तुम क्यों आए बापू?

दैनिक समाचार

कनक तिवारी

9 जनवरी 1915 को बापू! तुम अपने वतन लौटे थे! 22 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में रहे। दक्षिण अफ्रीकी और भारतीयों के लिए तुमने असाधारण जद्दोजहद की। तुम्हें अंगरेज सार्जेेंट ने सेंट मेरिट्सबर्ग स्टेशन के प्लैटफार्म पर सामान की गठरी की तरह फेंक दिया था। तब तुम्हारी आंखों से शोले निकले थे। वे किसी को नहीं दिखे सिवाय इतिहास और भविष्य के। उन्हें तुम पर भरोसा था। ट्रांसवाल-आंदोलन तुम्हारे जीवन में मील का पत्थर बना। सत्य के प्रति समर्पण देखकर टाॅलस्टाय तुम्हारे गुरु बन गए। सावरकर और उनके साथियों सहित हिंसा समर्थकों और अंगरेजी हुक्काम दोनों को अहिंसा की थ्योरी को समझाने तुमने इंग्लैंड की असफल यात्रा की। फिर पानी के जहाज ‘किल्डोनन कैसल‘ में बैठकर दस दिनों में ‘हिन्द स्वराज‘ नाम की अद्भुत क्लासिक लिख दी। वह संसार को मनुष्यता को समझने का नायाब चश्मा है।

इतना तो ठीक है, लेकिन बापू तुम्हें भारत लौटकर क्या मिला? तुमसे किसी की नहीं पटी। गुरु गोखले और शिष्य नेहरू ने ‘हिन्द स्वराज‘ को रद्दी की टोकरी में फेंकने का फतवा दिया। नेहरू ने तो लिखा ‘हिन्द स्वराज‘ के आधार पर आजाद भारत की बुनियाद नहीं रखी जाएगी। 1917 में चम्पारण के नील सत्याग्रह के वक्त डा. राजेन्द्र प्रसाद तुमसे बडे़ नेता थे। खेदा सत्याग्रह और दांडी नमक मार्च के जरिए धीरे धीरे तुम वृहत्तर होते गए। अनुसूचित जातियों के मतदान के आरक्षण को लेकर तुमसे डा. अंबेडकर ने पूना पैक्ट अनिच्छापूर्वक किया। पूरे जीवन वे तुम्हारी कड़ी आलोचना करते रहे। तुम्हारे कारण डा. अंबेडकर को भारत का संविधान रचने की जिम्मेदारी मिली। तुमसे न तुम्हारी बड़ी बहन, न बडे़े बेटे से ठीक से पटरी बैठ पाई। कस्तूरबा ने भी तुमको सहन ही तो किया। आजादी के नौजवान योद्धाओं सुभाष बोस और भगतसिंह भी तुमसे असहमत थे। हालांकि सुभाष ने आजाद हिन्द फौज की एक ब्रिगेड का नाम गांधी ब्रिगेड रखा। भगतसिंह ने तुम्हारी बहुत इज्जत की। भले ही तुम्हारी अहिंसा के रास्ते पर पूरी तौर पर नहीं चल पाना समझते थे। भगतसिंह को फांसी से बचाना किसी के लिए मुमकिन नहीं था, लेकिन केवल तुम बदनाम किए गए। सरदार पटेल तुम्हारे शिष्य होकर भी बतौर राममनोहर लोहिया भारत विभाजन को लेकर तुम पर दबाव डाल गए। तुम्हारी हिन्दोस्तानी को तुम्हारे ही चेलों ने संविधान सभा में पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविन्ददास आदि के साथ खुलेआम खारिज किया।

तुम भारत क्यों आए थे बापू? कश्मीर के मामले में तुम्हारी नहीं सुनी गई। तुम सावरकर को समझाते सम्मान करते चले गए, लेकिन सावरकर के शिष्य नाथूराम गोडसे ने तुम्हारी छाती पर गोलियां दागीं। ऐसे लोगों पर तुमने क्यों भरोसा किया? उनके वरिष्ठ डा. मुंजे आर एस एस के संस्थापक हेडगेवार कांग्रेस के सदस्य बने लेकिन आपनी महत्वाकांक्षाओं के आगे तुमसे आतंकित होकर भाग खड़े हुए। समाजवादी तुमसे जुडे़े रहे लेकिन तुमने नेहरू को तरजीह देते वामपंथी नस्ल के समाजवाद की मुखालफत की। कोई भी तुमसे खुश नहीं था, फिर क्यों आए बापू?

तुम हवा, सुुगंधि या अहसास की तरह इतिहास में समा गए हो। इससे बाकी लोगों को कोफ्त होती है। अखाड़ा परिषद, कालीचरण, अमित शाह, भाजपा का आई टी सेल और न जाने कितने व्यक्ति और संस्थाएं हैं तुम्हारी रोज हत्या करने को बेताब हैं। अजीब बात है संसार के सबसे बडे़े वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने तुम्हारी दिल खोलकर तारीफ की। लोकमान्य तिलक के रहते तुम केन्द्रीय नेता नहीं बन सकते थे। वे स्वामी विवेकानन्द के भी बहुत करीब थे। तुम विवेकानन्द से मिलने गए थे लेकिन कह दिया गया कि स्वामी जी बीमार हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तुमको महात्मा कहा लेकिन उनसे भी पूरी सहमति कहां थी और राष्ट्रपिता का खिताब देने वाले सुभाष बाबू से?

बापू! अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे मुकाबले रामदेव नाम के कथित बाबा से खिताब पाकर राष्ट्रऋषि नरेन्द्र मोदी को भारतीय जीवन की धड़कन प्रचारित किया जाता है। मोदी ने तुम्हारे नाम पर अहिंसा विश्वविद्यालय बनाने का ऐलान किया था लेकिन बाद में कन्नी काट गए। तुम्हारे शिष्य सरदार पटेल की चीनी कारीगरों की मदद से संसार की सबसे ऊंची मूर्ति बना दी गई है। क्या तुमको चिढ़ाने के लिए? तुम्हारी तस्वीरों को मौजूदा सरकार ने शौचालय के दरवाजों पर चिपकाया है तुम्हें औकात दिखाने के लिए। कांग्रेस के तुम संरक्षक थे। कांग्रेसी तो खादी और शराब को लेकर तुम्हारा मज़ाक उड़ा रहे हैं। कांग्रेस विधायकों को तुम्हारी जन्मतिथि तक नहीं मालूम।

गुजराती सेठिए देश की दौलत सबसे ज्यादा लूट रहे हैं। तुम वहां के सबसे सच्चे फकीर हो। देश ने वहीं के सबसे बड़े सेवन स्टार संस्कृति के नकली फकीर को अपनी छाती पर थोप लिया है। बापू! तुमको आदमियों की पहचान क्यों नहीं है? वे अफ्रीकी हब्शी कितने भले हैं जिनके लिए तुम मरे खपे। उनके ही मार्टिन लूथर किंग जूनियर, बिशप डेसमण्ड टूटू, नेल्सन मंडेला, आंग सांग सू की ने तुम्हारे नाम को जिंदा और कारगर रखा है। भारत में तुम्हारा नाम पब्लिक में लेने से पिट जाने का डर है। तुम हे राम! कहते मर गए और यहां ‘जयश्रीराम‘ का नारा लगाते लोग हमवतनों की माॅब लिंचिंग कर रहे हैं। तुम्हारे बारे में झूठ कहा जा रहा एक गाल पर कोई चांटा मारे तो दूसरा गाल उसके सामने करने की तुमने सलाह दी थी। तुम तो दधीचि की हड्डी से बने थे बापू! हवा, पानी, आग, माहौल, अहसास की तरह तुम उन सबके जीवन में समा गए हो। जो निजाम से डरे हुए हैं, कायर हैं, एक जुट नहीं हैं, लिजलिजे हैं और मुसीबत में केवल तुम्हारे नाम को जपते एक बोतल शराब या हजार पांच सौ रुपए लेकर वोट देकर उनकी सरकार बनवा देते हैं जिन्हें तुम फूटी आंख कभी नहीं सुहाए। आज भी नहीं। आगे भी नहीं।


Kanak Tiwari जी की वाल से साभार।

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