अलग-अलग गोत्र का एक अवध्य पशु होता है
यानी उस टोटम के आदिवासी उस पशु को नहीं खाते,
दंतेवाड़ा में जिस पारे में हमारा आश्रम था वहां बोगामी गोत्र के लोग थे
उनका अवध्य पशु बकरा था
तो बोगामी लोग बकरे का मांस नहीं खाते थे
लेकिन पड़ोस के गांव के ओयामी लोग बकरा खा सकते हैं
लेकिन बकरा ना खाने वाले बोगामी आदिवासी, कभी बकरा खाने वाले ओयामी लोगों को ना तो खराब मानते हैं ना उनसे नफरत करते हैं,
ना झगड़ा करते हैं.
इतनी छोटी सी यह बात भारत के हिन्दुओं को क्यों समझ में नहीं आती?
भई आप गाय को पवित्र मानते हो तो आप मत खाओ,
लेकिन आप दूसरे से यह जबरदस्ती कैसे कर सकते हो कि वह भी ना खाये?
दुनिया का हर व्यक्ति अपनी सोच से जीने के लिये आजाद है,
आप अपनी धार्मिक मान्यता दूसरे के ऊपर कैसे लाद सकते हैं?
मुसलमान सूअर नहीं खाते, लेकिन वह कभी नहीं कहते कि हम दूसरों को भी नहीं खाने देंगे. और अगर कोई खाएगा तो हम उससे झगड़ा करेंगे या उसे जेल में डलवा देंगे,
लेकिन गाय खाने को लेकर यही नियम बनाया गया है कि कोई गाय काटेगा या खाएगा तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा.
हालांकि इससे गाय पालन घट रहा है
खेती बर्बाद हो रही है सबसे ज्यादा नुकसान भारत में गोपालन का अगर हो रहा है, तो इसी नियम से हो रहा है!
लेकिन अपनी मूर्खता और ज़िद की वजह से हम गाय का भी नुकसान कर रहे हैं, खेती का भी नुकसान कर रहा है
अपने धर्म की भी हंसी उड़वा रहे हैं
खुद की कट्टरता की पोल खोल रहे हैं।
— हिमांशु कुमार