हिन्दू ही दबंग के नाम पर कमजोर हिन्दूओं व उनकी महिलाओं पर जुर्म और अत्याचार करें, बलात्कार व हत्या भी करे। श्मशान घाट तक में उनकी लाशें तक जलाने में भी संघर्ष की घटनाएं सुनने को मिले!
कहीं शादी जैसे खुशनुमा समारोह में अप्रिय घटनाओं की सूचना मिले कि हिन्दू ही दूसरे हिन्दूओं को घोड़ी पर चढने से खफा होकर झगड़े हों! घोड़ी जैसे पशु को पालने पर आपत्ति नहीं, घोड़ा बग्गी में सवारी ढोने से भी आपत्ति नहीं, भट्टों पर ईंटे ढोने पर भी आपत्ति नहीं, फिर घोड़ी पर बैठने से उस के ऊपर कौन सा अत्याचार या वन्य पशु संरक्षण अधिनियम कानून का उल्लंघन होता है? घोड़ी से किस जाति विशेष का खून का रिश्ता है सकता है, यह बात आज तक किसी को भी समझ नहीं आती?
सारे फसाद की जड़ हिन्दू ही हिन्दू का दुश्मन है और फिर कहेंगे भी कि हिन्दू धर्म में है?
अफसोस इस बात का भी है कि ऐसा करने वाले मुस्लिम समाज के लोग नहीं होते हैं, बल्कि एक हिन्दू ही दूसरे कथित हिन्दू के ऊपर ऐसा अत्याचार करता है!
कहीं ऐसे हिन्दू के मंदिरों में घुसने से सर्वशक्तिमान भगवान और उसका मंदिर भी अपवित्र हो जाता है, चिंतन करें कि क्या आपको भी यह सब अजीब नहीं लगता है?
शुक्र मनाइए कि हिन्दूओ द्वारा ही पीड़ित समुदाय के ऐसे लोग इसके बावजूद भी खुद को हिन्दू ही मानते हैं। मान लीजिए कि उनका हिन्दू धर्म से मोह भंग हुआ और उन्होंने आहत होकर मजबूरी में इस्लाम या ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया, क्या तब की स्थिति पर चिंतन करना अनिवार्य नहीं है ?
अनपढ़ या अल्पशिक्षित व्यक्ति भी इतना बखूबी समझ सकता है कि मान लीजिए देश के ऐसे अपमानित हिन्दूओं ने मजबूरी में बौद्ध, जैन और सिख धर्म न अपनाकर इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लिया तो देश के हालात कैसे हो सकते हैं?
क्या मुस्लिमों के साथ मिलकर उनकी आबादी देश की आबादी की आधी नहीं हो जाएगी? क्या वो अपने ऊपर होने वाले अत्याचारो का प्रतिशोध लेने के लिए बैचेन नहीं होंगे?
अत्याचार करने वाले हिन्दूओ को यह भी चिंतन करना अनिवार्य है कि यदि ऐसा हुआ तो गृहयुद्ध होने अथवा कत्लेआम होने की संभावना से भी इंकार कैसे किया जा सकता है?
इतिहास साक्षी है कि गौरी, गजनवी, गजनी और मुगलों के द्वारा आक्रमणों के समय भी हिन्दू धर्म के वीरों की मौजूदगी थी,मगर क्या अंजाम क्या हुआ?
हमारा मकसद भयांकित करना अथवा हिन्दूओ को कायर समझना नहीं है किन्तु कुछ ऐसे कृत्य अनजाने में या अति उत्साह में भी किये जाते हैं जो व्यक्ति को कालिदास अर्थात जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काटने की उपमा देने के लिए पर्याप्त होते हैं!
जोश के साथ होश भी रखना चाहिए और चिंतन करना चाहिए कि यदि समय रहते हिन्दू धर्म के ठेकेदार इस स्थिति के प्रति जागरूक नहीं हुए तो क्या वास्तव में ही हिन्दू धर्म खतरे में पड़ सकता है?
साथ ही यह भी चिंतन करना होगा कि ऐसे अपमानित और अत्याचार सहने वाले समाज के लोगो को हिन्दू बनने का क्या लाभ है? क्योंकि कोई मुस्लिम किसी मंदिर,मठ और तीर्थ स्थलों पर जाने के लिए नहीं मरा जाता है। इन तिरस्कृत हिन्दूओ की हिन्दू धर्म के प्रति आस्था ही है जो इनको हिन्दू धर्म त्यागने के लिए विवश नहीं कर रही है! दूसरा कोई स्वार्थी या लालची समाज होता तो अब का ईसाई या मुसलमान बनकर करोड़पति बन चुका होता। क्योंकि यह किसी से नहीं छिपा है कि दुनिया में ईसाई और इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए विदेशो से आर्थिक मदद भी की जाती है।
इसलिए नसीहत यही है कि हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को समय रहते चेतने की आवश्यकता है क्योंकि धर्म परिवर्तन करने के लिए ना तो भगवान मना करता है और ना ही संविधान!