सदस्य, प्रगतिशील लेखक संघ पटना। राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893ई को उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदाहा नामक एक गांव में हुआ था। इनके माता जी का नाम कुलवंती देवी एवं पिताजी का नाम गोवर्धन पाण्डेय था। इनके बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बचपन में शादी कर दी गई थी जिससे विरक्त होकर घर द्वार छोड़ साधु बन कर यायावर प्रकृति को धारण कर लिया। इन्होने बहुत सारे पुस्तकों की रचना की जैसे भागों नहीं दुनिया को बदलो, तुम्हारे धर्म की क्षय हो, साम्यवाद ही क्यों?,वोल्गा से गंगा इत्यादि।
इन्होने बौद्ध दर्शन पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। राहुल सांकृत्यायन 1930 ई को श्रीलंका गए और बौद्ध धर्म को अपनाया इन्होने विभिन्न देशों के भ्रमण कर बौद्ध साहित्य को समृद्ध किया। राहुल सांकृत्यायन करीब 26 भाषाओं के ज्ञानी थे,जिस देश में इन्होने भ्रमण किया वहां की बोली एवं भाषा का सांगोपांग अध्ययन एवं मनन करते हुए लोक साहित्य की रचना की। एक बार एक संगोष्ठी में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनके संबंध में कहा था कि “जिस सभा में राहुल जी जैसे साहित्य के मर्मज्ञ हो उसमें बोलने में सहम जाता हूं।” इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राहुल सांकृत्यायन ने मार्क्सवादी साहित्य को काफी सरल एवं सहज भाषा में प्रस्तुत किया। इनके साहित्य को पढ़ कर बहुत सारे कम्युनिस्ट कार्यकर्ता पैदा हुए। किसान आंदोलन में जेल गए और अपना सिर भी फोडवाया।अमवारी में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे इसी बीच जमीनदार के पिलवान ने इनके सिर के ऊपर लाठी से प्रहार किया। यह घटना 24 फरवरी 1939ई की है । अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव की भूमिका में भी देश के स्वतंत्रता आंदोलन को किसानों के आंदोलन से जोड़ने का प्रयास किया। इन्होने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को पैनी नजर से देखा और उनके साहित्य आज भी लोगों को जूल्म और अन्याय के खिलाफ लडने की ताकत देती है।इनकी मृत्यु 14 अप्रैल 1963 ई को हुआ था। पटना जिला प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से उनके जन्मदिन एवं पुण्यतिथि पर क्रान्तिकारी लाल सलाम पेश करते हैं। साथ ही साथ उनके आदर्श एवं विचारों को आम आवाम तक पहूंचना इनके प्रति उचित सम्मान होगा।