जब नाविक हीं नाव डुबाए तो उसमें सवार लोग बचने के लिए इधर उधर हाथ पैर तो मारेंगे ही।

दैनिक समाचार

बसपा को बर्बाद होते सभी लोग देख रहें हैं और कुछ न कर पाने की स्थिति में असहाय होकर छटपटाते हुए शोक भी प्रकट कर रहे हैं परन्तु डूबते पार्टी को बचा नहीं पा रहें हैं। यह एक बहुत बड़ी बिडम्बना है।

जिन्होंने तन मन धन से पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा करने के परिणामस्वरूप अपमानित होकर गुमनामी में रहते हुए कितने बड़े सदमे में हैं उनकी पीड़ा को भी एहसास कर सबक लेने की आवश्यकता है क्योंकि यह स्थिति भी एक बड़े सामाजिक बिखराव को जन्म दिया है जिसका लाभ सपा व भाजपा उठा रही है।

बसपा से जुड़े लोगों में से बहुतों ने बहुत कुछ पाया है और बहुतों ने बहुत कुछ गंवाया भी है जिनकी फेहरिस्त भी काफी लंबी है। इस पर भी मंथन करना चाहिए कि लाभ हानि पाये ऐसे लोग कौन हैं और किस तरह के लोग है।

सामाजिक और आर्थिक स्तर बढ़ने के साथ साथ नैतिक स्तर और मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं में भी बहुत बड़ी गिरावट भी आयी है जिसको नकारा नहीं जा सकता है। अधिकारियों, कर्मचारियों, पार्टी पदाधिकारियों, मंत्री, सांसद, विधायक आदि लोगों का दंभ, घमंड, व्यक्तिगत स्वार्थ, लालच के कारण समाज के लोगों से दूरी व बेरूखी भी बसपा के पतन का भी एक कारण है।

हम लोकतंत्र की बातें तो बहुत करते हैं परन्तु पार्टी के भीतर भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रहे इस पर कभी भी चिंतन मनन नहीं किया गया
अनुसूचित जाति जनजाति समाज और पार्टी का भविष्य बहुत ही ख़तरनाक मोड़ पर खड़ा है जहां २०२४ के लोकसभा चुनाव दोनों की दशा और दिशा अनिश्चितकाल के लिए तय कर देगा।

संविधान और स्वाभिमान बचा ले जाए तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

अभी भी समय है हम सभी अपने अहंकार, दंभ, लालच और ईष्या को दरकिनार कर आपसी भाईचारा, सौहार्द, प्रेम बढ़ाते हुए संगठित होकर आने वाले समय को अनुरूप बनायें।

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