स्त्री पुरुष को भोगेगी तो सुख प्राप्त करेगी उससे प्रेम करेगी तो दुखी होगी . ये एक सत्य है –

दैनिक समाचार

क्योकि पुरुष स्त्री के आन्तरिक मनोभाव को कभी पढ ही नही सकता . उसके अनुरूप ढल ही नही सकता और पुरुष को लगता है स्त्री कभी ना पढी जाने वाली किताब है. ये प्राकृतिक है कृत्रिम नही. इसी सोच को प्राचीन विद्वानो ने अच्छी तरह पढ तो लिया पर समझ नही पाये और लिखा दिया .

त्रिया चरित्रं ,पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति,कुतो मनुष्यः ।

यहाँ त्रिया का अर्थ स्त्री है
और
चरित्र का मतलब उसका आन्तरिक मनोभाव या उसका मूल स्वभाव . पुरुष के प्रति उसकी सोच .

मै स्त्री विरोधी नही परन्तु पुरुषो की अपेक्षा जब महिलाओ को पढ़ने की कोशिश करता हू तो लगता है बहुत किलिष्ठ भाषा की किताब है जिसका मुझे उतना ज्ञान नही कि पढ सकू . अतः मै ना पढ पाता हू ना समझ पाता हू .
मैंने स्त्री से पूछा – तुम्हे पढना असम्भव क्यों ?
वो दार्शनिक मुद्रा मे आ गई , धीर गम्भीर स्वर मे कहा – स्त्री को पढ़ना बहुत सरल है परन्तु भाषा कितनी भी सरल हो यदि आप उसे जानते नही तो .नही पढ पाओगे . आप स्त्री के सद और बद आचरण को पढ़ना चाह रहे हो . स्त्री को नही . इसलिये असम्भव है .
मै निरुत्तर था . उफ्फ सरल भाषा मे मुझे समझा दिया .
मै समझ गया यहाॅ स्त्री के सद या बद आचरण का सवाल नही . सद और बद आचरण स्त्री और पुरुष दोनो मे होता है .
परन्तु सामाजिक परिवेश में सद आचरण करने का उत्तरदायित्व पुरुष का ज्यादा होना चाहिये ,तभी हम स्त्री को कुछ कुछ पढ सकते है समझ सकते है .

ऐ हम -नशीं किस से मोहब्बत है तुझे ।
कौन समझता है तेरे इंफिआलात को ॥
आर रवि विद्रोही
7 मार्च , 2022
इंफिआलात = मनोभाव / मनोदशा / मूल भावना

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