छात्रों के बीच नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का भाषण :—
क्रांति क्या है?

दैनिक समाचार
       तरुण शिक्षार्थीगण, तुम इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे हो तो तुम्हें क्रांति के बारे में भली-भांति जानकारी होनी चाहिए। कैसे अन्य देशों में क्रांति सफल हुई, वह तुम लोगों को जानना होगा, ताकि तुम यह विचार कर सको कि हम अपनी क्रांति के पथ पर कितना आगे बढ़े हैं, और अब भी कितना पथ हमें तय करना है।
        किस तरह क्रांति सफल होती है, यह समझना सीखोगे तो तुम पथ में बाधा देखकर कभी हताश नहीं होगे। मनुष्य तभी हताश होता है, जब वह ऐसी बाधा के सामने होता है जो उसके लिए अप्रत्याशित हो। यदि क्रांति और उससे जुड़ी बातों के बारे में तुम लोगों के मन में स्पष्ट चित्र अंकित हो तो क्रांति के पथ पर चलते हुए तुम कभी हतोत्साह  नहीं होंगे।
      प्राकृतिक जगत में जिस तरह सबके नियम है, उसी तरह क्रांति भी कुछ नियमों द्वारा नियंत्रित होती है। मलेरिया की बात ली जाय। जब मच्छर काटता है, तब मलेरिया के विषाणु  तुम्हारे रक्त में प्रवेश करते हैं और तुम्हें मलेरिया होता है। यदि तुम इन विषाणुओं से दूर रहते हो तो तुम्हें कभी मलेरिया नहीं होगा। जब मलेरिया के किसी रोगी को रोग से मुक्त करना होता है तब इन विषाणुओं  को नष्ट करना पड़ता है। तुम ख़ूब बलशाली हो सकते हो, लेकिन मलेरिया के विषाणुओं से घिरे होने पर तुम्हें बीमार होना ही पड़ेगा, क्योंकि तुम प्राकृतिक नियम के विरुद्ध नहीं जा सकते।
      मान लो, बगीचे में कोई पौधा जम रहा है। यदि तुम उस पौधे को बढ़ने देना चाहते हो तो उसे पानी से सींचना होगा और जो कीड़े उस पौधे को नष्ट कर सकते हैं, उनको नष्ट करना पड़ेगा।
     ऋतुओं के आवर्तन को ही क्यों न लिया जाय? जब ग्रीष्मकाल चल रहा हो तब यदि तुम सोचते हो कि यही गरमी हमेशा चलती रहेगी, तो तुम ग़लती करोगे। समय आने पर शुरू होगा जाड़ा। यह अलंघनीय प्राकृतिक नियम है। ठीक इसी तरह क्रांति में भी ऋतु- परिवर्तन होता है। क्रांति का पथ सीधा- सपाट नहीं है। इस पथ पर सदैव सफलता नहीं आती। यह पथ अनेक बिघ्नों से भरा हुआ, बड़ा ही लम्बा और टेढ़ा- मेढ़ा है। यदि तुम यह बात समझते हो, तो कभी निरूत्साह  नहीं होगे, और मान लोगे कि बाधा-विघ्न होना ही स्वाभाविक है और हताश न होकर उनको पार करने का प्रयास करोगे।
      यदि तूम पहले ही यह समझ सको कि प्राकृतिक घटना की तरह क्रांति भी कुछ नियमों से नियंत्रित होती है तो सवाल उठेगा कि क्रांति के इन नियमों को कैसे जाना जायेगा। कैसे बीज बोये जाते हैं और कैसे उनकी सिंचाई की जाती है, खेती के इन सारे नियमों को एक किसान कैसे जान सकता है, यह एक बार सोचो। अनेक सदियों के पर्यवेक्षण के फलस्वरुप किसान इन सारी जानकारियों को प्राप्त करता है। मलेरिया की चिकित्सा  का ज्ञान भी चिकित्सकों ने कैसे प्राप्त किया है, ज़रा सोचो। मलेरिया के हज़ारों रोगियों को देखकर ही उनको यह ज्ञान मिला है। ठीक उसी तरह विश्व के इतिहास में जो क्रांतियाँ घटित हुई हैं, उनको देखकर ही क्रांति विशारदों  ने क्रांति के नियमों का ज्ञान प्राप्त किया है। विभिन्न देशों के चिंतक इस विषय का विवेचन कर इस सिद्धांत पर पहुंचे हैं कि हर क्रांति पहले की क्रांति की तुलना में उन्नत प्रकार की होगी। दुर्भाग्य से भारत में इस विषय पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन दूसरे देशों में इस विषय पर विशेष ध्यान दिया गया और धीरे-धीरे इसे वैज्ञानिक आधार मिला तथा इसकी अपनी परिभाषा भी बनी। भारतीयों को इस विषय पर विवेचन करने का समय आ गया है। इस विषय के समुचित विवेचन के लिए शायद हमें नये-नये शब्द भी गढ़ने पड़ेंगे।
      अब देखा जाय कि क्रांति क्या है? अंग्रेजी में रेवल्यूशन का अर्थ है परिवर्तन। अब सवाल यह है कि क्या किसी भी परिवर्तन को क्रांति कहा जा सकता है? अनेक प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन हैं, जिनको क्रांति नहीं कहा जा सकता। कुछ स्वाभाविक परिवर्तन भी हैं, जैसे कभी-कभी अस्वाभाविक बाढ़ आती है जो आपातदृष्टि में बहुत हानि का कारण बनती है, लेकिन अंत में वह बाढ़ बहुत कल्याण करती है। हालांकि इस तरह की बाढ़ अत्यंत भयंकर है, फिर भी मिस्र के लोग इस तरह की बाढ़ के लिए प्रार्थना करते हैं ; क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है। प्राकृतिक जगत में  अस्वाभाविक परिवर्तन का और एक उदाहरण है भूकंप। यह जो पेड़- पौधे बढ़ रहे हैं या जो वर्षा हो रही है, इस तरह के स्वाभाविक परिवर्तन को विवर्तन कहा जा सकता है, क्रांति नहीं। विवर्तन का अर्थ है धीरे-धीरे परिवर्तन या क्रमिक विकास। जब बड़ी मात्रा में मौलिक परिवर्तन होता है, तभी हम उसे क्रांति कहते हैं।
      अब तो तुम समझ गये कि क्रांति किसे कहते हैं क्रांति हैं। क्रांति है आमूल और मौलिक परिवर्तन। यह परिवर्तन बड़ी तीव्र गति से होता है। क्रमिक विवर्तन के रास्ते जिसके घटित होने में सौ साल लगते हैं, क्रांति के माध्यम से वह पांच - दस साल में ही घटित होता है। जब तुम्हें तीव्र गति से कोई परिवर्तन करना हो, तो तुम्हें सभी उपाय अपनाने होंगे, और सभी अस्त्रों का प्रयोग करना होगा। विवर्तन के रास्ते स्वाभाविक नियम से होनेवाले परिवर्तन के लिए इंतजार करना पड़ता है, लेकिन क्रांति के रास्ते हथियार उठाकर सभी बाधाओं को ध्वस्त करना होता है, और इसीलिए रक्तपात भी  क्रांति का एक अंग बन जाता है।
      चूँकि क्रांति के दौरान हम कम से कम समय में उत्कृष्टतम फल पाना चाहते हैं, इस कारण हमारे लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि क्यों पहले की क्रांतियों में विलंब हुआ था और वे विफल भी हुई थीं।
      अधिक आगे बढ़ने से पहले मैं यह भी साफ़-साफ़ बताना चाहता हूं की क्रांति के कारण जो परिवर्तन आता है, वह मौलिक होता है। दो-चार मामूली परिवर्तनों को क्रांति नहीं कही  जा सकती। किसी सरकार का परिवर्तन या मंत्रिमंडल में परिवर्तन क्रांति नहीं है, क्योंकि इससे राष्ट्र की जीवन-शैली में परिवर्तन नहीं होता। इस फ़र्क़ को समझाने के लिए फ्रांस के लोगों ने एक शब्द गढ़ा है 'coup d' etat' और जर्मनीवालों ने गढ़ा है 'Putsch'। जब किसी मंत्रिमंडल को बदला जाता है या किसी राजा को गद्दी से उतारा जाता है, तब हम उसे 'coup d'etat'  कहते हैं। यूरोप का भ्रमण करते समय मैंने बुल्गारिया   में एक घटना को घटित होते देखा था। भोर में तीन बजे सेना ने ऐसा 'coup d'etat'  किया था। सैनिकों ने मंत्रियों का मकान घेर लिया था, उनको बंदी बनाया था और राजा के पास जाकर मंत्रिमंडल बदलने की मांग की थी। राजा नयी सरकार बनाने के लिए विवश हुए। कोई रक्तपात नहीं हुआ, देश में आमूल परिवर्तन नहीं हुआ, मात्र सरकार बनाने वाले सदस्यों की अदला- बदली हुई। यह क्रांति नहीं है, यह सिर्फ coup d'etat या Putsch है।
       बहुत दिनों की पराधीनता के फलस्वरुप भारतवासी दुर्बल हो गये हैं। अब वे त्याग करने या प्राण देने से डरते हैं। यहां तक कि वे क्रांति के बारे में सोचना भी नहीं चाहते। वे  क्रमिक विकास के पथ पर ही चलना चाहते हैं। सभी बातों में वे धीरे-धीरे परिवर्तन चाहते हैं। लेकिन प्राकृतिक जगत पर दृष्टि डालने से लगता है, कभी-कभी क्रांतिकारी उपाय बहुत आवश्यक हो जाता है। ऐसा समय आता है, जब दवा के प्रयोग से धीरे-धीरे चिकित्सा की व्यवस्था विफल  होती है और शल्यचिकित्सा का सहारा लेना पड़ता है। क्या कभी ऐसी स्थिति नहीं आती, जब पैर काटकर शेष शरीर को बचाया जाता है। ज़रा सोचने पर तुम समझ सकोगे कि कभी-कभी रक्तपात— शल्यचिकित्सा की निर्मम पद्धति ही— जीवन रक्षा का एकमात्र प्रक्रिया होती है। व्यक्तिगत जीवन में जो नियम लागू होता है, राष्ट्र के जीवन में वही नियम कारगर होता है। किसी जाति को नष्ट होने से बचाने के लिए कभी-कभी क्रांतिकारी उपाय को अपनाना प्राकृतिक नियम के अनुसार ही अपरिहार्य हो जाता है।
      क्रांति भी दो प्रकार की होती है। एक है विदेशी शासन के विरुद्ध क्रांति तो दूसरी है देश में विद्यमान सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध क्रांति।  विदेशी शासन के अधीन देशों में क्रांति के उद्देश्य होते हैं विदेशी शासन का अंत तथा नयी समाज- व्यवस्था  का शुभारंभ। फ्रांसीसी क्रांति के समय विदेशी शत्रु से युद्ध करना नहीं पड़ा था, क्योंकि फ्रांस  के राजे रजवाड़े ही उस समय फ्रांस में राज करते थे। फ्रांसीसी क्रांति का उद्देश्य था सामाजिक ढांचे में परिवर्तन कर नयी समाज- व्यवस्था का सृजन। रूस की क्रांति का भी उद्देश्य था नयी समाज- व्यवस्था का सूत्रपात। देशवासी समझने लगे थे कि उनके अपने शासक ही देश की प्रगति के पथ में बाधक हैं। नये समाज की नींव डालने के लिए उनको अपने राजा को ही गद्दी से उतारना पड़ा था। सन 1926 में आयरलैंड की क्रांति विदेशी शासन और शक्ति के विरुद्ध थी, इसलिए हमारी क्रांति की तुलना आयरलैंड की क्रांति से की जा सकती है। देशी शासकों के विरुद्ध क्रांति करके नयी समाज- व्यवस्था के लिए प्रयास करना अपेक्षाकृत सरल है। लेकिन पहले विदेशी शक्ति को भगाना और उसके बाद नयी  सामाजिक व्यवस्था का सृजन सचमुच अधिक कठिन है।
    क्रांति को सफल बनाने के लिए तीन बातों का होना आवश्यक है। प्रथमतः उद्देश्य और आदर्श बहुत स्पष्ट होना आवश्यक है। द्वितीयतः  जिस उपाय और पद्धति को स्वीकार करना होगा, उसके बारे में स्पष्ट धारणा होना चाहिए, और तृतीयतः क्रांति के लिए जनता का समर्थन होना अत्यंत आवश्यक है। क्रांति की सफल शुरुआत के लिए कम से कम उसके नेताओं के मन में अपने आदर्श के बारे में स्पष्ट धारणा होना आवश्यक है। फिर क्रांति की सफल  समापन के लिए नेताओं के मन में क्रांति की पद्धति के संबंध में भी सटीक ज्ञान होना आवश्यक है। फिर जनता का समर्थन उनको अवश्य मिलना चाहिए। यदि आदर्श स्पष्ट रहे, लेकिन अपनायी गयी पद्धति गलत हो; अथवा यदि पद्धति सही हो, लेकिन आदर्श अस्पष्ट हो, अथवा सुस्पष्ट आदर्श और उपयुक्त पद्धति के होते हुए भी क्रांति को यदि जनता का समर्थन न मिले तो इन तीनों स्तितियों में क्रांति की  विफलता अनिवार्य है। सफलता के लिए इन तीन बातों का होना अपरिहार्य है। 
      क्रांति का इतिहास पढ़ने से पता चलेगा कि ऐसी अनेक क्रांतियां हुई, जिनको सफलता सीधे रास्ते ही मिली; फिर ऐसी भी अनेक क्रांतियां हुई, जिनमें ऐसा नहीं हुआ। फ्रांस की क्रांति में आदर्श स्पष्ट था। उस क्रांति के नेताओं ने 'साम्य, मैत्री और स्वतंत्रता' को अपना आदर्श घोषित किया था। उन्होंने फ्रांसीसियों में एक नयी जाति का सृजन करना चाहा था और फ्रांस की जनता भी उनके नेतृत्व में रक्तपात के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार थे। लेकिन नेताओं ने अपनी कार्यशैली के बारे में स्पष्ट धारणा नहीं बनायी, जिसके फलस्वरूप वे अनेक गुटों में बँठ गये थे। एक-एक कर विभिन्न गुटों के हाथों में सत्ता आयी। इससे समग्र जाति के लिए संकट पैदा हुआ। फ्रांसीसियों के अंदरूनी कलह का फ़ायदा उठाते हुए जब यूरोप के विभिन्न देशों ने फ्रांस को तबाह करने के लिए एकजुट होने लगे, तब नेपोलियन ने आकर फ्रांस को बचाया। 
      दूसरी तरफ पिछले (प्रथम) महायुद्ध के बाद तुर्की की क्रांति सीधे रास्ते ही चलकर हुई। मुस्त़फा कमाल ने एक संगठन बनाकर क्रांति शुरू की। उन्होंने तुर्की को विदेशी शत्रुओं के कुचक्र से बचाकर एक नया विधान चलाया। इस क्रांति के नेताओं के सामने स्पष्ट आदर्श था, उनके काम करने का ढंग था समय के उपयोगी,  जिससे समग्र जाति ने उनका नेतृत्व मान लिया था। तुर्की में जिन नेताओं ने क्रांति शुरू की थी, आज राष्ट्र के पुनर्गठन के समय भी वे देश के नेता हैं। तुर्की की क्रांति के दौरान उसके नेताओं में कोई हम कोई मतभेद नहीं देख पाते, जैसा हमने फ्रांस में देखा था। 
      फिर अनेक मौक़ों पर देखा गया कि जिन नेताओं ने क्रांति शुरू की थी, बाद में वे दूसरों को कार्यभार सौंप कर दूंर हट गये। ऐसे मौक़ों पर जब नेतागण अनेक प्रयास और रक्तपात के बाद अपना कार्य असमाप्त छोड़कर किनारे हो गये, तब प्रायशः क्रांति की विफलता दिखाई पड़ी। इसकी मिसाल के तौर पर सन 1911 में डॉक्टर सनयात सेन द्वारा चीन के मांचू साम्राज्य के विरुद्ध शुरू की गयी क्रांति को देखा जा सकता है। नयी तुर्की का सर्जक जैसे कमाल मुस्तफ़ा है, वैसे नये चीन का निर्माता सनयात सेन है। लेकिन मांचू सम्राट को गद्दी से उतारने और नये गणतंत्र की स्थापना के बाद उन्होंने यूयान सी काई के हाथों देश का नेतृत्व सौंपकर कार्यक्षेत्र से अवकाश लिया। यूयान सी काई था प्रतिक्रियावादी, जिससे घड़ी की सुई को पीछे कर दिया गया। यूयान सी काई के नेतृत्व में जो प्रतिक्रियावादी व्यवस्था की गयी, उसे ख़त्म करने के लिए फिर सन 1926-1927 से  और एक क्रांति की आवश्यकता पड़ी।
      तुम्हें समझना होगा कि हमारे उद्देश्य दो हैं। प्रथम उद्देश्य है राजनैतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति। यही है राष्ट्रीय क्रांति। द्वितीय  उद्देश्य है न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का आरंभ। यह है सामाजिक क्रांति। हमें पहले तो विदेशी शासन से मुक्त होना होगा, फिर हमारे आदर्श के अनुरूप देश को पुनर्गठित करना पड़ेगा। 
     आज हर भारतवासी महसूस करता है कि भारत से विदेशी शासन को दूर करना होगा, क्योंकि हमारी उन्नति के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक है विदेशी शासन। लेकिन भारत से ब्रिटिश शासन का अंत होने और देश की सत्ता भारतीयों के हाथ में आने के बावजूद इस देश में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या, महामारी तथा मृत्यु की दर पहले की तरह बनी रही; भूखों के लिए अन्न और साधारण जन के लिए शिक्षा का उत्तम प्रबंध न किया जाय, तो हमारा काम अधूरा ही रह जाएगा। हम जानते हैं कि जितने दिन इस देश में ब्रिटिश शासन रहेगा, उतने दिन ये सारी समस्याएं रहेगी। इसलिए हम सारी व्यवस्था अपने हाथ में लेकर ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, जिसमें हर भारतवासी के लिए पर्याप्त भोजन- छाजन का जुगाड़ होगा तथा शिक्षा का समुचित प्रबंध।  हम इसी लिए ब्रिटिश शासन का अंत चाहते हैं। हम, जो भारत में क्रांति शुरू करना चाहते हैं, यदि ब्रिटिश शासन का अंत करना ही चाहें और उसके बाद क्या होगा, उसके बारे में न सोचे, तो हमारा काम अधूरा रह जाएगा। हमारी क्रांति तो उसी दिन पूरी होगी, जिस दिन हम सत्य और न्याय के आधार पर नये समाज का निर्माण करेंगे, जिस समाज में हर भारतवासी को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मिलेगा। मुझे याद आता है कि जब मैं छोटा था, तब ब्रिटिश शासकों को भगाना ही हमारा एकमात्र कर्तव्य समझता था। लेकिन बाद में गहन चिंतन कर मैंने देखा कि यदि अंग्रेजों को भगाकर क्रांति समाप्त हो गयी, तो भारत में नयी समाज- व्यवस्था के लिए और एक क्रांति की आवश्यकता पड़ेगी। फिर यह भी संभव है कि जिन भारतीयों ने स्वतंत्रता के लिए कोई त्याग नहीं किया, उन्हीं को सत्ता मिले और अपनी स्वार्थ- सिद्धि के लिए वे उस सत्ता का उपयोग करें। तुम जानते हो कि भारत में ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने देश के लोगों का ही शोषण करते हैं। इसी लिए भारत के स्वतंत्र होते ही तुम अपने काम से छुट्टी नहीं पा सकते ;क्योंकि विदेशी शत्रुओं से लड़ने के बाद तुम्हीं  को भारत के प्रतिक्रियावादी शैतानों के चंगुल से राष्ट्र की रक्षा करनी होगी। चीन में क्या हुआ था, वह पहले ही बता चुका हूं। 
      अब मैं क्रांति के महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा करूंगा। मैं पहले ही बता चुका हूं कि क्रांति को सफल बनाने के लिए शुरू में ही जरूरी है, उद्देश्य के बारे में स्पष्ट धारणा। हम चाहते हैं, स्वतंत्र भारत में भाषा, धर्म, आदि का हर भारतीय को समान अधिकार मिले। भारत में रहता है और अपना परिचय भारतीय के रूप में देता है, ऐसे हर व्यक्ति को अन्य वस्त्र और शिक्षा का समान अधिकार मिलेगा। हम भारत में ऐसी शासन- व्यवस्था चालू करना चाहते हैं जिससे हर व्यक्ति को उपर्युक्त अधिकार देना संभव हो। इस लक्ष्य की प्राप्ति के रास्ते में जितनी बाधाएं हैं, उन सबको हमें दूर करना होगा। यह बड़ा स्वाभाविक है कि यदि हम हरेक को उसका उचित प्राप्य देना चाहेंगे तो कुछ बड़े  लोगों को हम आवश्यकता से अधिक भोगने  की सुविधा नहीं दे पाएंगे। 
      हम जिस ढंग की क्रांति चाहते हैं, वह है एकराय वालों का नेतृत्व। फ्रांस में हुई क्रांति में बड़ी आसानी से राजा को गद्दी से उतारा गया था। लेकिन राजा को हटाने के लिए जिन लोगों ने हाथ मिलाया था, उनमें एका  नहीं था। वहां दो दल दिखाई पड़े। एक था नरम दल और दूसरा था गरम दल। वे आपस में लड़ने लगे, जिससे किसी तरह का एका नहीं बन पाया। रूस में हुई क्रांति में फरवरी १९१७ में सबने एकजुट होकर राजा को गद्दी से उतारा ,लेकिन बाद में उनमें मतभेद पैदा हुआ और बोलशेविक अक्टूबर में और एक क्रांति करने के लिए विवश हुए। इससे साबित होता है कि क्रांति के नेताओं में एक  होना बहुत ज़रूरी है। तुर्की की क्रांति में हम देखते हैं कि जिन नेताओं ने लड़कर तुर्की को स्वतंत्र बनाया था, आज भी वे वहाँ का शासन चला रहे हैं। तुर्की की क्रांति एकराय वाले नेतृत्व का उदाहरण है। दूसरी तरफ फ्रांस की क्रांति सम्मिलित नेतृत्व का उदाहरण है।  अब तुम निर्णय कर सकते हो कि कैसी क्रांति हमारे लिए उपयोगी होगी।
      क्रांति की सफलता के लिए तीसरी ज़रूरी बात है जनता का समर्थन।। मैं जहाँ भी गया, वहाँ मैंने देखा कि निर्धन जन क्रांति के समर्थन में आगे आये। अगर कोई पीछे रहा तो वह है धनियों का वर्ग यानी उच्च वर्ग। निर्धन लोग आगे आते हैं, क्योंकि वे विश्वास करते हैं कि हमारी क्रांति से उनका भला होगा। वे अशिक्षित हैं, शायद इसी लिए वे साफ़-साफ़ सोच नहीं सकते, लेकिन वे दिल से अनुभव करते हैं की क्रांति से उनका मंगल होगा। जो धनी हैं, वे पिछड़ जाते हैं और आगे बढ़ने के रास्ते में अड़ंगा लगाते हैं; क्योंकि नयी समाज- व्यवस्था में उनकी सम्पत्ति का क्या होगा, यह सोचकर वे डर जाते हैं। विदेशी शासन का उद्देश्य है उच्च वर्ग का तोषण और जन साधारण का शोषण। इसी लिए विदेशी शासन में उच्च वर्ग के जीवन में दुख- दर्द नहीं आया। वे क्रांति से डरते हैं। वे जानते हैं कि कांति होने पर उनको धन और सम्मान दोनों को खोना पड़ेगा।
      इसलिए दरिद्र अनपढ़ जन जो क्रांति के समर्थक होंगे, यह तो बड़ा स्वाभाविक है। जनसाधारण निरक्षर हो सकते हैं, लेकिन निर्बोध नहीं। वे साफ़ तौर पर महसूस करते हैं कि क्रांति ही उनकी मुक्ति का मार्ग है। 
      प्रत्येक जाति को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है, धनियों का वर्ग और निर्धनों का वर्ग। निर्धन वर्ग स्वतः क्रांति में सहयोग करेगा और हमारे देश में यही बहुसंख्यक वर्ग है। शायद इस बहुसंख्यक वर्ग में अति अल्पसंख्यक लोग ऐसे हो सकते हैं जो ऐसी हिनावस्था में पहुंच चुके हैं कि उनमें जान या जोश  की मामूली धड़कन तक नहीं है। फिर अल्पसंख्यक धनियों के वर्ग में भी कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो निःस्वार्थ हों और क्रांति में सहायता करने के लिए आगे आ सकते हैं। इसलिए कुछ स्वार्थी धनियों और हतोत्साह निर्धनों के अलावा समस्त जाति को हम क्रांति के पथ पर सहायक के रूप में पा सकते हैं। 
       हमारा उद्देश्य पूर्ण रूप से स्पष्ट होना  आवश्यक है। पहले की क्रांतियों का इतिहास पढ़कर हमें सबसे अच्छा रास्ता और उपाय को अपनाना और समस्त जनता का समर्थन प्राप्त करना होगा। जब तक हमारे जातीय जीवन में स्वतंत्रता का आदर्श और सामाजिक जीवन में न्याय का आदर्श सफल नहीं होता तब तक हम अपनी क्रांति को चलाते रहेंगे।
                   *

[नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का यह भाषण ‘लोकमत’ प्रकाशित बंगला बुकलेट से हिन्दी में स्वर्गीय वीरेंद्र नाथ मण्डल जी द्वारा अनुवादित।]

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