भाग- 12
वीमुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) जो कि 1987 की विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार हुई और कुल 4 सीटें मिली और भाजपा को 2 सीटें। भाजपा और कट्टरपंथी मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ने मिलकर जनता के मन में यह कहते हुए जहर भरना शुरू कर दिया कि चुनाव में धांधली हुई है। कट्टरपंथी मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ने हर बात को इससे जोड़ दिया कि इस्लाम खतरे में है इसी तरह कट्टरपंथी आर एस एस ने हर बात को इससे जोड़ दिया कि हिन्दू खतरे में है। 1987 के चुनावों में भारी धाँधली के आरोप लगा मेहनतकश जनता से प्रदर्शन कराये और एक तरफ हिन्दू खतरे में है- दूसरी तरफ इस्लाम खतरे में है, बताकर मेहनतकश जनता के दिलो-दिमाग में नफरत भरकर सांप्रदायिक दंगे करवाये। मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं का कत्ल और हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों का कत्ल करवाये।
उसी साल मकबूल बट की बरसी पर पुलिस ने कश्मीरी आज़ादी के समर्थकों पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलायीं। यही वह दौर था जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिका की मदद से सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई में प्रशिक्षित मुजाहिद्दीनों को कश्मीर में जेहाद के लिए भेजना शुरू किया और कश्मीर की आज़ादी के संघर्ष को इस्लामिक कट्टरपन्थी रंग देने की कुटिल चाल चली जिसने कश्मीर की आज़ादी के संघर्ष को नुक़सान पहुँचाने के अलावा अल्पसंख्यक कश्मीरी पण्डितों के खिलाफ नफरत फैलाने में प्रमुख भूमिका अदा की। कट्टरपंथी दल मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट और कट्टरपंथी संगठन आर एस एस दोनों के इशारे पर कश्मीरी पण्डितों की हत्याएं की जा रही थीं। हिंसा और आतंकवाद के माहौल की पूरी पौधशाला ही तैयार कर ली गयी थी।
14 सितंबर 1989 को पण्डित टीका लाल टपलू को कई लोगों के सामने मार दिया गया। वह पहले कश्मीरी पण्डित थे, जिनकी टारगेट किलिंग हुई। ये कश्मीरी पण्डितों को वहां से भगाने को लेकर पहली हत्या थी। इसके डेढ़ महीने बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई। गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के अलगाववादी नेता मकबूल भट्ट को मौत की सज़ा सुनाई थी। गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया। वो कभी नहीं मिलीं। वकील प्रेमनाथ भट को मार दिया गया। 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई। लेकिन इन हत्या के हत्यारे नहीं पकड़े गये। इस घटना के बाद तो कश्मीरी पण्डितों की हत्या आम बात हो गई। इसी दौरान जुलाई से नवंबर 1989 के बीच 70 अपराधी जेल से रिहा किये गये थे। लेकिन यह अध्याय विशुद्ध रूप राजनीतिक था, और इन हत्याओं के पीछे कंही से भी धार्मिक भावना नहीं थी पर डर कश्मीरी पंडितों के बीच में फैला गया और इन घटनाओं से कश्मीरी पण्डितों के मन में दहशत बढ़ी और वे जान बचाने के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने लगे।
कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर राजनीति की गई। आर एस एस के संगठनों ने कश्मीर में पंडितों पर होने वाले अत्याचारों की खबरों को बढ़ा चढ़ाकर और नमक-मिर्च मिलाकर देश के शेष हिस्सों में प्रसारित किया पंडितों के पलायन को वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बना दिया गया कश्मीरी पंडितों और उनके संगठनों को सांप्रदायिक राजनीति के लिए इस्तेमाल किया गया है लेकिन इस प्रकार की राजनीति एक दुखद परिणाम यह हुआ कि कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुसलमानों के बीच की दूरियां काफी बढ़ गई।
सरकार और आतंकियों के बीच संघर्ष में सबसे पहले जान गंवाने वाले पहले शख्स थे मोहम्मद युसूफ हलवाई। वह नैशनल कॉन्फ्रेंस के रिप्रेजेंटेटिव थे। उनकी हत्या 21 अगस्त 1989 को हुई यानी टीका लाल टपलू की मौत से करीब 1 महीना पहले JKLF ने हलवाई की मौत की जिम्मेदारी लेते हुए उनके शव पर एक तख्ती रखी थी।
शेष अगले भाग में….
अजय असुर
राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा
➖➖➖➖➖➖➖➖