जी हां। श्रीलंका के जैविक इतिहास में कभी भी शेर नही पाए गए। न जिंदा, न फॉसिल्स… शेर तो वहां होते ही नही।
एकमात्र शेर जो लंका में मिलता है, वह उसके झंडे पर है, वह भी उधार का। पहले पल्लव महेन्द्रवर्मन, और फ़िर जब चोल राजवंश, खासकर राजेन्द्र चोल ने अपनी नेवी के बूते सामुद्रिक अभियान शुरू कर, दक्षिण पूर्वी एशिया में अपनी सुप्रीमेसी स्थापित की, तब श्रीलंका पहला स्टॉप था।
यह तलवारधारी शेर चोलो के झंडे में था। वही झण्डा थोड़े बदलावों के साथ, तब से चला आ रहा है।
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याने तमिल नस्ल श्रीलंका की बेस है। लेकिन जो सदियों पहले सिंहल गए, वो सिंहली हो गए। जो लेट से, याने 18 वी शताब्दी में गए। चाय बागानों में काम करने के लिए अंग्रेजो के बुलावे पर पहुचे। वो तमिल कहलाये।
तमिल जब तलक मजदूर थे, दिक्कत नही हुई। जब अगली पीढियां मजबूत होने लगी, कमाने, बढ़ने लगी तो मूल निवासी चिंतित होने लगे। डिवाइड रूल वाले नेताओं को अवसर दिखा। अब दोनों पार्टी हिन्दू थी, तो लड़ाने का आधार भाषा बनी।
सत्तर के दशक में सिंहली राजभाषा हुई।
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और तमिलो के हक, स्पेस, सम्मान पर चोट करना शुरू हुआ। नतीजे में वही हुआ, जो होना था- गृहयुद्ध।
तो गृहयुद्ध हुआ, श्रीलंका दो टुकड़ों में टूटते टूटते बचा। श्रीलंका सरकार ने तमिलों से गृहयुद्ध जीत लिया।
लेकिन गृहयुद्ध जिताने वाला अब्राहम लिंकन नही था। जीत के बाद मेल मिलाप होना चाहिए। मगर नेता की नीति रही कि अब तो सिंहल में सिंहलियों की चलेगी। यह बात सिंहलियों को बड़ी प्रिय लगी। सबको जीत का नशा था, नेता को भी, जनता को भी।
जनता नशे में हो, तो नेता महाबली हो जाता है।
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महाबली नेता ने, उसके परिवार ने जैसे चाहा, देश को हांका। प्रेस, विपक्ष, संसद.. जो बहस, चर्चा और सवालों से कोर्स करेक्शन करवाते हैं, समवेत नीतियां बनवाने में मददगार होते हैं।
लेकिन दूसरी नजर से देखा जाए तो महाबली नेता की राह के रोड़े भी होते हैं। महाबली के खिलाफ खड़े दिखे, तो गद्दार भी करार दिये गए।
तो जब महाबली प्रेस, विपक्ष, संसद का बघीया करण कर रहे थे, जनता खुश थी। बम्पर बहुमत से नेता का मन बढ़ा रही थी।
असल मे अपने हाथ पैर काट रही थी।
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आज वही जनता सड़कों पर है। भूखी, अंधेरे में, खिसियाती और चिल्लाती। महाबली गो बैक के नारे लगा रही है। लेकिन वह मजबूत नेता इमरजेंसी लगाकर ठीक वही बर्ताव कर रहा गई, जो तमिलो के साथ किये जाने पर जनता ताली बजा रही थी।
उसके पास न विपक्ष है, न प्रेस, न संसद। सबको तो जहर देकर उसी ने मारा है। अपनी लड़ाई उसे खुद लड़नी है। वो अब नेता से लड़ रही है।
और नेता उससे लड़ रहा है।
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और वो झंडे वाला शेर…
ध्यान से देखिए। उसके हाथ मे तलवार नही है
कटोरा है।
मनीष सिंह