● हिसार से भटिण्डा की बस के लिये 26 मार्च को सुबह भिवानी से बस ली।
हिसार में भटिण्डा के लिये मण्डी डबवाली की बस लेने का सुझाव मिला।
हरियाणा रोडवेज की बस में बैठा। एक सौ किलोमीटर की यात्रा के बाद, सिरसा बस स्टैण्ड पर दस मिनट का ब्रेक ।
हाथ-पैर हिलाने के लिये बस से उतरा। चाय की दुकान पर एक ड्राइवर की फोन पर ऊँची आवाज में बातचीत पर ध्यान गया। वे किसी से आँखें लाल होने और आँखों में लगातार पानी आने के कारण बस दिल्ली नहीं ले जाने की कह रहे थे। आँखों को राहत के लिये हाथों में कुछ बिन्दु दबाने के सुझाव से बातचीत आरम्भ हुई।
ड्राइवर ने बताया कि वे हर रोज सुबह सिरसा के पास के कस्बे से बस ले कर दिल्ली जाते हैं और वापस आते हैं। नींद पूरी नहीं होती। अस्पताल से आँखों की दवा ले रहे हैं।
ड्राइवर ओवर टाइम के लालच में यह कर रहा होगा सोच कर बात करने ही लगा था कि उन्होंने बताया : हरियाणा रोडवेज की किलोमीटर स्कीम में ड्राइवर हैं। प्रतिदिन पाँच सौ किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करते हैं। रोज 14 घण्टे बस चलाना। साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं। कोई छुट्टी नहीं!
बस में बैठते ही ड्राइवर से यह बात की। उन्होंने कहा कि वे भी हरियाणा रोडवेज की किलोमीटर स्कीम में ड्राइवर हैं। हर रोज सुबह सात बजे बस चलाना आरम्भ करते हैं और साँय साढे छह बजे वापस स्टैण्ड पर पहुँचते हैं। प्रतिदिन पाँच सौ किलोमीटर बस चलाना। गाँव से सुबह बस स्टैण्ड पहुँचते हैं और रात को गाँव वापस जाते हैं।
दिसम्बर 2019 मेंं हरियाणा रोडवेज की किलोमीटर स्कीम आरम्भ की गई। इस स्कीम में बसें ऑपरेटरों की हैं। बसों का रंगरोगन हरियाणा रोडवेज का। ड्राइवर बस ऑपरेटरों के। कण्डक्टर हरियाणा रोडवेज के। एक बस दिन में कम से कम 400 किलोमीटर चले। किलोमीटर स्कीम वाली बसें लम्बे रूटों पर हैं।
दिल्ली में और इर्दगिर्द के औद्योगिक क्षेत्रों में अब फैक्ट्रियों में अस्सी-नब्बे प्रतिशत मजदूर ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे जा रहे हैं। प्रतिदिन 12 घण्टे की ड्युटी सामान्य है। लेकिन, फैक्ट्रियों में आमतौर पर साप्ताहिक अवकाश होता है। जबकि, हरियाणा सरकार के उपक्रम, हरियाणा रोडवेज में किलोमीटर स्कीम में ड्राइवर प्रतिदिन 12-14 घण्टे ड्युटी करते हैं और इन ड्राइवरों को साप्ताहिक अवकाश भी नहीं।
● दिल्ली सरकार का ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन
दिल्ली में सरकारी बस सर्विस मई 1948 में आरम्भ की गई थी। दिल्ली नगर निगम से केन्द्र सरकार ने नवम्बर 1971 में सार्वजनिक बस सर्विस अपने हाथों में ली। अगस्त 1996 में केन्द्र सरकार ने दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के कर्ज के 2123 करोड़ रुपये अपने बहीखाते में डाल कर यह बस सर्विस दिल्ली सरकार को सौंप दी।
दिल्ली सरकार की किलोमीटर स्कीम के तहत डीटीसी के अधीन प्रायवेट बस ऑपरेटरों की सन् 2002 में 2,400 बसें थी। ड्राइवर बस ऑपरेटरों के और कण्डक्टर डीटीसी के थे। इस स्कीम में डीटीसी को प्रतिदिन छह लाख रुपये का नुकसान होता था। वर्ष में साठ करोड़ रुपये की हानि। किलोमीटर स्कीम समाप्त करने के डीटीसी के प्रयास का विरोध डीटीसी प्रायवेट बस ऑपरेटर्स एसोसिएशन ने किया था।
2010 से डीटीसी की अपनी बसें लाल तथा हरे रंग की हैं। और, 2011 से नारंगी (ओरेंज) बसें किलोमीटर स्कीम के तहत बस ऑपरेटरों की हैं। ओरेंज बसों के ड्राइवर तथा कण्डक्टर बस ऑपरेटरों के हैं।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली क्षेत्र के लिये मार्च 2017 में नये न्यूनतम वेतन निर्धारित किये। ओरेंज बस ड्राइवरों तथा कण्डक्टरों ने दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिये जाने के विरोध में 15 मई 2017 को बसों के चक्के जाम किये …
अक्टूबर 2018 में डीटीसी में कार्यरत 25,000 वरकरों में 11,380 ड्राइवर, कण्डक्टर, सुपरवाइजर आदि ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे गये थे। तनखा कम करने के विरोध में ठेकेदार कम्पनियों के, ओरेंज बसों के ड्राइवरों-कण्डक्टरों द्वारा 28 अक्टूबर से बसों के चक्के जाम …
मई 2017 और फिर अक्टूबर 2018 में दिल्ली सरकार ने डीटीसी में किलोमीटर स्कीम के ड्राइवरों तथा कण्डक्टरों के खिलाफ जेल के प्रावधान वाला एस्मा कानून लागू किया। वैसे चुनाव के समय वादा ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर वरकरों को रेगुलर करने का था …
और, 31 मार्च 2020 को समाप्त वर्ष की बैलेंसशीट के अनुसार 1996 से दिल्ली सरकार के तहत चल रही डीटीसी का कुल घाटा 31 मार्च 2020 तक 44,900 करोड़ 52 लाख 27 हजार रुपये।
अक्टूबर 2021 के आरम्भ में ओरेंज बसों के चार डिपो की अवधि पूरी … डीटीसी में ठेकेदार कम्पनियों के जरिये रखे ड्राइवर और कण्डक्टर उहापोह में।
● गुड़गाँव में दो स्कूल सहपाठी तथा एक इन्सटीट्युट सहपाठी से मिलने के लिये रविवार, 17 अप्रैल को फरीदाबाद में सुबह हरियाणा रोडवेज की बस में बैठा।
टिकट के पैसे कण्डक्टर को दिये तब
कण्डक्टर : आपके पास आधार कार्ड है क्या?
— नहीं है।
कण्डक्टर : आपकी आयु को देखते हुये कम किराया …
— नहीं भाई। रियायत नहीं चाहिये। सरकारें इस-उस टैक्स से 100 वसूलती हैं। इन 100 में से 95 सरकारें अपने पास रख लेती हैं। और, सरकारें 5 का यह-वह झुन्झुना बजाते हुये कहती हैं कि लो तुम्हें पाँच दिये!
कण्डक्टर : ऐसी बातें ज्यादा सुनने को मिलनी चाहियें। …
— 19 अप्रैल 2022
मजदूर समाचार द्वारा प्रसारित