बरकरार रखा। बेशक आज भाजपा के लिए बहुत बड़ा दिन है, क्योंकि इस पार्टी ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। संसद में दो सीटों से लेकर आज पूर्ण बहुमत हासिल करने का कमाल दिखाया है, इसके साथ ही राज्यसभा में भी सौ का आंकड़ा छुआ है। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में यह बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जब भाजपा अपनी इस उपलब्धि पर गर्व करे, तो उसे ये भी याद कर लेना चाहिए कि इस लोकतंत्र को बनाने और जिंदा रखने का काम आजादी के बाद ही संभव हुआ, जब ज्यादातर वक्त कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही। कांग्रेस आज भले अपने जनाधार को खो चुकी है, लेकिन जब उसके पास सत्ता की ताकत थी, तब भी कांग्रेस ने कभी भाजपा या विपक्ष मुक्त भारत बनाने की बात नहीं कही। दरअसल विरोधियों को खत्म करने का विचार ही घोर अलोकतांत्रिक है, जिससे हर राजनैतिक दल को बचना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्थापना दिवस के मौके पर ये भी कहा कि आज भारत बिना किसी डर या दबाव के अपने हितों के साथ दुनिया के सामने खड़ा है। जब पूरी दुनिया दो प्रतिद्वंद्वी गुटों में बंटी हुई है, तो भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है, जो मानवता के बारे में मजबूती से बोल सकता है। उनकी इस बात से भी असहमत होने के कोई कारण नहीं हैं, क्योंकि वाकई यूक्रेन और रूस की लड़ाई के बीच जहां पश्चिमी ताकतें अपने-अपने हितों को टटोल रही हैं, वहां भारत युद्ध खत्म करने के लिए संवाद पर जोर दे रहा है। भारत का यह कदम उस विदेशनीति का ही हिस्सा है, जो गुटनिरपेक्षता के विचार से जन्मी है। प्रधानमंत्री मोदी इसका श्रेय भारत के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू दें या न दें, यह उनका विवेक है।

वैसे सत्ता की ताकत से बेहद मजबूत हो चुकी भाजपा अपना स्थापना दिवस ऐसे वक्त में मना रही है, जहां एक ओर आजादी का अमृतमहोत्सव मनाया जा रहा है, और दूसरी ओर आम जनता के सामने महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक वैमनस्य का जहर फैला हुआ है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी से यह स्वाभाविक अपेक्षा थी कि वे उन मुद्दों के बारे में भी कुछ बोलते, जो सीधे देश के आम आदमी से जुड़े हैं। मगर उनके भाषण में इन बातों का कोई जिक्र ही नहीं था। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी कहा कि भाजपा गरीबों की पार्टी है और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी की छवि बदली और आज वह गरीबों के आंसू पोंछने वाली और महिलाओं को सशक्त करने वाली पार्टी के रूप में उभरी है। लेकिन ऐसा कह कर उन्होंने पार्टी के पूर्वजों के नेतृत्व पर सवाल उठा दिए हैं। छवि बदलने का तो यही मतलब है कि भाजपा अब पहले वाली पार्टी नहीं रही, बदल गई है। जबकि मोदीजी पुरानी पीढ़ियों को याद करने की बात कह रहे हैं।

वैसे भाजपा की स्थापना पर 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी ने जो अध्यक्षीय भाषण दिया था, उसमें गांधीवाद, समाजवाद, जेपी के सपनों, लोकतंत्र, किसानों के संघर्ष और महंगाई सबका जिक्र किया था। सोशल मीडिया पर यह भाषण उपलब्ध है, जिसे आम जनता के साथ-साथ आज के भाजपा सदस्य और समर्थक भी सुन सकते हैं, ताकि उन्हें भी पता चले कि आखिर किन उद्देश्यों के साथ भाजपा बनी थी और किस तरह सत्ता हासिल करने की राह में वह आगे बढ़ी। मुंबई में दिए गए इस भाषण में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि पार्टी गांधीवादी समाजवाद के सिद्धांतों पर काम करेगी। लेकिन आज भाजपा के शासन में गोडसे के मंदिर बनाने से लेकर उन लोगों को लोकसभा की टिकट दी गई, जिन्होंने गांधी के हत्यारों की तारीफ की। समाजवाद शब्द को भी संविधान से निकालने की वकालत बहुत से भाजपा नेता समय-समय पर करते रहे हैं। भाजपा के शासन में इस वक्त पूंजीवाद को किस तरह प्रश्रय दिया गया है, यह भी किसी से छिपा नहीं है।

समाज में बढ़ी गैरबराबरी इसका प्रमाण है। किसानों की ऐसी दुर्दशा हो चुकी है, कि वे खेत से अधिक सड़कों पर आंदोलन के लिए नजर आ रहे हैं। यह स्थिति न देश के लिए अच्छी है, न भाजपा के लिए। क्योंकि अपने सिद्धांतों से विचलित होकर बहुत लंबे वक्त तक नहीं चला जा सकता। अगर भाजपा को लंबा सफर तय करना है और इस देश के नवनिर्माण का सपना पूरा करना है, तो यह जनता के हितों को सर्वोपरि रखने से ही होगा, न कि चंद उद्योगपतियों के हितसाधन से। आगे फैसला भाजपा के कर्णधारों को करना है।

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